Arvind Kejriwal Hindu Politics: साल 2015 में ईमानदारी का नारा लगाते हुए सत्ता में आए अरविंद केजरीवाल आज अपनी पार्टी के लिए पूरे देशभर में राजनीतिक जमीन बनाने का काम कर रहे हैं. इस पूरे सफर में केजरीवाल कई बार अपने बयानों और फैसलों को लेकर सुर्खियों में रहे. वहीं अब राजनीतिक गलियारों में उनके पॉलिटिकल शिफ्ट की खूब चर्चा है. एक वक्त था जब केजरीवाल बीजेपी की हिंदुत्ववादी विचारधारा पर जमकर हमला बोलते थे, लेकिन आज वो वक्त है जब वो खुद बीजेपी के साथ एक ही पॉलिटिकल पिच पर खड़े नजर आ रहे हैं. पिछले कुछ समय से वो लगातार खुद को हिंदूवादी नेता के तौर पर पेश करने की पूरी कोशिशों में जुटे हैं. 


अब सवाल ये है कि सेक्युलर विचारधारा को पूरी तरह के छोड़कर अगर केजरीवाल बीजेपी को हिंदुत्व विचारधारा से टक्कर देने की कोशिश कर रहे हैं तो ये कितना फायदे का सौदा होगा? आम आदमी पार्टी को केजरीवाल की इस बड़ी रणनीति का वाकई में फायदा होगा या फिर बड़े लालच के चक्कर में वो खुद का ही नुकसान कर बैठेंगे. आइए समझते हैं. 


गुजरात चुनाव से पहले हिंदुत्व कार्ड
केजरीवाल ने हाल ही में भारतीय करेंसी पर भगवान गणेश और मां लक्ष्मी की तस्वीर लगाने वाला बयान दिया है, जिसकी हर तरफ चर्चा है. इस बयान के बाद ऐसे ही कई तरह के बयान सामने आ चुके हैं. कोई शिवाजी महाराज की फोटो लगाने की बात कर रहा है तो किसी को नोट पर अंबेडकर अच्छे लगने लगे हैं. केजरीवाल के इस बयान को गुजरात चुनाव से जोड़कर देखा जा रहा है. 


अब गुजरात चुनाव की बात करें तो यहां आम आदमी पार्टी का पहला मुकाबला कांग्रेस से है, जो बीजेपी के बाद दूसरी सबसे बड़ी पार्टी है. इसके बावजूद केजरीवाल खुद का मुकाबला बीजेपी के साथ बता रहे हैं, ये मुख्य विपक्षी दल कांग्रेस को नजरअंदाज करने की एक रणनीति है. आम आदमी पार्टी का कहना है कि वो गुजरात में बीजेपी का एक विकल्प है, क्योंकि इतने सालों से कांग्रेस बीजेपी को मात देने में नाकाम रही है, इसीलिए अब बीजेपी का विकल्प आम आदमी पार्टी है. 


कांग्रेस वाली गलती दोहराएंगे केजरीवाल?
ऐसा नहीं है कि केजरीवाल ही बीजेपी का हिंदुत्व वाला हथियार उसी पर इस्तेमाल करने की कोशिश कर रहे हैं. इससे पहले मुख्य विपक्ष दल कांग्रेस भी ये कोशिश कर चुकी है, जिसे बीजेपी ने जमकर आड़े हाथों लिया और पार्टी को इसका फायदा होने की बजाय नुकसान ही झेलना पड़ा. हालांकि कांग्रेस ने हमेशा ही सॉफ्ट हिंदुत्व वाला रुख अपनाया है, लेकिन यूपी चुनाव जैसे कई मौकों पर देखा गया कि प्रियंका गांधी और राहुल जैसे नेताओं ने हिंदू वोटरों को लुभाने की पूरी कोशिश की. अब केजरीवाल भी उसी लाइन पर चलते दिख रहे हैं. उनका ये दांव उल्टा भी पड़ सकता है. 


हिंदुत्व कार्ड का कितना फायदा?
अब गुजरात चुनाव से पहले हुए एबीपी-सी वोटर के सर्वे के कुछ आंकड़ों से ये समझते हैं कि गुजरात में केजरीवाल कितनी जमीन बना पाए हैं. इस सर्वे के मुताबिक गुजरात विधानसभा चुनाव में बीजेपी के खाते में 135-143 सीटें आ सकती हैं. वहीं दूसरे नंबर पर कांग्रेस को 36-44 सीटें मिल सकती हैं. आम आदमी पार्टी के खाते में शून्य से लेकर महज दो सीटें आने का अनुमान लगाया गया है. यानी AAP की मौजूदगी से सीधे कांग्रेस के वोट कटेंगे और बीजेपी को और ज्यादा ताकत मिल सकती है. अब तक केजरीवाल हिंदू कार्ड खेलने के बावजूद इस राज्य में पिछड़ते नजर आ रहे हैं. हालांकि राजनीतिक जानकारों का कहना है कि केजरीवाल की नजर सिर्फ गुजरात पर नहीं बल्कि 2024 के चुनावों पर भी टिकी है. 


दिल्ली में हो सकता है नुकसान?
अब अरविंद केजरीवाल का सेक्युलर विचारधारा से हटकर हिंदुत्व की विचारधारा पर चलना उनके लिए दो धारी तलवार इसलिए है क्योंकि अगर उनका ये दांव नहीं चल पाया तो ये अपना ही हाथ जलाने जैसा होगा. दिल्ली में अरविंद केजरीवाल को मुस्लिम वोट सबसे ज्यादा मिलते आए हैं, कांग्रेस से शिफ्ट होकर मुस्लिम वोटर्स की पसंद केजरीवाल हैं. दिल्ली में 12 फीसदी मुस्लिम वोटर्स हैं. यहां की 70 विधानसभा सीटों में से 8 मुस्लिम आबादी की जाती हैं. पिछले चुनाव में मुस्लिम बहुल पांचों सीटों पर आम आदमी पार्टी ने बड़े अंतर से जीत दर्ज की. ऐसा माना जाता है कि केजरीवाल और AAP की सेक्युलर नीति के चलते इस समुदाय के वोट उनके पाले में हैं. 


छिटक सकते हैं सेक्युलर वोट
अब अगर केजरीवाल आने वाले वक्त में भी अपनी हिंदुत्व वाली इमेज पर टिके रहे तो देशभर में फायदे का तो पता नहीं, लेकिन दिल्ली में नुकसान जरूर हो सकता है. AAP के पाले में जो मुस्लिम वोटर हैं वो एक बार फिर कांग्रेस की तरफ शिफ्ट हो सकते हैं. मुस्लिम वोर्टस के अलावा दिल्ली में एक बड़ा वर्ग ऐसा भी है जो सेक्युलर पार्टी की तरफ झुकाव रखता है. 2020 के दिल्ली विधानसभा चुनाव में बीजेपी ने शाहीन बाग और तमाम तरह के हिंदू कार्ड खेलने की कोशिश की, लेकिन इसका दिल्ली पर ज्यादा असर नहीं हुआ. यानी वोटों का ध्रुवीकरण नहीं हो पाया. अब केजरीवाल भी अगर बीजेपी की राह चलते हैं तो ये बड़ा वर्ग उन्हें भी नकार सकता है. 2025 में होने वाले विधानसभा चुनाव में केजरीवाल के इस हिंदुत्व कार्ड का असर देखने को मिल सकता है. 


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