सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार (9 मई) को कहा कि अरावली की रक्षा की जानी चाहिए और दिल्ली, हरियाणा, राजस्थान और गुजरात को अगले आदेश तक पहाड़ी क्षेत्र में खनन गतिविधियों के लिए अंतिम अनुमति नहीं देने का निर्देश दिया.
पीठ ने कहा कि उसके आदेश को किसी भी तरह से वैध खनन गतिविधियों पर रोक लगाने के रूप में नहीं माना जाएगा जो पहले से ही वैध परमिट और लाइसेंस के अनुसार की जा रही हैं.
क्या बोला सुप्रीम कोर्ट?
जस्टिस भूषण रामाकृष्ण गवई और जस्टिस ए.एस. ओका की पीठ ने कहा, 'हम सभी चार राज्यों (जिनसे होकर पहाड़ी श्रृंखला गुजरती है) के लिए यह आदेश पारित कर रहे हैं.' इसने यह स्पष्ट कर दिया कि यह आदेश केवल अरावली पहाड़ियों और इसकी श्रृंखलाओं में खनन तक ही सीमित है.
पीठ ने कहा, 'अगले आदेश तक, हालांकि वे सभी राज्य जहां अरावली पर्वतश्रृंखला स्थित हैं, खनन पट्टों के अनुदान के लिए आवेदन पर विचार और आगे की प्रक्रिया और उनके नवीनीकरण के लिए स्वतंत्र होंगे... लेकिन एफएसआई (भारतीय वन सर्वेक्षण) रिपोर्ट में जैसा परिभाषित है उसके अनुसार, अरावली पहाड़ियों में खनन के लिए कोई अंतिम अनुमति नहीं दी जाएगी.'
सीईसी ने कोर्ट में प्रस्तुत की रिपोर्ट
कोर्ट ने कहा कि केंद्रीय अधिकार प्राप्त समिति (CEC) द्वारा प्रस्तुत एक रिपोर्ट में राजस्थान राज्य भर में की गई विभिन्न अवैध खनन गतिविधियों की ओर इशारा किया गया है और अवैध खनन के तहत क्षेत्र के संबंध में जिलेवार विवरण भी दिया गया है.
उसने पाया कि प्रमुख मुद्दों में से एक विभिन्न राज्यों द्वारा अपनाई गई अरावली पहाड़ियों और श्रृंखलाओं की विभिन्न परिभाषाओं के संबंध में था. पीठ ने अरावली पहाड़ियों और श्रृंखलाओं की एक समान परिभाषा पर पहुंचने के लिए एक समिति के गठन का आदेश दिया.
सुप्रीम कोर्ट में अरावली पहाड़ियों पर बनाई समिति
कोर्ट ने कहा है कि समिति में अन्य लोगों के अलावा, वन एवं पर्यावरण मंत्रालय के सचिव, इन सभी चार राज्यों के वन सचिव और एफएसआई और सीईसी के एक-एक प्रतिनिधि शामिल होंगे. पीठ ने कहा कि समिति दो महीने के अंदर अपनी रिपोर्ट सौंपेगी. कोर्ट इस मामले में आगे की सुनवाई अगस्त में करेगा.