नई दिल्ली: भारतीय सेना ने साफ किया है कि एलओसी पर कहीं भी फेंस यानि कटीली तार नहीं हटाई गई है. ना ही एलओसी पर युद्ध जैसे हालात हैं कि भारतीय सेना को नीलम नदी पार कर पीओके में दाखिल होना पड़े. लेकिन सेना ने इस बात की तस्दीक की है कि हाल ही में पाकिस्तान द्वारा किए गए बैट एक्शन का खामियाजा पाकिस्तानी सेना को भुगतना पड़ेगा.
भारतीय सेना के टॉप-सूत्रों ने एबीपी न्यूज़ से साफ कहा कि एलओसी से कहीं पर भी फेंस नहीं हटाई गई है. ये भारतीय सेना के खिलाफ दुष्प्रचार है. लेकिन सूत्रों ने साफ किया कि साल 2016 में उरी के बाद हुई सर्जिकल स्ट्राइक के बाद से भारतीय सेना एलओसी को 'डोमिनेट' कर रही है. ऐसे में हाल ही में सुंदरबनी सेक्टर में हुई पाकिस्तानी सेना की कायरना हरकत का खामियज़ा पाकिस्तान को भुगतना पड़ेगा. यही वजह है कि एलओसी पर कई जगह गोलाबारी चल रही है जिसमें पाकिस्तानी सेना को बड़ा नुकसान उठाना पड़ा है.
दरअसल, हाल ही में पाकिस्तानी विदेश मंत्री शाह महमूद कुरैशी ने संयुक्त राष्ट्र (यूएन) को चिठ्ठी लिख आरोप लगाया था कि भारतीय सेना ने एलओसी के पांच सेक्टर से फेंस हटा दी है. साथ ही मिसाइल और टैंकों को एलओसी के करीब मूव कर दिया है. लेकिन भारतीय सेना ने पाक विदेश मंत्री के सभी आरोपों को एक सिरे से खारिज कर दिया. सूत्रों का कहना है कि पाकिस्तान ने उन इलाकों को देख लिया होगा जहां पहले से ही कटीली तार नहीं है. एलओसी पर कुछ इलाके ऐसे हैं जहां वहां की 'टेरेन' (यानि उंची और दुर्गम पहाडियों) को देखकर फेंस पहले से ही नहीं लगाई गई थी.
सेना मुख्यालय के एक दूसरे सूत्र ने सोशल मीडिया पर चल रही फेक न्यूज को एक सिरे से खारिज करते हुए कहा कि भारतीय सेना ने ना ही नीलम नदी पार की है और ना ही पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर (यानि पीओके) के केरन इलाके पर कब्जा किया है. नीलम नदी को सिर्फ युद्ध की परिस्थिति में ही पार किया जायेगा. दरअसल, नीलम घाटी में नीलम नदी भारत और पाकिस्तान के बीच एलओसी का काम करती है. नीलम नदी (जिसे भारत में किशनगंगा भी कहा जाता है) के दोनों तरफ केरन गांव है. एक गांव भारत का हिस्सा है और दूसरा पाकिस्तान के कब्जे में. पिछले कुछ दिनों से सोशल मीडिया पर इस तरह की खबरों को प्रचारित किया जा रहा था कि भारतीय सेना ने एलओसी पार कर पाकिस्तान के कब्जे वाली नीलम घाटी में कब्जा कर लिया है.
शुक्रवार को ही थलसेना प्रमुख ने एबीपी न्यूज संवाददाता सहित कुछ चुनिंदा पत्रकारों से सोशल मीडिया पर चल रही फेक न्यूज़ और सेना के खिलाफ चल रहे दुष्प्रचार को लेकर चिंता जताई थी. उन्होनें इस तरह के दुष्प्रचार के खिलाफ लड़ाई में मुख्यधारा की मीडिया को साथ देने का अनुरोध तक किया था.
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