Apollo-1 Mission Failure: इंडियन स्पेस रिसर्च ऑर्गेनाइजेशन (ISRO) बुधवार (23 अगस्त) को चंद्रयान-3 को चांद के सतह पर लैंडिग कराने जा रहा है. अगर भारत इसमें सफल हो जाता है तो वह अमेरिका, रूस और चीन के बाद ऐसा करने वाला चौथा देश बन जाएगा. यह भारत के लिए एक ऐतिहासिक क्षण होगा.
इससे पहले 2019 में इसरो ने चंद्रयान-2 को चांद पर भेजा था. हालांकि, उस समय उसे कामयाबी नहीं मिल सकी. वैसे यह पहला मौका नहीं था जब चांद पर स्पेसक्राफ्ट की सफल लैंडिंग नहीं हो सकी. इससे पहले भी कई बार चांद पर स्पेसक्राफ्ट पहुंचाने की कोशिश नाकाम हो चुकी है.
1967 में शुरू हुआ था अपोले-1 मिशन
ऐसी ही एक कोशिश अमेरिका ने भी की थी. दरअसल, 1967 में अमेरिका ने तीन अंतरिक्ष यात्रियों को चांद पर भेजने और वहां मानवयुक्त स्पेसक्राफ्ट की लैंडिंग के लिए अपोलो-1 मिशन शुरू किया था. हालांकि, अमेरिका को इसमें सफलता नहीं मिल सकी और मिशन में एक भयानक विस्फोट हो गया.
हादसे में मारे गए स्पेस यात्री
हादसे में स्पेसक्राफ्ट में मौजूद गस ग्रिसोम, एड व्हाइट और रोजर चाफी की मौत हो गई. हादसे के वक्त तीनों अंतरिक्षयात्री एक स्पेसक्राफ्ट में बैठकर प्रैक्टिस कर रहे थे, ताकि लॉन्च के बाद अंतरिक्ष में मिशन को अंजाम दिया जा सके.
स्पेसक्राफ्ट में लगी आग
जानकारी के मुताबिक हादसे से पहले मिशन कंट्रोल के इंजीनियरों ने कैबिन के भीतर अधिक ऑक्सीजन फ्लो और प्रेशर बनते देखा. जिसके बाद वहां आग लग गई और अंतरिक्ष यात्री उसमें फंसे रह गए.
स्पेसक्राफ्ट में नहीं था डॉकिंग डिवाइस
कहा जाता है अपोलो 1 के चालक दल को पता था कि उनका क्राफ्ट कभी भी चंद्रमा तक नहीं पहुंच पाएगा. अंतरिक्षयान का उद्देश्य केवल पृथ्वी के ओर्बिट की टेस्टिंग करना था. इसमें कोई भी नेविगेशनल विजार्ड्री या डॉकिंग डिवाइस नहीं था.
स्पेसक्राफ्ट में खराब तकनीक का इस्तेमाल
कई अंतरिक्ष यात्रियों ने को स्पेसक्राफ्ट की खराब वायरिंग, बेकार सॉफ्टवेयर, लीक वाल्व और दर्जनों अनसुलझी तकनीकी समस्याओं के कारण नापसंद था. उन्हें कभी भी उस पर भरोसा नहीं किया था.
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