Article 370: घाटी में कर्फ्यू, नेताओं की नजरबंदी और हजारों सुरक्षाबल...जम्मू-कश्मीर से कुछ ऐसे हुआ धारा 370 का खात्मा
Article 370 Abrogation: 4 अगस्त की शाम तक जम्मू-कश्मीर की पूर्व मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ती, फारूक अब्दुल्ला, उमर अब्दुल्ला समेत तमाम कश्मीरी नेताओं को नजरबंद कर दिया गया.
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Article 370 Abrogation: अमरनाथ यात्रा को अचानक रोक दिया गया, जम्मू-कश्मीर के तमाम नेताओं को नजरबंद किया जाने लगा, इंटरनेट सेवाएं बंद कर दी गईं, कर्फ्यू लगा और CRPF की कई कंपनियों को घाटी में तैनात कर दिया गया... 5 अगस्त 2019 से ठीक पहले केंद्र सरकार की तरफ से ये सब किया गया तो किसी को जरा सा भी अंदाजा नहीं था कि क्या होने जा रहा है. लोग तरह-तरह के कयास लगाने लगे, किसी ने इसे बड़े आतंकी हमले से जोड़कर देखा तो कोई कश्मीर में कुछ बड़ा होने का दावा कर रहा था. किसी को जरा सी भी भनक नहीं थी कि इस पूरी हलचल की स्क्रिप्ट दिल्ली के संसद भवन में पढ़ी जाएगी.
जब गृहमंत्री अमित शाह ने किया ऐलान
5 अगस्त 2019 को अमित शाह जैसे ही संसद में आए उनके तेवर कुछ और थे. कश्मीर का जिक्र छिड़ते ही उन्होंने खड़े होकर ये ऐलान कर दिया कि सरकार ने कश्मीर से आर्टिकल 370 को हटाने का फैसला किया है. इस ऐलान के साथ ही संसद में मौजूद तमाम विपक्षी सांसद और देशभर के लोग चौंक गए. किसी को जरा भी अंदाजा नहीं था कि सरकार आर्टिकल 370 हटाने जैसा बड़ा फैसला लेने जा रही है.
अमित शाह ने जैसे ही ये ऐलान किया तो विपक्षी सांसदो ने इसे लेकर विरोध शुरू कर दिया, इस दौरान अमित शाह ने पीओके का भी जिक्र छेड़ दिया. उन्होंने तेज आवाज में कहा कि जम्मू-कश्मीर भारत का अभिन्न अंग है... कश्मीर की सीमा में पीओके भी आता है, जान दे देंगे इसके लिए... जब विपक्ष ने कहा कि कश्मीर में इतने बड़े फैसले के बाद हालात बिगड़ सकते हैं तो अमित शाह ने जवाब देते हुए कहा कि इसके लिए पूरी तैयारी की गई है.
बीजेपी के एजेंडे में था 'आर्टिकल 370'
ज्यादातर विपक्ष में बैठने वाली बीजेपी ने नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में साल 2014 के लोकसभा चुनाव में बड़ी जीत दर्ज की. इसके बाद मोदी सरकार की तरफ से तमाम बड़े और विवादित फैसले लिए गए. आर्टिकल 370 की सुगबुगाहट तो थी, लेकिन हर कोई ये सोच रहा था कि सरकार बनते ही बीजेपी इतना बड़ा फैसला नहीं ले सकती. ऐसा ही हुआ और पांच साल में बीजेपी ने इसे लेकर ज्यादा जिक्र नहीं किया. लेकिन बीजेपी के घोषणापत्र में हर बार इस मुद्दे को प्रमुखता से जगह दी जा रही थी. क्योंकि ये मुद्दा बीजेपी के लिए नया नहीं था, जनसंघ के दौर से ये पार्टी के मुख्य एजेंडे में शामिल था.
इसके बाद साल 2019 आया, एक बार फिर लोकसभा चुनाव हुए और विपक्ष ने मोदी सरकार के खिलाफ लड़ने का पूरा जोर लगा दिया, लेकिन इस बार बीजेपी ने प्रचंड बहुमत के साथ सत्ता में वापसी कर दी. ये बहुमत 2014 से काफी ज्यादा था. बीजेपी ने अकेले लोकसभा की 303 सीटों पर कब्जा कर लिया. बताया जाता है कि यहीं से आर्टिकल 370 के ताबूत में कील ठोकने का काम शुरू हो गया था.
