भ्रष्टाचार-लोकायुक्त के मुद्दे पर अन्ना हज़ारे की मोदी को चिट्ठी, 'मन दुखी है'
नई दिल्ली: भारत में भ्रष्टाचार विरोधी आंदोलन के अगुवा रहे समाजसेवी अन्ना हज़ारे ने देश में बढ़ते हुए भ्रष्टाचार और लोकपाल एवं लोकायुक्त कानून पर अमल ना होने के कारण व्यक्तिगत सत्याग्रह करने का एलान किया है और इसे लेकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को पत्र लिखा है.
अन्ना हज़ारे ने अपने पत्र की पहली पंक्ति में ही मौजूदा हालात पर अपना दुख प्रकट करते हुए कहा कि महात्मा गांधीजी की जयंती के अवसर पर जब वो आत्म चिंतन करते हैं तो उनका मन बड़ा दुखी है.
दि. 02 अक्टुबर 2017 जा.क्र.भ्रविज- 04/2017-18
प्रति, मा. नरेंद्र मोदी जी, प्रधान मन्त्री, भारत सरकार, राईसीना हिल, नई दिल्ली-110 011. विषय- बढ़ते हुए भ्रष्टाचार तथा लोकपाल एवं लोकायुक्त कानून पर अंमल ना होने के कारण व्यथित हो कर व्यक्तिगत सत्याग्रह करने हेतु... महोदय, आज 2 अक्टुबर महात्मा गांधीजी की जयंती के अवसर पर आत्म चिंतन करते हुए मन ही मन बड़ा दुख हो रहा हैं.भ्रष्टाचार मुक्त भारत बनाने के लिए देश में लोकपाल और राज्यो में लोकायुक्त आयेगा. नागरिकों की सनद पर अंमल होगा. विदेश में छुपाया हुआ काला धन 30 दिन में वापस आयेगा. नोटबंदी से देश में छुपाया हुआ काला धन खत्म होगा. किसानों की आत्महत्या रुकेगी. किसानोंके के उपज को पैदावारी के मूल्य पर आधारित सही दाम मिलेगा. स्वामिनाथन आयोग की रिपोर्ट पर अंमल होगा. महिलाओं को पुक्ता सुरक्षा और सम्मान मिलेगा. देश में सभी स्तर के लोगों के समस्याओं पर सही हल निकलेगा. और देश में अच्छे दिन आयेंगे.... आपकी सरकार की ऐसी कितनी बातों पर देश की जनता आशा लगाके बैठी हैं. लेकिन आज तीन साल बाद वर्तमान स्थिती क्या हैं?
ना लोकपाल- लोकायुक्त नियुक्त किया गया हैं. ना नागरिक संहिता पर अंमल हुआ हैं. ना विदेश का काला धन वापस आया हैं. ना नोटबंदी से देश में छुपाये काले धन का जनता को हिसाब मिला हैं. ना ही किसानों की आत्महत्या रुकी हैं बल्की बढती जा रही है . स्वामी नाथन कमेटी रिपोर्ट कुछ कर नही रहे है . ना उनके उपज को पैदावारी के आधार पर दाम मिला हैं. और ना देश की नारी को सुरक्षा एवं सम्मान मिला हैं. ऐसा दिन नही जाता की महिलांपर अन्याय नही हुआ . भ्रष्टाचार तो दिनबदिन बढ़ताही जा रहा हैं. फोर्बज् की रिपोर्ट से पता चला की वर्तमान स्थिती में एशिया स्थित सभी देशों में भ्रष्टाचार को ले कर भारत पहले स्थान पर हैं. ट्रान्फरन्सी इंटरनॅशनल की रिपोर्ट के अनुसार पता चलता हैं की, भारत में भ्रष्टाचार की स्थिती काफी खराब हैं. इससे और दुर्भाग्यपूर्ण बात क्या हो सकती हैं?
