नई दिल्ली: अरविंद केजरीवाल राजनीति में एक खास किस्म के ब्रांड बन गए हैं. लेकिन हर चुनाव से पहले उनकी ब्रांड इमेज बदल जाती है. कभी मफलर बांध विरोधियों से दो-दो हाथ करने वाले तो कभी घर घर जाकर माफी मांगने वाले और इस बार वे एक कर्मवीर नेता के रूप में अवतरित हुए हैं. एक बार फिर से इस ब्रांड का दिल्ली के वोट बाजार में इम्तिहान है. छह सालों में केजरीवाल ने पॉलिटिक्स में मार्केटिंग की एक नई रणनीति बना ली है. ब्यूरोक्रेसी से निकले. भ्रष्टाचार के खिलाफ आंदोलन किया.


दिन रात सियासत को कोसने वाले केजरीवाल खुद नेता बने. जो साथ थे, उनमें से कुछ छोड़ गए, कुछ को उन्होंने खुद छोड़ दिया. चुनाव लड़ कर दिल्ली के सीएम बने. शपथ लेते ही मंत्रियों संग मंच पर गीत गाए. फिर तीन महीने बाद इस्तीफा देना पड़ा. नरेंद्र मोदी के खिलाफ चुनाव लड़े, हारे. साल भर भटकते रहे. दिल्ली में विक्टिमहुड कार्ड खेला दुबारा सीएम बने. पीएम मोदी से सींग लड़ाते रहे. फिर अचानक वे बदल गए. अब मोदी पर मौन रहते हैं. फ्री बिजली पानी के नाम पर केजरीवाल वोट मांग रहे हैं.


अन्ना आंदोलन से लाइम लाइट में आए


अरविंद केजरीवाल को लोगों ने तब जाना, जब वे अन्ना हज़ारे के साथ आए. भ्रष्टाचार के खिलाफ दिल्ली में आंदोलन किया. अनशन हुआ. भूख हड़ताल हुई. ये सब केजरीवाल ने इंडिया अगेन्स्ट करप्शन के बैनर तले किया. उन दिनों जाने माने वकील शांति भूषण, उनके बेटे प्रशांत भूषण, सुप्रीम कोर्ट के जज संतोष हेगड़े, किरण बेदी, स्वामी अग्निवेश, बाबा रामदेव, वी के सिंह, मेधा पाटकर, संजय सिंह, शाजिया इल्मी सब साथ थे. भ्रष्टाचार के खिलाफ आंदोलन को देश भर में समर्थन मिला. मनमोहन सिंह वाली यूपीए सरकार के खिलाफ माहौल बनने लगा. अन्ना हज़ारे ने पहले तिहाड़ जेल से और फिर रामलीला मैदान से ही भूख हड़ताल शुरू कर दी. मनमोहन सरकार को झुकना पड़ा. जन लोकपाल कानून बनाने का वादा हुआ. ये बातें अगस्त 2011 की हैं. इस दौरान मतभेद के चलते बाबा रामदेव और स्वामी अग्निवेश नेकेजरीवाल का साथ छोड़ दिया.


2012 में बनाई आम आदमी पार्टी


आंदोलन के दौरान कहा जाता रहा कि राजनीति से हमारा कोई लेना देना नहीं है. लेकिन अरविंद केजरीवाल के मन में कुछ और चल रहा था. 26 नवंबर 2012 को एक नई पार्टी बना दी गई. नाम रखा गया आम आदमी पार्टी. केजरीवाल इसके संयोजक बन गए. अन्ना हज़ारे इस फैसले के सख्त खिलाफ थे. केजरीवाल नहीं माने. तो उनके गुरू अन्ना ने उनसे मुक्ति पा ली. किरण बेदी और संतोष हेगड़े भी साथ छोड़ गए. लेकिन केजरीवाल को नए साथी मिल गए. पत्रकार आशुतोष, कपिल मिश्र, अलका लांबा कई नाम उनके साथ जुड़ते गए.