2019 में जीत के बाद शुरू हुई तैयारी
चुनाव में जीत के बाद मोदी सरकार का भव्य शपथ ग्रहण हुआ. 2019 जून में कश्मीर को लेकर हलचल तब शुरू हुई जब मोदी सरकार ने पीएमओ में संयुक्त सचिव रहे और नक्सलियों के खिलाफ खास ऑपरेशन चलाने वाले बीवीआर सुब्रमण्यम को जम्मू-कश्मीर का मुख्य सचिव बनाकर भेजा. हालांकि सभी ने इसे रूटीन बदलाव माना, लेकिन जुलाई में राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजित डोभाल भी कश्मीर दौरे पर गए, जहां उन्होंने तीन दिन तक सुरक्षा का जायजा लिया. डोभाल के दौरे को काफी अहम माना गया.
इसके बाद खबर आई कि कश्मीर में सीआरपीएफ की करीब 100 कंपनियों को तैनात किया जा रहा है. इसे भी एहतियात के तौर पर उठाया जा रहा कदम बताया गया. लेकिन जब अमरनाथ यात्रियों को वापस बुलाने की गाइडलाइन जारी हुई तो सभी के कान खड़े हो गए, हर किसी को लगने लगा था कि अब कुछ बड़ा होने जा रहा है. सरकार ने इसे आतंकी हमले को लेकर उठाया जा रहा कदम बताया.
आखिर तक बना रहा सस्पेंस
इसके बाद 4 अगस्त की शाम तक जम्मू-कश्मीर की पूर्व मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ती, फारूक अब्दुल्ला, उमर अब्दुल्ला समेत तमाम कश्मीरी नेताओं को नजरबंद कर दिया गया. मीडिया में इसे लेकर हलचल शुरू हो गई और तमाम तरह के कयास लगाए जाने लगे. लेकिन आर्टिकल 370 को खत्म किए जाने की बात लीक नहीं हुई. ऐसा इसलिए क्योंकि इस बात की जानकारी सिर्फ तीन या चार लोगों को ही थी. गृहमंत्री अमित शाह ने इस टॉप सीक्रेट रखा और आखिरी पल तक सस्पेंस बनाए रखा. 5 अगस्त की सुबह संसद में आर्टिकल 370 के खात्मे का ऐलान हुआ और सरकार के इस फैसले का ज्यादातर लोगों ने स्वागत किया. यही कारण है कि आज भी बड़ी चुनावी रैलियों में बीजेपी नेता इसका जिक्र कर इसे अपनी बड़ी उपलब्धि बताते हैं.
370 खत्म होने के बाद कश्मीर के हालात
आर्टिकल 370 खत्म होने के बाद कश्मीर में पूरी तरह से लॉकडाउन लगा दिया गया. हर गली और चौराहे पर सुरक्षाबलों का पहरा था. साथ ही तमाम बड़े और छोटे नेता या तो नजरबंद थे या फिर उन्हें जेल में डाल दिया गया. करीब 1 साल तक यही सब चलता रहा. विपक्ष आरोप लगाता रहा कि कश्मीर में मानवाधिकारों का हनन हो रहा है, लोगों की जिंदगी जेल की तरह हो चुकी है. विदेशी संगठनों की तरफ से भी इसकी आलोचना हुई. करीब डेढ़ साल बाद कश्मीर में धीरे-धीरे सुरक्षा कम की गई और इंटरनेट जैसी सुविधाएं लोगों को मिलनी शुरू हो गईं. इसके साथ ही कश्मीर के नेताओं की रिहाई भी शुरू हो गई.
फिलहाल आर्टिकल 370 खत्म हुए तीन साल बीत चुके हैं, लेकिन कश्मीर में बहुत बड़ा बदलाव नहीं देखा जा रहा है. सरकार ने दावा किया था कि इस फैसले के बाद कश्मीर की तस्वीर ही बदल जाएगी. लेकिन फिलहाल ऐसा कुछ होता नजर नहीं आ रहा है, आतंकी घटनाओं में कोई खास कमी नहीं आई है. वहीं लगातार आतंकी टारगेट किलिंग कर रहे हैं. प्रवासी लोगों का कश्मीर से पलायन जारी है. कश्मीर के नेता लगातार चुनाव की मांग कर रहे हैं, लेकिन फिलहाल सरकार की तरफ से इसे लेकर कोई संकेत नहीं दिए गए हैं.
यानी कुल मिलाकर कश्मीर के लोगों की जिंदगी अब भी उतनी ही मुश्किल नजर आती है, जितनी पहले हुआ करती थी. वहां रहने वाले लोगों को उम्मीद है कि चुनाव होने के बाद हालात स्थिर होंगे और देश के बाकी हिस्सों की तरह वो भी खुलकर अपनी जिंदगी जी पाएंगे, साथ ही उनके बच्चों का भविष्य भी बेहतर होगा.
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