Citizenship Amendment Bill:  केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार आज संसद में नागरिकता संशोधन बिल को लेकर आ रही है. इस बिल का कई विपक्षी दल पुरजोर विरोध कर रहे हैं. कैबिनेट ने बुधवार को इस बिल को मंजूरी दी है और अब इसके संसद में पारित होने का इंतजार है. हालांकि इस बिल में पहले के मुताबिक अब कुछ बदलाव जरूर किए गए हैं. बिल के संशोधित रूप में कहा गया है कि इनर लाइन परमिट और छठी अनुसूची प्रावधानों द्वारा संरक्षित उत्तर पूर्व के क्षेत्रों में यह संशोधित बिल लागू नहीं होंगा. इसमें पूरा अरुणाचल प्रदेश, मिजोरम, अधिकांश नागालैंड, मेघालय और त्रिपुरा और असम के कुछ हिस्से शामिल हैं. मणिपुर इस क्षेत्र का एक ऐसा राज्य है जो छूट के दायरे में नहीं आता है.


आइए ऐसे में जान लेते हैं कि आखिर यह इनर लाइन परमिट और छठी अनुसूची क्या है?


इनर लाइन परमिट क्या है


इनर लाइन परमिट एक दस्तावेज है जो अन्य राज्यों के भारतीय नागरिकों को अरुणाचल प्रदेश, मिजोरम और अधिकांश नागालैंड में प्रवेश करने के लिए चाहिए होता है. इनर लाइन परमिट ईस्टर्न फ्रंटियर विनियम 1873 के अंतर्गत जारी किया जाने वाला एक ट्रैवल डॉक्यूमेंट है. भारत में भारतीय नागरिकों के लिए बने इनर लाइन परमिट के इस नियम को ब्रिटिश सरकार ने बनाया था. देश की स्वतंत्रा के बाद समय-समय पर फेरबदल कर इसे जारी रखा गया.


आजादी के बाद यह नियम स्थानीय आबादी को बड़े पैमाने पर पलायन के हमले से बचाने के लिए एक सुरक्षात्मक व्यवस्था में बदल दिया गया. अब इस नियम के मुताबिक इन राज्यों में लंबे समय तक रहने वाले उन निवासियों को भी परमिट की जरूरत पड़ती है जो इन राज्यों में 'मूलवासी' नहीं हैं. ऐसे लोगों को अपने परमिट को हर छह महीनें में रिन्यू करवाना होता है.


फिलहाल ये नियम देश के उत्तरपूर्व में बसे तीन खूबसूरत राज्य मिजोरम, अरुणाचल प्रदेश एवं नागालैंड में लागू है. इसके अलावा इसकी ज़रूरत सीमावर्ती राज्यों के उन स्थानों पर भी लागू होता है जहां की सीमा अंतर्राष्ट्रीय बॉर्डर से लगती है. जैसे कि लेह-लद्दाख आदि में.


छठी अनुसूची क्या है


दूसरी ओर, छठी अनुसूची असम, मेघालय, मिजोरम और त्रिपुरा के कुछ आदिवासी क्षेत्रों में स्वायत्त विकेंद्रीकृत स्व-शासन प्रदान करती है. इन क्षेत्रों में जो लोग स्थानीय नहीं माने जाने वाले समुदाय से नहीं होते उन्हें जमीन खरीदने और व्यवसायों के मालिक होने की पांबदी है.


क्या है नागरिकता संशोधन बिल 2016?


भारत देश का नागरिक कौन है, इसकी परिभाषा के लिए साल 1955 में एक कानून बनाया गया जिसे 'नागरिकता अधिनियम 1955' नाम दिया गया. मोदी सरकार ने इसी कानून में संशोधन किया है जिसे 'नागरिकता संशोधन बिल 2016' नाम दिया गया है. संशोधन के बाद ये बिल देश में छह साल गुजारने वाले अफगानिस्तान, बांग्लादेश और पाकिस्तान के छह धर्मों (हिंदू, सिख, जैन, बौद्ध, पारसी और इसाई) के लोगों को बिना उचित दस्तावेज के भारतीय नागरिकता देने का रास्ता तैयार करेगा. पहले'नागरिकता अधिनियम 1955' के मुताबिक, वैध दस्तावेज होने पर ही ऐसे लोगों को 12 साल के बाद भारत की नागरिकता मिल सकती थी.


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