Places of Worship Act: प्लेसेज ऑफ वर्शिप एक्ट के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) में एक और याचिका दायर की गई है. वाराणसी के स्वामी जितेंद्रानंद सरस्वती ने कहा- संविधान के तहत सरकार को किसी समुदाय से विशेष प्रेम या द्वेष नहीं रखना चाहिए. लेकिन सरकार ने हिंदू, जैन, बौद्ध, सिख समुदाय को अपना अधिकार मांगने के लिए कोर्ट जाने से रोकने का कानून बना दिया.
दायर याचिका में क्या कहा गया है?
12 मार्च 2021 को इस मामले में अश्विनी उपाध्याय की याचिका पर नोटिस जारी हुआ था. उस पर सरकार का जवाब नहीं आया है. कल दिल्ली के चंद्रशेखर ने भी एक याचिका दाखिल की थी. पेशे से वकील चंद्र शेखर ने सुप्रीम कोर्ट में दायर याचिका में कहा कि ये एक्ट संविधान द्वारा दिए गए ज्यूडिशियल रिव्यू के अधिकार पर रोक लगाता है. याचिकाकर्ता ने अपनी याचिका में पूछा है कि क्या केंद्र सरकार कि वो किसी धार्मिक स्थान पर हुए अवैध कब्जे को हटाने से रोके? क्या इस एक्ट की धारा 2,3,4 संविधान के अनुच्छेद 13 के तहत निष्प्रभावी हो जाता है. साथ ही अनुच्छेद 14,15,21,26 का हनन नहीं करता है. दरअसल, वाराणसी के ज्ञानवापी मस्जिद मामले के सामने आने के बाद से ही प्लेसेज ऑफ वर्शिप एक्ट की चर्चा एक भार फिर से होने लगी है.
वहीं इस इस मामले में दायर याचिका को लेकर सर्वोच्च अदालत ने कहा कि सिर्फ याचिका दाखिल हुई है. जब अश्विनी उपाध्याय की याचिका सुनवाई के लगेगी, तब सभी नए याचिकाकर्ता सुने जाएंगे.
क्या है प्लेसेज ऑफ वर्शिप एक्ट?
प्लेसेज ऑफ वर्शिप एक्ट (Places of Worship Act) में 1991 में तत्कालीन प्रधानमंत्री पीवी नरसिम्हा राव के नेतृत्व वाली कांग्रेस सरकार के शासनकाल में बनाया गया था. इस कानून के तहत 15 अगस्त 1947 से पहले मौजूद किसी भी धर्म की उपासना स्थल को किसी दूसरे धर्म के उपासना स्थल में नहीं बदला जा सकता. इस कानून में कहा गया कि अगर कोई ऐसा करता है तो उसे जेल भेजा जा सकता है. प्लेसेज ऑफ वर्शिप एक्ट के मुताबिक आजादी के समय जो धार्मिक स्थल जैसा था वैसा ही रहेगा.
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