राजौरी: जम्मू-कश्मीर में एलओसी की सुरक्षा और आतंकियों के सफाए के साथ-साथ भारतीय सेना दूर-दराज के सीमावर्ती इलाकों में नौजवानों को मुख्यधारा से जुड़ने के लिए ना केवल प्रेरित कर रही है बल्कि उन्हें गाईडेंस और कोचिंग भी दे रही है. इसी का नतीजा है कि आज जम्मू कश्मीर के दूरस्थ इलाकों के युवा-युवतियां पुलिस, पैरामिलिट्री फोर्स और सेना में अधिकारी के पद पर चुने जा रहे हैं.


एलओसी के राजौरी सेक्टर के एक ऐसे ही युवा, भूपिदंर सिंह से एबीपी न्यूज़ की मुलाकात हुई. राजौरी जिले के एक बेहद ही दूरस्थ गांव के रहने वाले भूपिंदर 11वीं कक्षा से ही राष्ट्रीय राइफल्स (आरआर) की एक 63 बटालियन द्वारा कालाकोट में चलाए जा रहे कोचिंग सेंटर से जुड़ गए थे. इसी का नतीजा है कि वे एनडीए और आईएमए से पास आउट होकर अब सेना में लेफ्टिनेंट के पद पर सेना में देश की सेवा और सुरक्षा से जुड़ गए हैं. सेना में ट्रेनिंग पूरी कर चुके भूपिंदर को जल्द ही सेना में अपनी पहली पोस्टिंग मिलने जा रही है.


भूपिंदर सिंह अकेले ऐसे युवा नहीं हैं, एबीपी न्यूज़ को यहां बड़ी संख्या में ऐसे युवक युवतियां मिले जो बीएसएफ, आईटीबीपी और जम्मू-कश्मीर पुलिस में भर्ती होने जा रहे हैं. ये सभी सेना के अलग अलग सेंटर्स में अपना करियर बनाने के लिए कोचिंग और यहां तक की फिजिकल ट्रेनिंग ले रहे हैं. सेना इन सभी को 'सन ऑफ द सोइल' पॉलिसी के तहत मुख्य-धारा में लाना चाहती है.



दरअसल, दूर-दराज का इलाका होने के चलते यहां उच्च शिक्षा और नौकरी से ज्यादा संसाधन नहीं मिल पाते हैं लेकिन क्योंकि सेना की तैनाती इन सभी दूरस्थ इलाकों में होती है इसलिए सेना ने यहां के लोगों के लिए मदद का हाथ बढ़ाया है. ये हाथ भले ही दुश्मन और आतंकियों के लिए लोहे का हो लेकिन स्थानीय लोगों के लिए इसपर मखमली ग्लब्स पहन लिए हैं ('लोहे के मुक्के पर मखमली दस्ताना').


सीमावर्ती गांवों के युवाओं को देश की मुख्यधारा में शामिल करने के लिए प्रेरित करने के साथ साथ यहां के लोगों के बीच सांप्रदायिक सदभावना बनाए रखने में भी मदद करती है. इ‌सके लिए अलग अलग धर्म के लोगों के बीच सौहार्द बनाए रखने के लिए खास आयोजन किए जाते हैं. इन आयोजनों में धर्म-गुरूओं को बुलाकर उनसे लोगों के बीच भाई-चारे का संदेश दिया जाता है. साथ ही कट्टरपंथी विचारधारा, हिंसा और आतंकवाद से दूर रहने पर जोर दिया जाता है.


सेना की अखनूर स्थित एक बटालियन ने तो सीमावर्ती गांव की तीन गरीब परिवारों की बच्चियों को 'एडॉप्ट' तक कर रखा है. इन तीन बच्चियों की स्कूल की फीस से लेकर कपड़े और बाकी जरूरतों को भी सेना ही पूरी करती है. इन बच्चियों में से एक के पिता इस दुनिया में नहीं हैं, तो एक के पिता लकवाग्रस्त हैं. सेना की सरपरस्ती में ये सभी बच्चियां अब पुलिस की नौकरी करना चाहती है तो कोई बैंक में और एक बड़े होकर आईएएस बना चाहती है.


इसके अलावा एलओसी के जंगलों में रहने वाले गुर्जर और बक्करवाल समुदाय के लोगों के लिए समय समय पर मेडिकल कैंप और विकलांग लोगों के लिए कत्रिम-हाथ और पैर तक मुहैया कराए हैं.


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