लंदनः वायरस रोकने के लिए काम कर रहे कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों का मानना है कि इस तकनीक से तैयार मास्क एक घंटे में प्राणघातक कोरोना वायरस को नष्ट कर व्यक्ति को सुरक्षित कर सकते हैं. वायरस रोधी परत चढ़ाने की प्रौद्योगिकी को 'डियोक्स' कहा जाता है. 'द डेली टेलीग्राफ' में छपी खबर के मुताबिक मास्क पर वायरस रोधी अदृश्य परत वायरस की बाहरी परत पर हमला कर प्रभावी तरीके से कोरोना वायरस के नए स्वरूपों को भी नष्ट कर सकती है जिनमें ब्रिटेन का कथित केंट वायरस प्रकार और दक्षिण अफ्रीका में मिला कोरोना वायरस का नया प्रकार भी शामिल है.
कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय में केमिकल इंजीनियरिंग एवं बायोटेक्नोलॉजी विभाग में वरिष्ठ प्रवक्ता डॉ. ग्राहम क्रिस्टी ने अखबार से कहा, ''मास्क की सतह पर लगाई गई वायरस रोधी परत वायरस की बाहरी झिल्ली पर हमला कर उसे नष्ट कर देती है. बदलाव करने वाले वायरस में अन्य हिस्सों के विपरीत बाहरी झिल्ली एक समान होती है. इसलिए यह वायरस रोधी परत कोरोना वायरस के नए प्रकार पर भी कारगर होगी.''
उन्होंने कहा, ''यहां तक अगर आप वायरस के पूरे जीनोम में बदलाव कर सकते हैं तो भी उसके खोल पर असर नहीं पड़ेगा. हम उम्मीद कर रहे हैं कि कोरोना वायरस के सभी प्रकार पर यह परत एक समान प्रतिक्रिया करेगी क्योंकि ढांचे के आधार पर सभी लगभग एक समान हैं.''
इस प्रौद्यागिकी को 'डियोक्स' कहा जाता है जो 'क्वाटर्नेरी अमोनियम साल्ट' (जैव यौगिक) पर आधारित है और इसका बड़े पैमाने पर इस्तेमाल कपड़ा उद्योग में जीवाणु रोधी गुण की वजह से होता है.
विशेषज्ञों का कहना है कि वायरस रोधी परत वायरस के प्रोटीन में वृद्धि से प्रभावित नहीं होती जिसका इस्तेमाल वायरस स्वयं में बदलाव के लिए करते हैं. अखबार में प्रकाशित खबर के मुताबिक दोबारा इस्तेमाल किए जाने वाले मास्क को 20 बार तक धोया जा सकता है. हालांकि, इसका प्रभाव धुलाई पर निर्भर है. वैज्ञानिकों ने अध्ययन के दौरान मास्क का परीक्षण कोरोना वायरस एमएचवी-ए59 पर किया जो आनुवांशिकी एवं ढांचे के आधार पर सार्स-कोव-2 के समान है.
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