नई दिल्ली: जम्मू-कश्मीर में मोबाइल-इंटरनेट सेवा बंद करने और लोगों की आवाजाही पर रोक के खिलाफ दाखिल याचिकाओं पर सुप्रीम कोर्ट आज फैसला देगा. याचिकाकर्ताओं का कहना है कि पाबंदियां अवैध तरीके से लगाई गई. इनके जरिए लोगों के मौलिक अधिकारों का हनन किया गया. अनुच्छेद 370 हटाने का फैसला हुए कई महीने हो गए, लेकिन अब भी कई तरह के प्रतिबंध जारी हैं.


न्यायमूर्ति एन वी रमण, न्यायमूर्ति आर सुभाष रेड्डी और न्यायमूर्ति बी आर गवई की तीन सदस्यीय पीठ ने इन प्रतिबंधों को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर पिछले साल 27 नवंबर को सुनवाई पूरी की थी.


केन्द्र सरकार ने जम्मू कश्मीर को विशेष राज्य का दर्जा प्रदान करने वाले संविधान के अनुच्छेद 370 के अधिकांश प्रावधान समाप्त करने के बाद वहां लगाये गये प्रतिबंधों को 21 नवंबर को सही ठहराया था. केन्द्र ने न्यायालय में कहा था कि सरकार के एहतियाती उपायों की वजह से ही राज्य में किसी व्यक्ति की न तो जान गई और न ही एक भी गोली चलानी पड़ी.


गुलाम नबी आजाद के अलावा, कश्मीर टाइम्स की कार्यकारी संपादक अनुराधा भसीन और कई अन्य ने घाटी में संचार व्यवस्था ठप होने सहित अनेक प्रतिबंधों को चुनौती देते हुये याचिकाएं दायर की थीं.


केंद्र सरकार ने दिया था यह जवाब


केन्द्र ने कश्मीर घाटी में आतंकी हिंसा का हवाला देते हुये कहा था कि कई सालों से सीमा पार से आतंकवादियों को यहां भेजा जाता था, स्थानीय उग्रवादी और अलगावादी संगठनों ने पूरे क्षेत्र को बंधक बना रखा था और ऐसी स्थिति में अगर सरकार नागरिकों की सुरक्षा के लिये एहतियाती कदम नहीं उठाती तो यह ‘मूर्खता’ होती.


केन्द्र सरकार ने पिछले साल पांच अगस्त को जम्मू कश्मीर को विशेष राज्य का दर्जा देने वाले संविधान के अनुच्छेद 370 के अनेक प्रावधान खत्म कर दिये थे.


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