Karnataka Assembly On Conversion Bill: कर्नाटक विधानसभा ने बृहस्पतिवार को हंगामे के बीच विवादास्पद धर्मांतरण विरोधी विधेयक को मंजूरी दे दी है. मुख्यमंत्री बसवराज बोम्मई ने कहा कि विधेयक संवैधानिक और कानूनी दोनों है और इसका मकसद धर्मांतरण की समस्या से छुटकारा पाना है वहीं कांग्रेस ने विधेयक का भारी विरोध करते हुए कहा कि यह “जनविरोधी, अमानवीय, संविधान विरोधी, गरीब विरोधी और कठोर” है.


कांग्रेस ने आग्रह किया कि इसे किसी भी वजह से पारित नहीं किया जाना चाहिए और सरकार द्वारा इसे वापस ले लेना चाहिए. जनता दल (एस) ने भी विधेयक का विरोध किया. यह विधेयक मंगलवार को विधानसभा में पेश किया गया था. इस विधेयक में धर्म की स्वतंत्रता के अधिकार की सुरक्षा और बलपूर्वक, अनुचित प्रभाव, जबरदस्ती, प्रलोभन या किसी भी कपटपूर्ण तरीके से एक धर्म से दूसरे धर्म में गैरकानूनी अंतरण पर रोक लगाने का प्रावधान है.


विधेयक के तहत अपराध गैर-जमानती और संज्ञेय


विधेयक में 25,000 रुपये के जुर्माने के साथ तीन से पांच साल तक की कैद का प्रावधान किया गया है जबकि नाबालिगों, महिलाओं, अनुसूचित जाति / जनजाति के संदर्भ में प्रावधानों के उल्लंघन पर अपराधियों को तीन से दस साल की कैद और कम से कम 50,000 रुपये के जुर्माने का प्रावधान है.


विधेयक में अभियुक्तों को धर्मांतरण करने वालों को मुआवजे के रूप में पांच लाख रुपये तक का भुगतान करने का प्रावधान भी है वहीं सामूहिक धर्मांतरण के मामलों के संबंध में तीन से 10 साल तक की जेल और एक लाख रुपये तक के जुर्माने का प्रस्ताव है. इस विधेयक के तहत किये गए अपराध को गैर-जमानती और संज्ञेय घोषित किया गया  है. 


ध्वनि मत से पारित हुआ विधेयक


सदन ने हंगामे के बीच विधेयक को ध्वनि मत से पारित कर दिया. कांग्रेस के सदस्य आसन के निकट आकर विधेयक का विरोध कर रहे थे. वे विधेयक पर चर्चा को जारी रखने की मांग कर रहे थे जो आज सुबह से शुरू हुई थी. वे चर्चा में हस्तक्षेप के दौरान मंत्री के एस ईश्वरप्पा द्वारा की गई टिप्पणियों पर भी आपत्ति जता रहे थे.


सदन में ‘‘कर्नाटक धर्म की स्वतंत्रता के अधिकार का संरक्षण विधेयक, 2021’’ पर हुई चर्चा में सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) ने आरोप लगाया कि इस विधेयक के लिए सिद्धारमैया नीत पूर्ववर्ती कांग्रेस सरकार जिम्मेदार है. अपने दावे के समर्थन में भाजपा ने कुछ दस्तावेज सदन के पटल पर रखे. इसके बाद कांग्रेस रक्षात्मक मुद्रा में दिखी.


विपक्ष ने विधेयक के पीछे आरएसएस की विचारधारा को बताया जिम्मेदार 


नेता प्रतिपक्ष सिद्धारमैया ने सत्तापक्ष के दावे का खंडन किया. हालांकि बाद में विधानसभा अध्यक्ष कार्यालय में रिकार्ड देखने के बाद उन्होंने स्वीकार किया कि मुख्यमंत्री के रूप में उन्होंने सिर्फ मसौदा विधेयक को कैबिनेट के सामने रखने के लिए कहा था लेकिन कोई निर्णय नहीं लिया गया था. उन्होंने कहा कि इस प्रकार इसे उनकी सरकार की मंशा के रूप में नहीं देखा जा सकता है.


सिद्धारमैया ने आरोप लगाया कि इस विधेयक के पीछे राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) का हाथ है. इस पर मुख्यमंत्री बसवराज बोम्मई ने कहा, "आरएसएस धर्मांतरण के खिलाफ है, यह कोई छिपी बात नहीं है, यह जगजाहिर है. 2016 में कांग्रेस सरकार ने आरएसएस की नीति का अनुकरण करने के लिए अपने कार्यकाल के दौरान विधेयक की पहल क्यों की? ऐसा इसलिए है क्योंकि हिमाचल प्रदेश में कांग्रेस के मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह इसी प्रकार का कानून लाए थे. आप इस विधेयक के एक पक्ष हैं."


मुख्यमंत्री ने विपक्ष पर वोटबैंक की राजनीति करने का लगाया आरोप 


बोम्मई ने कहा कि विधेयक संवैधानिक और कानूनी दोनों है और इसका मकसद धर्मांतरण की समस्या से छुटकारा पाना है. "यह एक स्वस्थ समाज के लिए है... कांग्रेस अब इसका विरोध करके वोट बैंक की राजनीति कर रही है, उनका दोहरा मापदंड अब स्पष्ट है." ईसाई समुदाय के नेताओं ने भी विधेयक का विरोध किया है. विधेयक में दंडात्मक प्रावधानों के अलावा इस बात पर जोर दिया गया है कि जो लोग कोई अन्य धर्म अपनाना चाहते हैं, उन्हें कम से कम 30 दिन पहले निर्धारित प्रारूप में जिलाधिकारी या अतिरिक्त जिलाधिकारी के समक्ष घोषणापत्र जमा करना होगा.


कर्नाटक के गृहमंत्री अरागा ज्ञानेंद्र ने यह विधेयक पेश किया. उन्होंने कहा कि आठ राज्य इस तरह का कानून पारित कर चुके हैं या लागू कर रहे हैं, और कर्नाटक नौवां ऐसा राज्य बन जाएगा.


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