देश की इस वर्तमान स्थिती को देखते हुए सवाल पैदा होता हैं की, क्या महात्मा गांधीजी, सरदार वल्लभभाई पटेल, शहिद भगत सिंग सहित लाखो देशभक्तों ने स्वतंत्र भारत का सपना इसलिए देखा था? क्या इसलिए लाखो देशभक्तो ने देश की आझादी के लिए कुर्बानी दी? आझादी के 70 साल बाद भी अगर देश में सही लोकतंत्र प्रस्थापित नहीं होता, जनता को सही आझादी का अनुभव नहीं मिलता, तो फिर सवाल पैदा होता हैं की, क्या हमारे स्वातंत्र्यवीरों की कुर्बानी व्यर्थ में गयी?
2011 से 2013 तक देश में भ्रष्टाचार के खिलाफ एक बड़ा जन आंदोलन हुआ. जिस के कारण और जन भावनाको देखते हुए संसद में लोकपाल और लोकायुक्त कानून पारित करना पडा. जब देश की जनता भ्रष्टाचार के खिलाफ महात्मा गांधीजी ने दिखाए हुए शांतिपूर्ण मार्ग से रास्ते पर उतर आयी थी, उसी समय आपने चुनाव प्रचार दौरान जनता को भ्रष्टाचार मुक्त भारत और अच्छे दिन के सपने दिखाएं. भ्रष्टाचार से पीडित जनता ने आप की बड़ी बड़ी बातों पर भरोसा किया और आपकी सरकार सत्ता में आ गयी. इस बात को तो आप भी मानते होंगे की, केवल भ्रष्टाचार को मिटाने और विकास के मुद्दे पर जनता ने आपकी सरकार चुनी हैं. अब तीन सालों से अधिक समय बीत चुका हैं. लेकिन देश में भ्रष्टाचार बिलकूल कम नहीं हुआ हैं बल्की बढते जा रहा है . क्यों की, भ्रष्टाचार को रोखने के लिए आपकी सरकार नें बड़ी बड़ी बातों के सिवा कुछ भी नहीं किया हैं. तो कैसे बनेगा भ्रष्टाचार मुक्त भारत? इसलिए आज मन बहुत दुखी हो रहा हैं.
लोकपाल आंदोलन के दौरान 28 अगस्त 2011 को संसद के दोनो सदनों ने मिलकर एक मत सें एक रिज्योल्युशन पारित किया था. उसके तहत प्रधानमंत्री ने नागरिक संहिता, निचले स्तर के सरकारी कर्मचारियों को लोकपाल के अधिन करना और हर राज्य में लोकायुक्त लागू करना इन मुद्दों पर सख्त कानून बनवाने के बारे में जनता को लिखित आश्वासन दिया था. उस वक्त आपकी पार्टी भी भ्रष्टाचार के मुद्दे पर आंदोलन को पुरा समर्थन दे रही थीं. संसद में बीजेपी नेता मा. अरुण जेटलीजी और मा. सुषमा स्वराजजी ने लोकपाल लोकायुक्त कानून का पुरा समर्थन किया था. इसलिए सत्ता में आने के बाद आपकी सरकार से जनता को यह उम्मीद थी की आप तुरन्त लोकपाल और लोकायुक्त कानून पर अंमल करेंगे. मैने भी आपको तीन साल लगातार याद दिलाते हुए पत्र लिखे. लेकिन तीन साल में आप ने कुछ नहीं किया. नाही किसी पत्र का जबाब दिया.
दुख की बात यह हैं की, भ्रष्टाचार को मिटाने के लिए जो करना चाहिए वह आप नहीं कर रहें हैं. और जो नहीं करना चाहिए वह आप अतिशीघ्र कर रहें हैं. इसके बारे में कुछ उदाहरण आपके सामने रख रहां हूं...
1) 18 दिसंबर 2014 को आपकी सरकारने लोकपाल और लोकायुक्त संशोधन बिल संसद में पेश किया था. उसमें खास करके लोकपाल चयन कमिटी में नेता विपक्ष मौजुद ना हो तो उनकी जगह पर सबसे बड़े राजनैतिक दल का नेता की स्थापना करने का प्रावधान रखा गया हैं. साथ ही लोकपाल का मुख्यालय, सीवीसी, सीबीआय और अधिकारीयों का स्तर और धारा 44 में लोकपाल के दायरे में रखे गये अधिकारीयों तथा कर्मचारियों की संपत्ती घोषित करने के बारे में प्रावधान हैं. यह बिल स्थायी कमिटी के पास भेजा गया था. स्थायी कमिटी ने कुछ अच्छे सुझावों के साथ अपनी रिपोर्ट सरकार को सौंप दी हैं. लेकिन पता चलता हैं की, यह बिल अकारण सात सदस्यों के मंत्रीगट के पास भेजा गया हैं और वह अब तक प्रतीक्षित हैं. समज में नहीं आ रहा हैं कि, स्थायी समिती का स्थान मंत्रीगट से उपर होते हुए भी स्थायी समिती की रिपोर्ट आने के बाद इस बिल को मंत्रिगट के पास भेजने की जरुरत नही थी कारण स्थायी समिती की रिपोर्ट आ गई थी.
