Article 370 Case: जम्मू-कश्मीर का विशेष दर्जा खत्म किए जाने के खिलाफ कोर्ट में चल रही सुनवाई के दौरान बुधवार (23 अगस्त) को वकील और कांग्रेस नेता मनीष तिवारी ने आशंका जताई कि पूर्वोत्तर भारत के राज्यों के साथ भी ऐसा किया जा सकता है. इसपर सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि जब आपके पास अनुच्छेद 370 पर कहने को कुछ नहीं, तो हम आपको क्यों सुनें?
मनीष तिवारी की दलील का केंद्र सरकार के वकील ने तीखा विरोध किया. जजों ने भी कहा कि किसी की आशंकाओं पर कोर्ट सुनवाई नहीं करता है.
कांग्रेस नेता की तरफ से पेश हुए थे मनीष तिवारी
अरुणाचल प्रदेश के एक कांग्रेस नेता के लिए पेश मनीष तिवारी ने अपनी जिरह शुरू करते ही कहा कि जिस तरह से अनुच्छेद 370 को बेअसर कर जम्मू-कश्मीर का विशेष दर्जा खत्म किया गया है, उससे पूर्वोत्तर के लोगों के मन भी आशंका है. उन्हें लग रहा है कि पूर्वोत्तर राज्यों के लिए अनुच्छेद 371 और दूसरे प्रावधानों के तहत की गई विशेष व्यवस्था को भी खत्म किया जा सकता है.
'यह बयान शरारतपूर्ण'
केंद्र सरकार का पक्ष रखने के लिए कोर्ट में मौजूद सॉलिसीटर जनरल तुषार मेहता ने तुरंत इसका विरोध किया. उन्होंने कहा कि यह बयान शरारतपूर्ण हो सकता है. न ऐसी कोई आशंका है, न किसी को ऐसी अपने बयान के ज़रिए ऐसी आशंका पैदा करने की ज़रूरत है. मेहता ने बताया कि उन्हें सरकार से कोर्ट को यह बताने का निर्देश दिया गया है कि पूर्वोत्तर भारत के राज्यों के दर्जे में बदलाव करने का उसका कोई विचार नहीं है.
तुषार मेहता ने कहा, "जम्मू-कश्मीर में लागू अनुच्छेद 370 एक अस्थायी व्यवस्था थी. इसे अब राष्ट्रहित में खत्म कर दिया गया है. पूर्वोत्तर के राज्यों के लिए जो विशेष व्यवस्था की गई है, उसका इससे कोई संबंध नहीं है. वह व्यवस्था बनी रहेगी."
केंद्र के इस बयान को रिकॉर्ड पर लेते हुए सुप्रीम कोर्ट ने उस आवेदन का निपटारा कर दिया जिसकी पैरवी करने मनीष तिवारी पेश हुए थे. 5 जजों की संविधान पीठ की अध्यक्षता कर रहे चीफ जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़ ने कहा, "यह सुनवाई जम्मू-कश्मीर के बारे में है. हम पूर्वोत्तर भारत की बात कर इसका दायरा बढ़ाना नहीं चाहते. वैसे भी, केंद्र के स्पष्ट बयान के बाद इस विषय पर चर्चा की कोई ज़रूरत नहीं."
'सत्यपाल मलिक का बयान बाद में दिया गया'
अनुच्छेद 370 को बेअसर किए जाने का विरोध कर रहे एक याचिकाकर्ता की तरफ से जम्मू-कश्मीर के पूर्व राज्यपाल सत्यपाल मलिक के बयान की चर्चा की गई. एक वेबसाइट को दिए गए इंटरव्यू में मलिक ने कहा था कि वह जम्मू-कश्मीर के राज्यपाल यह, लेकिन उन्हें नहीं पता था कि 370 को लेकर केंद्र सरकार क्या करने जा रही है. उनसे कोई चर्चा नहीं की गई.
याचिकाकर्ता के लिए पेश वकील नित्या रामाकृष्णन ने कहा, "न तो अनुच्छेद 370 हटते समय राज्य में विधानसभा थी, न राज्य सरकार का दायित्व संभाल रहे राज्यपाल से ही चर्चा की गई. इसका मतलब यही है कि राज्य के लोगों की इच्छा जाने बिना केंद्र ने खुद फैसला ले लिया." इस पर बेंच के सदस्य जस्टिस संजय किशन कौल ने कहा कि सत्यपाल मलिक का बयान Post Facto था. यानी वह बयान उन्होंने घटना के दौरान या पद पर रहते हुए नहीं, उसके काफी बाद दिया.
याचिकाकर्ता पक्ष की जिरह पूरी
जम्मू-कश्मीर पर सुप्रीम कोर्ट में चल रही सुनवाई का आज (23 अगस्त) नौवां दिन था. राज्य का विशेष दर्जा खत्म कर उसे 2 केंद्र शासित क्षेत्रों में बांटने का विरोध कर रहे याचिकाकर्ता पक्ष ने अपनी दलीलें आज पूरी कर लीं. कल यानी गुरुवार, 24 अगस्त से केंद्र सरकार अपना पक्ष रखना शुरू करेगी.