नई दिल्ली: 1 अप्रैल यानी अप्रैल फूल डे. आखिर वह तारीख आ ही गई जब हम बिना किसी शर्म के किसी का मजाक उड़ा सकते हैं. इस दिन को कई देशों में और अलग-अलग कल्चर में कई शताब्दियों से मनाया जाता रहा है. हालांकि, इसकी उत्पत्ति कहां से हुई, यह अभी भी एक रहस्य है. ऐसा बताते हैं कि अप्रैल फूल डे की शुरुआत यूरोप में हुई मगर आज इसका फैलाव पूरी दुनिया में है.


हालांकि, इतिहासकार अब भी अप्रैल फूल डे की सटीक जड़ों को नहीं ढू़ंढ़ पाए हैं. मगर इस तारीख के बारे में एक विख्यात कथन यह है कि इस दिन को जूलियन से ग्रेगोरियन कैलेंडर में बदलती तारीख के तौर पर मनाया जाता है.


सन् 1582 में पोप ग्रेगोरी XIII ने 1 जनवरी से नए कैलेंडर की शुरुआत की. इसके साथ मार्च के आखिर में मनाए जाने वाले न्यू ईयर के सेलिब्रेशन की तारीख में बदलाव हो गया. कैलेंडर की यह तारीख पहले फ्रांस में अपनाई गई. हालांकि, यूरोप में रह रहे बहुत से लोगों ने जूलियन कैलेंडर को ही अपनाया था. इसके एवज में जिन्होंने नए कैलेंडर को अपनाया उन्होंने उन लोगों को फूल (मूर्ख) कहना शुरू कर दिया जो पुराने कैलेंडर के मुताबिक ही चल रहे थे.


अप्रैल फूल डे के लिए यह मशहूर कथन उन सच्चाईयों को नहीं बयान करता क्योंकि यूरोप के लोगों ने ग्रेगोरियन कैलेंडर को अपना लिया था. जिसका सबूत यह है कि इंगलैंड ने सन् 1752 के तक ग्रेगोरियन कैलेंडर को नहीं अपनाया था और उस दौरान अप्रैल फूल का कॉन्सेप्ट वहां अच्छी तरह से मशहूर था.


अप्रैल फूल को लेकर एक अलग धारणा यह है कि उस दौरान वसंत ऋतु के आने से कई देशों में हड्डियां कंपा देने वाली ठंड से छुटकरा मिलता है, मौसम के इस बदलाव को लोग कई देशों में एक खुशी और उत्सव की तरह मनाते हैं. जैसे भारत में होली के त्योहार के वक्त कुदरती तौर पर वातावरण में कई प्राकृतिक रंग बिखरे रहते हैं, भारत के लोग होली के त्योहार को अलग-अलग राज्यों में प्राकृति की नई उमंग की तरह मनाते हैं. ठीक उसी तरह प्राचीन रोम में 'हिलारिया' उत्सव को मनाने का प्रचलन था. धारणाओं के मुताबिक ईश्वर इस दौरान अपनी आंखें खोलते हैं जिसकी वजह से आस-पास का मौसम सुहाना हो जाता है.