2) 27 जुलाई 2016 को आपने लोकपाल और लोकायुक्त कानून की धारा 44 में संशोधन लाया. लोकपाल और लोकायुक्त कानून 2013 के तहत लोकपाल के दायरें में जो भी अधिकारी एवं कर्मचारी हैं उन्होने अपनी और अपने परिवार के नाम पर की गयी संपत्ती का विवरण देना अनिवार्य कर दिया गया था. लेकिन आपकी सरकारने इसमें संशोधन करके अधिकारीयों के परिवारिक सदस्यों के नाम पर की गयी संपत्ती की जानकारी देने का प्रावधान हटा दिया हैं. चौकानेवाली बात यह हैं की, आपने यह संशोधन 27 जुलाई 2016 को लोकसभा में रखा. कोई बहस नहीं होने दी. ना लोकसभा को पहले जानकारी दी गयी थी. केवल ध्वनी मत से यह बिल एकही दिन में और जल्दबाजी में पारित किया गया. दुसरे दिन 28 जुलाई 2017 को भी राज्यसभा इसी प्रकार वह पारित किया गया. और तिसरे दिन याने 29 जुलाई 2016 को महामहिम राष्ट्रपतीजी के हस्ताक्षर ले कर बिल पूर्वव्यापी प्रभाव से लागू कर दिया गया. पता नहीं ऐसी क्या आपातकालीन स्थिती पैदा हुई थी की आपने केवल तीन दिन में धारा 44 के संशोधन को पारित कर लिया? दुर्भाग्यपूर्ण बात है की, धारा 44 का संशोधन तीन दिन में पारित हो सकता हैं, लेकिन लोकपाल की नियुक्ती तीन साल में नही हो सकती! धारा 44 के संशोधन को शीघ्र पारित करके आपने अधिकारीयों के परिवारिक सदस्यों के नामपर की गयी संपत्ती छुपाना आसान कर दिया हैं. आपने सत्ता में आने से पहले और बाद भी कई बार पारदर्शिता की बात कही हैं. लेकिन धारा 44 के संशोधन को देखते हुए पारदर्शिता कैसे स्थापित होगी यह समज में नहीं आ रहा हैं. इसलिए हमारा मानना है की, आपकी सरकारने धारा 44 में संशोधन करके लोकपाल और लोकायुक्त कानून को कमजोर किया हैं.
आपकी सरकारने ‘वित्त विधेयक 2017’ को धन विधेयक में शामिल कर के जल्दबाजीसे पारित कर लिया. इसमें कम्पनीयों द्वारा राजनैतिक दलों को दिये जानेवाले चंदे की 7.5 प्रतिशत की मर्यादा हटा कर राजनैतिक दलों को आर्थिक तौर पर मजबूत करने का रास्ता खुला कर दिया. आप इस विधेयक में 40 संशोधन ला कर पारित कर सकते हैं लेकिन लोकपाल कानून लागू करने के लिए तीन साल में एक संशोधन पारित नहीं कर सकते.
पहली बार संसद में कदम रखते समय संसद की पहली सीढी पर आपने माथा टेका था. और देश वासियों को कहां था की, मैं आज लोकतंत्र के पवित्र मंदिर में जा रहां हूं. मै इस मंदिर की पवित्रता बनाये रखने की कोशिश करुंगा. लेकीन आपने लोकतंत्र के इस पवित्र मंदिर में जाने के बाद जो करना चाहिए था, वह नहीं किया. और जो करना नहीं चाहिए था, वह शिघ्र कर दिया. क्या इससे लोकतंत्र के पवित्र मंदिर की पवित्रता भंग नहीं हुई है?
