नई दिल्लीः सेना ने साफ कर दिया है कि कश्मीर में जबतक युद्धविराम को लेकर फैसला नहीं हो जाता, तबतक आतंकियों के खिलाफ सेना की कार्यवाही जारी रहेगी. सेना मुख्यालय के उच्चपदस्थ सूत्रों ने एबीपी न्यूज को ये भी बात कही. सूत्रों ने ये भी बताया कि युद्धविराम लागू करने या ना करने को लेकर सेना की कोई सीधे भूमिका नहीं है. इसपर आखिरी फैसला सरकार को करना है.
सूत्रों के मुताबिक, युद्धविराम को लेकर सेना सरकार को अपनी राय दे सकती है, फैसला नहीं कर सकती. आतंकियों के खिलाफ ऑपरेशन बंद कर दिए जाए इसका फैसला सरकार (केन्द्र और राज्य दोनों), पुलिस और आतंकी संगठनों को करना है.
गौरतलब है कि जम्मू कश्मीर की मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ती ने हाल ही में केन्द्र सरकार से अपील की है कि आने वाले रमजान के महीने और अमरनाथ यात्रा के दौरान कश्मीर घाटी में सुरक्षाबलों द्वारा एकतरफा युद्धविराम घोषित कर दिया जाए, ताकि स्थानीय लोगों को आतंकियों के खिलाफ चल रही कार्यवाही से कोई परेशानी ना हो. लेकिन सूत्रों ने साफ कर दिया कि जबतक सीजफायर पर फैसला नहीं हो जाता तबतक सेना का ऑपरेशन 'ऑल आऊट' जारी रहेगा.
सूत्रों के मुताबिक, पिछले एक-डेढ़ साल में सेना, सीआरपीएफ और पुलिस ने ज्वाइंट ऑपरेशन में कश्मीर घाटी में आतंकियों का बड़ा सफाया किया है. मारे गए आतंकियों में टॉप कमांडर्स शामिल हैं. इसी का नतीजा है कि घाटी में आतंकी तंजीमों का कोई बड़ा कमांडर नहीं बचा है.
आपको बता दें कि इस वक्त लश्कर ए तैयबा और जैश ए मोहम्मद का कश्मीर में कोई कमांडर नहीं है. दोनों ही आतंकी संगठन का संचालन पाकिस्तान से होता है. स्थानीय संगठन समझे जाने वाले, हिजबुल मुजाहिद्दीन के भी वे सभी टॉप कमांडर मार दिए गए हैं जो कभी बुरहान वानी के साथी थे. इस वक्त हिजबुल के तीन आतंकी ही ए प्लस प्लस (ए++) कैटेगरी के बचे हैं. ये हैं रियाज नाइकू, जीनतउल इस्लाम और अल्ताफ कचरू.
लश्कर, जैश और हिजबुल के अलावा एक और आतंकी संगठन कश्मीर में सक्रिय है. ये है जाकिर मूसा का अंसार गजावत उल हिंद. जाकिर मूसा पहले हिजबुल से जुड़ा था लेकिन करीब एक साल पहले इसने अपना अलग संगठन खड़ा कर लिया और अल-कायदा से अपने आप को जोड़ लिया.
सेना के सूत्रों ने हालांकि साफ किया कि वर्ष 2000 में जब वाजपेयी सरकार के दौरान युद्घविराम लागू किया गया था तब भी वो इतना सफल नहीं हुआ था. यहां तक की उसी दौरान ही आतंकियों ने श्रीनगर एयरपोर्ट पर हमला किया था. उस वक्त इस युद्घविराम को निको (एनआईसीओ) यानि नॉन इनीशियटेड कॉम्बेट ऑपरेशन कहा जाता था. इसे नवम्बर 2000 से मई 2001 तक लागू किया गया था.