चीन के साथ हुआ डिसइंगेजमेंट भारत और चीन दोनों के लिए ही जीत वाली स्थिति है क्योंकि किसी भी समझौते में दोनों पक्षों को लगना चाहिए कि उन्हें कुछ हासिल हुआ है. ऐसा कहना है थलसेना प्रमुख जनरल एम एम नरवणे का लेकिन थलसेना प्रमुख ने एलएसी के हालात पर बोलते हुए साफ तौर से कहा कि डिसइंगेजमेंट के बाद डि-एस्कलेशन भी बाकी है.
थलसेना प्रमुख जनरल एम एम नरवणे आज राजधानी दिल्ली में आयोजित एक वेबिनार को संबोधित कर रहे थे. विवेकानंद फाउंडेशन द्वारा आयोजित सेमिनार में थलसेना प्रमुख ने साफ तौर से कहा कि एलएसी पर हुए समझौते के दौरान अभी एक लंबा सफर तय करना है क्योंकि डिसइंगेजमेंट की प्रक्रिया के बाद डि-एस्कलेशन यानि सैनिकों की संख्या को कम करना भी बाकी है. क्योंकि एलएसी के उंचाई वाली इलाकों तक में सैनिकों की तैनाती है.
चीन छोटे-छोटे बदलाव की कोशिश करता है- थलसेना प्रमुख
इसलिए हमें बेहद सावधान रहना है. सेनाध्यक्ष ने साफ तौर से कहा कि उत्तरी सीमा (चीन से सटी एलएसी) पर अभी भी हालात ऐसे हैं कि बूट्स ऑफ ग्राउंड रहेंगे ही (यानि सैनिकों को सीमा पर तैनात रखना ही पड़ेगा). थलसेना प्रमुख ने साउथ चायना सी (दक्षिण चीन सागर) का उदाहरण देते हुए कहा कि चीन की ये आदत है कि छोटे-छोटे बदलाव की कोशिश करता है, जो देखने में बहुत बड़ा नहीं होता है.
लेकिन क्योंकि पहले चीन की इन हरकतों का कोई विरोध नहीं होता था, इसलिए चीन बिना गोली चलाए या फिर सैनिकों के नुकसान के अपने मकसद में कामयाब हो जाता था. लेकिन थलसेना प्रमुख ने दो टूक कहा कि ये एलएसी पर बर्दाश्त नहीं किया जाएगा.
दोनों देशों के बीच विश्वास की कमी है- जनरल नरवणे
जनरल नरवणे के मुताबिक, एलएसी पर हुए टकराव के दौरान दोनों देशों के बीच विश्वास की कमी है इसलिए चीन भी हमें बारीकी से देख रहा है. थलसेना प्रमुख ने साफ तौर से कहा कि हमें अगर एक पड़ी ताकत बनना है तो सिर्फ विदेशी हथियारों और सैन्य साजो सामान पर निर्भर नहीं रहना होगा, बल्कि स्वदेशी हथियारों के जरिए क्षमता बढ़ानी होगी.
ये इस तरह की क्षमता होनी चाहिए जो भविष्य में होने वाले खतरों से भी निपटने में सक्षम हो. जनरल नरवणे ने कहा कि पारंपरिक-सैन्य क्षमता के साथ-साथ भारत आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस, साइबर, स्पेस और ड्रोन तकनीक जैसे मल्टी डोमेन ऑपरेशन्स में भी काफी प्रभावी कदम उठा रहा है.
जनरल नरवणे के मुताबिक, अमेरिका और चीन की प्रतिस्पर्धा के कारण चीन हमारे उत्तर-पूर्व के राज्यों से सटे देशों में भी अपने पांव पसार रहा है और इसका प्रभाव हमारी सीमाओं पर भी पड़ रहा है. लेकिन उन्होनें कहा कि उत्तर-पूर्व के राज्यों में उग्रवाद और आतंकवाद बेहद कम हो गया है, इसलिए उत्तर-पूर्व राज्यों की आंतरिक-सुरक्षा अब असम राईफल्स करेगी और इंफेंट्री रेजीमेंट्स को सीमा (एलएसी) पर भेज दिया गया है.
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