3) जब हमारा आंदोलन चल रहा था तब मनमोहनसिंग की नेतृत्व मे काँग्रेस सरकारने दिसंबर 2013 में लोकपाल और लोकायुक्त अधिनियम पारित करते समय छुपे तरिके से उसमें बदलाव करके राज्यों में लोकायुक्त नियुक्ती का जो प्रावधान किया गया था, उसे कमजोर कर दिया. आप के सत्ता में आने के बाद जनता को यह उम्मीद थी की, आप केंद्र में सशक्त लोकपाल और राज्यों में सशक्त लोकायुक्त लागू करके भ्रष्टाचार मुक्त भारत बनाएंगे. लेकिन अब आपकी सरकारने लोकपाल और लोकायुक्त कानून पर अंमल ना करते हुए और धारा 44 में अकारण संशोधन कर के फिर एक बार इस कानून को और कमजोर कर दिया हैं. आपको याद होगा की, आप मुख्यमंत्री थे, तब आपने गुजरात में लोकायुक्त नियुक्त करने को लगातार विरोध किया था. राज्यपाल की अध्यक्षता में चयन कमिटी ने 2010 में जब गुजरात के लोकायुक्त की नियुक्ती की तब आपकी सरकारने उस नियुक्ती के खिलाफ हायकोर्ट में याचिका दायर की थी. लेकिन हायकोर्ट ने आपके विरोध में निर्णय दिया. उसके बाद आप की सरकारने सुप्रिम कोर्ट में अपिल किया था. जिसे सुप्रिम कोर्ट ने भी खारिज कर दिया. इस प्रकार लगभग 9 साल तक गुजरात में लोकायुक्त पद रिक्त रहा. अब देश के प्रधानमंत्री होने के नाते तीन साल हुए, आप केंद्र में लोकपाल की नियुक्ती नहीं कर रहें हैं. कुछ ना कुछ बहानेबाजी करके लोकपाल कानून पर अंमल करना टाल रहे हैं. इससे यह स्पष्ट होता हैं की, लोकपाल एवं लोकायुक्त लाने की आपकी बिलकूल मंशा नही हैं. और आप भ्रष्टाचार मुक्त भारत का निर्माण करना नहीं चाहते.
तीन साल बाद भी आपने लोकपाल और लोकायुक्त कानून पर अंमल नही किया. बल्कि कानून को कमजोर करनेवाले संशोधन लाये, जल्दबाजी में पारित करके लागू भी कर दिये हैं. वर्तमान स्थिती को देखते हुए भ्रष्टाचार को समाप्त करने तथा देश में प्रभावशाली लोकतंत्र प्रस्थापित करने के बारे में कुछ भी कोशिश नहीं हो रही हैं. बल्कि लोकतंत्र को कमजोर करने की और पार्टीतंत्र को मजबूत करने की कोशिश हो रहीं हैं. इन सब बातों को देखते हुए बहुत दुख हो रहा हैं. समान्य लोगों का जिवन जिना मुश्किल हो रहा है. क्यों की, मैने मेरा संपूर्ण जीवन सिर्फ समाज और देश के लिए समर्पित किया हैं. कई सालों से मै भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ रहां हूं. लेकिन कभी किसी व्यक्ति या पक्ष-पार्टी के खिलाफ आंदोलन नहीं किया. सिर्फ समाज और देश की भलाई और व्यवस्था परिवर्तन के लिए यह शांतिपूर्ण संघर्ष कर रहा हूं. जब देश में बढ़ता हुआ भ्रष्टाचार देखता हूं, किसानों की हालात और ऐसी कई सारी समस्याओं को देखता हूं तो मुझसे सहा नहीं जाता. आपने भ्रष्टाचार मुक्त भारत के बारे में जनता से वादा किया था. लेकिन आपने वह पुरा नहीं किया. इससे व्यथित हो कर मैं आज महात्मा गांधीजी की जयंती के अवसर पर उनके चरणों में देश के लिए प्रार्थना तथा सत्याग्रह करने जा रहां हूं.
जयहिंद.
भवदीय, कि. बा. तथा अन्ना हजारे पढ़ें मोदी को लिखे अन्ना हजारे की पूरी चिट्ठी