मुंबई: मुकेश अंबानी के घर एंटीलिया के पास विस्फोटकों से लदी कार खड़ी करने के मामले और कार के मालिक मनसुख हिरेन की हत्या के आरोप की जांच कर रही एनआईए अब तक मामले की पूरी गुत्थी सुलझा नहीं पाई है. कई ऐसे अहम सवाल हैं, जिनके जवाब अब तक ये जांच एजेंसी हासिल नहीं कर सकी है. इस मामले में 5 गिरफ्तारियों के बावजूद तहकीकात किसी दिशा में आगे बढ़ती नहीं दिख रही.
एनआईए ने इस मामले में अब तक जिन 5 लोगों को गिरफ्तार किया है, उनमें 4 पुलिसकर्मी हैं. एक शख्स नरेश गौर सट्टेबाज है. गिरफ्तार पुलिसकर्मियों में सबसे बड़ा नाम है एपीआई सचिन वाजे, जो मामले की जांच एनआईये के हाथ आने से पहले खुद इस मामले का जांच अधिकारी था. उसी की टीम में काम करने वाले अधिकारी रियाज काजी को भी एनआईए ने गिरफ्तार कर लिया. मुंबई क्राइम ब्रांच में काम करने वाले एक और अधिकारी सुनील माने को भी पकड़ा गया है. इन तीनों के अलावा फर्जी एनकाउंटर में सस्पेंड हुए कॉन्स्टेबल विनायक शिंदे को गिरफ्तार कर लिया गया.
गिरफ्तार लोगों में कुछ पर विस्फोटकों से लदी स्कॉर्पियो कार एंटीलिया के पास पार्क करने का आरोप है, तो कुछ पर कार के मालिक मनसुख हिरेन की हत्या कर उसकी लाश रेतीबंदर की खाड़ी में फेंक देने का. गिरफ्तारियां तो हो गईं हैं, लेकिन 3 महीने बाद भी कई सवालों के जवाब मिलने अभी बाकी हैं.
पहला सवाल ये कि जो जिलेटिन स्टिक स्कॉर्पियो कार से बरामद हुईं उन्हें कौन लाया था और कहां से लाया था? क्या एनआईए को इसकी जानकारी है? अगर जानकारी है तो जिलेटिन सप्लाई करने वाला शख्स अब तक गिरफ्तार क्यों नहीं हो रहा? क्या उस शख्स का नाम नहीं पता चला है या अगर नाम पता चला है तो उसे गिरफ्तार न करने का कोई दबाव है...या फिर नाम पता चल गया है, लेकिन वो इतना शातिर है कि उसके खिलाफ सबूत नहीं मिल रहे.
दूसरी अनसुलझी गुत्थी है जैश उल हिंद नाम के कथित आतंकी संगठन की ओर से भेजे गए धमकी भरे ईमेल की. पहले टेलीग्राम नाम के एप पर संदेश आता है जिसमें अंबानी परिवार को वसूली के लिये धमकी दी जाती है. फिर उसी संगठन के नाम से दूसरा ईमेल आता है जो कि पहले ईमेल को फर्जी बताता है और कहता है कि जैश उल हिंद की ओर से पैसों की कोई मांग नहीं की गई. अब तक ये बात सामने नहीं आई है कि ये ईमेल किसने भेजे थे और किसके कहने पर भेजे थे.
तीसरा और सबसे बड़ा सवाल ये है कि आखिर पूरे मामले का मास्टरमाइंड कौन है? ये बात गले नहीं उतरती कि एक एपीआई रैंक का अफसर सचिन वाजे इतनी बड़ी साजिश रच सकता है और उस साजिश को अंजाम देने के लिये साथी पुलिस अधिकारियों और मुंबई पुलिस की संपत्ति का इस्तेमाल कर सकता है. यहां गौर करने वाली बात ये है कि जब एंटीलिया के पास कार बरामद हुई तो सचिन वाजे को उस मामले का जांच अधिकारी बनाया गया, जबकि वो इलाका क्राइम ब्रांच की दूसरी यूनिट के आधीन आता था. ऐसा क्यों किया गया. ऐसे में शक होता है कि जरूर रैंक में उससे बड़े अधिकारी या कोई राजनीतिक आका या कोई पुलिस महकमें से बाहर का शख्स इस पूरे मामले का मास्टरमाइंड हो सकता है.
इस मामले में एक और भी बड़ा सवाल है. एनआईए जैसी तेजतर्रार एजेंसी को इस गुत्थी को सुलझाने में इतना वक्त क्यों लग रहा है. यही उम्मीद है कि एनआईए बिना किसी राजनीतिक हस्तक्षेप दबाव के काम कर रही है और उसपर किसी विशेष लोगों को बचाने का दबाव नहीं है.