CAA विरोधी हिंसा: मंगलौर में थाने में आग लगाने के आरोपियों को SC ने दी ज़मानत, हिंसा में 2 लोगों की हुई थी मौत
सुप्रीम कोर्ट ने सभी आरोपियों को हर दूसरे हफ्ते, सोमवार के दिन नज़दीकी थाने में हाजिरी लगाने को कहा है.
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मंगलौर: कर्नाटक के मंगलौर में नागरिकता संशोधन कानून (CAA) विरोधी प्रदर्शन के दौरान पुलिस थाने में आग लगाने के 21 आरोपियों को आज सुप्रीम कोर्ट ने ज़मानत दे दी. 19 दिसंबर को हुई हिंसा के इस मामले में पहले कर्नाटक हाई कोर्ट ने आरोपियों को ज़मानत दी थी. लेकिन 6 मार्च को सुप्रीम कोर्ट ने राज्य सरकार की अपील पर इन लोगों की रिहाई पर रोक लगा दी थी. कोरोना के चलते मामला आगे सुनवाई के लिए नहीं लग सका. ऐसे में आज सुप्रीम कोर्ट ने आरोपियों के लंबे समय से जेल में होने के आधार पर उन्हें अंतरिम तौर पर रिहा करने का आदेश दे दिया.
19 दिसंबर को मंगलौर में CAA विरोधी प्रदर्शनकारियों एक भीड़ ने एक पुलिस थाने पर हमला बोल दिया था. उन्होंने पुलिसवालों पर जानलेवा हमला किया और थाने में आग लगा दी. जवाब में पुलिस को गोली चलानी पड़ी. इसमें 2 लोगों की मौत हुई और कई लोग घायल हो गए. हालांकि, बाद में सीसीटीवी फुटेज के आधार पर 21 लोगों की गिरफ्तारी की गई.
पुलिस ने मामले में गिरफ्तार होने वाले मोहम्मद आशिक और 20 लोगों के तार पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया यानी पीएफआई से जुड़े होने का अंदेशा भी जताया था. साजिश के तमाम पहलुओं की जांच की बात की थी. लेकिन कर्नाटक हाई कोर्ट ने मामले में पुलिस की तरफ से जुटाए गए सबूतों को नाकाफी मानते हुए आरोपियों की रिहाई का आदेश दे दिया था.
इसके तुरंत बाद कर्नाटक सरकार की तरफ से सॉलीसीटर जनरल तुषार मेहता ने सुप्रीम कोर्ट में यह मामला रखा. उन्होंने चीफ जस्टिस एस ए बोबड़े की अध्यक्षता वाली बेंच को बताया कि घटना के पीछे गहरी साजिश की आशंका है. भीड़ का इरादा पुलिस वालों की जान लेने का था. उन्होंने पूरी योजना के साथ थाने में आग लगाई थी. ऐसे में उन्हें रिहा नहीं किया जा सकता है.
6 मार्च को सॉलिसिटर जनरल की दलीलें सुनने के बाद सुप्रीम कोर्ट ने हाई कोर्ट के आदेश पर रोक लगा दी. इसके चलते थाने में आग लगाने के आरोपी जेल से बाहर नहीं आ सके. कोर्ट ने इस मामले में सभी आरोपियों को नोटिस जारी कर जवाब मांगा था. लेकिन उसके बाद कोरोना के चलते सुप्रीम कोर्ट का कामकाज सीमित हो गया, जिसके चलते मामले पर सुनवाई नहीं हो सकी.
आज सुप्रीम कोर्ट में आरोपियों की तरफ से यह दलील रखी गई कि ज़मानत मिलने के 6 महीने बाद भी वह जेल में बने हुए हैं. जेल में कोरोना का भी अंदेशा है. आरोपियों के वकील ने हाई कोर्ट के आदेश के उस हिस्से का भी ज़िक्र किया, जिसमें आरोपियों की घटनास्थल पर मौजूदगी के पुख्ता सबूत न होने की बात कही थी.
इस पर चीफ जस्टिस ने कहा, "हम लंबे समय से जेल में बंद होने के आधार पर फिलहाल रिहाई के आदेश दे रहे हैं. लेकिन इसका मतलब यह नहीं कि हम हाई कोर्ट के इस निष्कर्ष से सहमत हैं. मामले के सभी पहलू बाद में परखे जाएंगे." कोर्ट ने आरोपियों को हर दूसरे हफ्ते, सोमवार के दिन नज़दीकी थाने में हाजिरी लगाने को कहा है.
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