नरेंद्र मोदी के खिलाफ लड़ा था चुनाव


दिसंबर 2013 में दिल्ली में चुनाव हुए. आम आदमी पार्टी को 28, बीजेपी के 31 और कांग्रेस को 8 सीटें मिलीं. कांग्रेस के समर्थन से अरविंद केजरीवाल मुख्यमंत्री बन गए. लेकिन ये सरकार बस 49 दिनों तक ही चल पाई. दिल्ली में राष्ट्रपति शासन लागू हो गया. फिर केजरीवाल वाराणसी पहुंच गए नरेंद्र मोदी से चुनाव लड़ने. वे चुनाव हारे. उनकी पार्टी लोकसभा की 434 सीटों पर लड़ी. लेकिन जीत नसीब हुई सिर्फ 4 पर. सब पंजाब से. इनमें से भी दो को केजरीवाल ने बाद में सस्पेंड कर दिया. इसी बीच शाजिया इल्मी भी पार्टी छोड़ कर बीजेपी चली गईं.


70 में से 67 सीट हासिल कर सबको चौंकाया


फरवरी 2015 में फिर से दिल्ली में चुनाव हुए. अरविंद केजरीवाल ने घर घर जाकर माफ़ी मांगी. चुनावी नतीजे से सब हैरान रह गए. 70 में से 67 पर तो आम आदमी पार्टी जीत गई. कांग्रेस का खाता तक नहीं खुला. 14 फरवरी 2014 को केजरीवाल ने इस्तीफा दिया था. 14 फरवरी 2015 को केजरीवाल ने दूसरी बार सीएम पद की शपथ ली. प्रचंड बहुमत के बाद वे फुल फार्म में आ गए. उन पर तानाशाही करने के आरोप लगे. प्रशांत भूषण और योगेन्द्र यादव पार्टी से बाहर कर दिए गए. पार्टी में लोकतंत्र का गला घोंटने का आरोप लगा कर कई नेता केजरीवाल का साथ छोड़ते रहे. कुमारविश्वास के साथ भी नहीं बनी. केजरीवाल ने सर्जिकल स्ट्राइक के सबूत मांगे तो कुमार से और ठन गई. 2018 में राज्य सभा के टिकट पर दोनों में लड़ाई आर पार की हो गई. केजरीवाल से कुमार का विश्वास टूटा तो आशुतोष भी साथ नहीं रहे. कुछ दिनों बाद आशीष खेतान भी अलग हो गए.


बिजली पानी फ्री देकर जीता दिल्ली वालों का दिल


जब नजीब जंग दिल्ली के उप राज्यपाल थे. अरविंद केजरीवाल से कभी बनी नहीं. हर बात पर तकरार. ब्यूरोक्रेसी से भी लड़ते रहे. IAS अफसर से मारपीट के आरोप तक लगे. लेकिन फिर केजरीवाल ने लड़ते रहने की आदत से तौबा कर ली. बोल वचन बदल लिया.दिल्ली वालों को बिजली पानी फ्री देने के अभियान में जुट गए. नरेंद्र मोदी पर अब वे सीधे-सीधे कुछ नहीं बोलते हैं. बिना बात के किसी के झगड़े में नहीं कूदते हैं. लड़ाका और पीड़ित वाली छवि से निकल कर अब वे काम के नाम पर वोट मांग रहे हैं. अब वे परफॉर्मर कहलाना पसंद करते हैं. हिंदुस्तान- पाकिस्तान और हिंदू-मुसलमान की राजनीति से दूर भागते हैं. कांग्रेस और बीजेपी ने बहुत उकसाया, लेकिन वे शाहीन बाग से दूर रहे. केजरीवाल इस बार अपने एजेंडे पर चुनाव चाहते हैं. अब तक वे कामयाब रहे हैं. लेकिन ये दिल्ली है जी. कब किस बात पर हवा बदल जाए. हवा टाइट करने के लिए प्रशांत किशोर भी बुला लिए गए हैं.


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