नई दिल्ली: निकट भविष्य में युद्धक्षेत्र और युद्धकला में आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस (आईए) का इस्तेमाल रचनात्मक और सुरक्षात्मक के साथ साथ विध्वंसक तरीके से करने की तैयारी में भारतीय सेना जुट गई है. हिसार में आईए सम्मेलन में सेना की सप्तशक्ति कमान के कमांडर ने इस बात का दावा किया. आपको बता दें कि चीनी सेना रक्षा क्षेत्र में बेहद तेजी से आईए का इस्तेमाल कर रही है. आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस का युद्धक्षेत्र और युद्धकला में किस तरह इस्तेमाल किया जा सकता है इसके लिए भारतीय सेना ने हरियाणा के हिसार मिलिट्री स्टेशन पर एक सम्मलेन का आयोजन किया.


इस सम्मेलन में सेना के बड़े अधिकारियों के साथ साथ वैज्ञानिक, रक्षा क्षेत्र की कंपनियों और साइबर एक्सपर्ट्स ने हिस्सा लिया. सेना की जयपुर स्थित सप्तशक्ति कमान (दक्षिण-पश्चिमी कमान) ने इस सम्मेलन का आयोजन किया जिसका उद्देश्य था 'एम्पॉवरिंग आवर सोल्जर्स फॉर टूमोरो: इंफाइनैट पोसेबिल्टीज़' यानि ‌सैनिकों को भविष्य के लिए कैसे ताकतवर बनाएं‌ उसके लिए असीम संभावनाएं हैं.


सम्मेलन का मकसद था कि सेना की मैकेनाइजड वॉरफेयर यानि टैंक और आईसीवी व्हीकल्स (इंफेंट्री कॉम्बेट व्हीकल्स) के युद्ध में आर्टिफिशयल इंटेलीजेंस का कैसे इ‌स्तेमाल किया जाए. इसके लिए सेना के अधिकारियों ने बताया कि आधुनिक युग के युद्ध में मशीन और ड्रोन्स का ज्यादा ज्यादा इस्तेमाल किया जाना चाहिए. इसे दो तरह से समझा जा सकता है. पहला ये कि जब भी दुश्मन के टैंक और आईसीवी व्हीकल्स मूव करती हैं उन्हें अपनी सीमा में घुसने से पहले या फिर फायरिंग से पहले 'ड्रोन स्वार्मिंग' यानि एक साथ बड़ी तादाद में ड्रोन्स से हमला कर तबाह कर देना चाहिए. इस तरह का प्रयोग रूस ने क्रीमिया युद्घ के दौरान यूक्रेन के खिलाफ किया था.


दूसरा, ये कि जब भी टैंक और आईसीवी की मूवमेंट हो उससे पहले उनके आगे आसमान में ड्रोन के जरिए रेकी करने के लिए आगे उड़ाया जा सकता है. ये ड्रोन ना केवल बताएंगे कि युद्धक्षेत्र में क्या कोई खतरा है या नहीं. साथ ही अगर कोई मिसाइल से हमला हो रहा है वो भी ये ड्रोन बता सकते हैं. साथ ही टैंक और आईसीवी व्हीकल्स पर भी ऑप्टिकल रडार कैमरा लगा सकते हैं ताकि टैंक कमांडर को आगे क्या खतरा हो सकता है पता चलता रहे.


इसके लिए रक्षा क्षेत्र में करीब 600 स्टार्ट-अप्स काम कर रही हैं ताकि सैनिकों की मदद की जा सके. इनमें एक कंपनी ने रोबोट भी तैयार किए हैं जो युद्ध के मैदान में सेना की मदद कर सकते हैं. इसके अलावा आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस (आईए) की मदद से कानपुर की छोटी कंपनी, हंस एनर्जी ने एक ऐसी खास चिप बनाई है जिसे अगर किसी गन या राइफल में फिट कर दिया जाए तो ये तक पता चल सकता है कि इस गन सए कितने राउंड फायर किए गए हैं या फिर कब और कहां इ‌स्तेमाल हुई है. इस तकनीक के लिए कंपनी ने इजरायल की मदद ली है.



इस मौके पर बोलते हुए सप्तशक्ति कमान के कमांडर, लेफ्टिनेंट जनरल आलोक क्लेर ने कहा कि अगले 2-3 साल में सेना आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस पूरी तरह से इस्तेमाल करने लगेगी. इसमें डेस्ट्रक्टिव (destructive) तकनीक भी शामिल होगी. हालांकि उन्होनें कहा कि अभी भी सेना नाइट विजन डिवाइस इत्यादि में एआई का इ‌स्तेमाल कर रहे हैं लेकिन जबतक पूरी तरह नेटवर्किंग सिस्टम नहीं होगा हम इस तकनीक का पूरी तरह से इस्तेमाल नहीं कर पाएंगे.


सेना की दक्षिण पश्चिम कमान के कमांडर आलोक क्लेर ने कहा है कि निकट भविष्य में सेना में आर्टिफिशल इंटेलिजेंस का रचनात्मक, रक्षात्मक और विध्वंसक इस्तेमाल शुरू होगा. उन्होंने कहा कि भविष्य में होने वाली लड़ाइयों में आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस का इस्तेमाल होगा, इसकी शुरुआत रचनात्मक इस्तेमाल से होगी और इसके बाद इसका विध्वंसक प्रयोग भी किया जाएगा. हिसार मिलिट्री स्टेशन में आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस पर आयोजित सेमिनार में क्लेर ने कहा कि मैकेनाइज़्ड फोर्सेज में इसका प्रयोग सबसे पहले होगा. आपको बता दें कि हिसार में भारतीय सेना की 33वीं आर्मर्ड कोर डिवीजन है जिसमें टैंक और आईसीवी व्हीकल्स होती हैं.


आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस यानी कृत्रिम बुद्धिमता उच्च स्तरीय तकनीक से जुड़ा ऐसा विज्ञान है जिसके तहत इंसानी व्यहवार की नकल करने की कोशिश की जाती है. मनुष्यों में सोचने, समझने और सीखने की क्षमता होती है. आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस का अर्थ ऐसे सिस्टम्स का विकास करना है जिसमें आर्टिफिशियल तरीके से सोचने, समझने और सीखने की क्षमता पाई जाए. उसका व्यवहार और रिएक्शन मानव से बेहतर हो.