मुंबई: एंटीलिया विस्फोटक मामले में जिस स्कॉर्पियो गाड़ी का इस्तेमाल किया गया था, वो मनसुख हिरेण की थी. जांच के दौरान पता चला कि मनसुख ने उसी गाड़ी की चोरी की एफआईआर दर्ज करवाई थी. एनआईए फिलहाल एंटीलिया के पास स्कॉर्पियो खड़ी करने और मनसुख हिरेण हत्या की जांच कर रही है, पर मनसुख की गाड़ी चोरी के मामले की जांच अभी भी महाराष्ट्र एटीएस के पास ही है.
महाराष्ट्र एटीएस के डीआईजी शिवदीप लांडे और एसीपी श्रीपाद काले की टीम अब भी जांच कर रही है, ताकि पूरी घटना को ठीक तरह से समझा जा सके. एटीएस के एक अधिकारी ने बताया कि उनकी जांच में सामने आया है कि मनसुख ने विक्रोली पुलिस स्टेशन में झूठी एफआईआर दर्ज करवाई थी. एटीएस इस मामले में जल्द ही "बी समरी" फाइल कर सकती है.
एटीएस ने अब पूरी रिपोर्ट बना ली है, जिसके मुताबिक शाम 7 बजे मनसुख अपनी स्कॉर्पियो विक्रोली में खड़ी कर देता है और फिर ओला पकड़कर रात 8 बजकर 25 मिनट के करीब मनसुख डीसीपी जोन- 1 के ऑफिस के पास पहुंचता है, जहां पर सिग्नल के पास सचिन वाजे की मर्सिडीज़ गाड़ी पहुंचती है. रात करीब 8 बजकर 26 मिनट पर मनसुख उस मर्सिडीज़ कार में आगे की सीट पर बैठ जाता है. इसके बाद गाड़ी सिग्नल पार कर आगे जीपीओ के पास खड़ी होती है और दोनों के बीच 9 मिनट की मीटिंग चलती है. मीटिंग खत्म होने के बाद 8 बजकर 35 मिनट पर मर्सिडीज़ से बाहर निकलता है. मनसुख सड़क पार कर 8 बजकर 36 मिनट पर एक टैक्सी में बैठकर निकल जाता है और उसके पीछे पीछे मर्सिडीज़ भी निकल जाती है.
जांच में एटीएस ने पाया कि स्कॉर्पियो की चाबी मनसुख ने वाजे को दी और फिर वही मर्सिडीज़ कार लगभग 8 बजकर 43 के आसपास कमिश्नर ऑफिस में जाती है. उसके बाद वाजे उस चाबी को अपने किसी ड्राइवर को देता है, जो उस गाड़ी को विक्रोली से ले जाकर वाजे की सोसाइटी साकेत में खड़ी कर देता है.
एटीएस के अनुसार वो स्कॉर्पियो गाड़ी 17 फरवरी से लेकर 20 फरवरी तक साकेत सोसाइटी में थी और फिर 20 से लेकर 24 तारीख तक कमिश्नर ऑफिस के कंपाउंड में खड़ी थी. जिसके बाद वो गाड़ी 24 तारीख को कमिश्नर ऑफिस से निकालकर प्रियदर्शनी ले जाया जाता है, जहां पर वो इनोवा का इन्तेजार करती है और फिर इनोवा के साथ एंटीलिया के पास आती है.
क्या होता है "बी समरी" ?
मनसुख की स्कॉर्पियो गाड़ी चोरी मामले में एटीएस अब बी समरी फाइल करने की तैयारी में है. आपको बता दें कि ये बी समरी कब फाइल की जाती है. जब जांच एजेंसियों को पता चलता है कि यह मामला गलत जानकारी देकर दर्ज कराया गया है या फिर जब जांच एजेंसियों को आरोपी के खिलाफ कोई पुख्ता सबूत नहीं मिलता. ऐसे मामलों में पुलिस खुद शिकायतकर्ता बनकर गलत एफआईआर दर्ज करवाने वाले के खिलाफ मामला भी दर्ज कर सकती है कि यह एफआईआर दर्ज करवाने के पीछे गलत इरादा था. हालांकि मनसुख की मौत हो गई है, ऐसे में पुलिस शिकायत शायद ही करे.
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