नई दिल्ली: एलएसी पर चीन से चल रहे तनाव के बीच थलसेना प्रमुख जनरल एमएम नरवणे ने गुरूवार को राजस्थान के पोखरण में भारतीय सेना के तोपखाने की ताकत का जायजा लिया. अमेरिका से ली गई अल्ट्रालाइट होवित्जर, एम-777 और करगिल युद्ध में अहम भूमिका निभाने वाली, बोफोर्स तोप की फायर-पावर को खुद थलसेनाध्यक्ष ने पोखरण के रेगिस्तान में देखी. 


सेना ने एक संक्षिप्त बयान जारी कर बताया कि थलसेना प्रमुख जनरल नरवणे एक दिवसीय दौरे पर जैसलमेर के पोखरण फील्ड फायरिंग पहुंचे हैं. इस दौरान जनरल नरवणे ने सेना की आर्टलरी-गन्स यानि तोपों की फायरिंग देखी. इन तोपों में बोफोर्स, एम-777, सारंग और धनुष शामिल हैं. सारंग तोप को हाल ही में ऑर्डनेंस फैक्ट्री बोर्ड (ओएफबी) ने अपग्रेड कर सेना को सौंपा है, जबकि धनुष को ओेएफबी ने हील ही में तैयार किया है.  


आर्टलरी यानि तोपखाने को दुश्मन का अपमानित करने के लिए इस्तेमाल किया जाता है. तोप का इस्तेमाल 'डिग्रेडेशन' यानि दुश्मन की जमीं पर गोले बरसाकर उसके सभी महत्वपूर्ण ठिकानों को नष्ट करने में किया जाता है. यही वजह है कि सैन्य भाषा में इसे दुश्मन को तोप के गोलों से अपमानित करना कहा जाता है. 


करगिल युद्ध में बोफोर्स तोपों की एक महत्वपूर्ण भूमिका को देश आज तक नहीं भूल पाया है. आज भी लोगों के जेहन में वे तस्वीरें जिंदा है जब करगिल की उंची उंची पहाड़ियों पर बैठे पाकिस्तानी सैनिकों और उनके बंकरों को बोफोर्स तोपों ने तबाह किया था. यहां तक की एलओसी पर पाकिस्तान जब युद्धविराम उल्लंघन से बाज नहीं आ रहा था तो भारतीय सेना ने टेरर लॉन्च-पैड्स से लेकर पाकिस्तानी चौकियों पर तोप के गोलों से तबाह कर दिया था. 


इसके बाद ही पाकिस्तान अपनी हरकतों से बाज आया और इसी साल फरवरी के महीने में भारत से युद्धविराम समझौता कर लिया. एलएसी पर चीन से चल रहे तनाव के दौरान भी भारत ने पूरी एलएसी पर अपनी तोप को तैनात कर रखा है. इनमें फील्ड-गन्स से लेकर एम-777 और बोफोर्स शामिल हैं. इस बीच खबर है कि चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ (सीडीएस) जनरल बिपिन रावत ने भी एलओसी के पूंछ और राजौरी सेक्टर का दौरा कर हालात का जायजा लिया और सेना की ऑपरेशन्ल तैयारियों की समीक्षा की.