Delhi Govt Teachers Training Row: दिल्ली के सरकारी स्कूलों के शिक्षकों को ट्रेनिंग के लिए फिनलैंड भेजने की अपनी मांग के बीच, मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने रविवार (22 जनवरी) को विदेश से ट्रेनिंग प्राप्त कर चुके सरकारी शिक्षकों के साथ संवाद किया. सीएम केजरीवाल ने सरकारी शिक्षकों को फिनलैंड भेजने के लिए दिल्ली के उपराज्यपाल के कार्यालय में फाइल दी हुई है. सीएम केजरीवाल का आरोप है कि उपराज्यपाल विनय कुमार सक्सेना शिक्षकों को फिनलैंड भेजने में अड़ंगा लगा रहे हैं और फाइल पर हस्ताक्षर नहीं कर रहे हैं. 


उपराज्पाल के साथ मौजूदा विवाद के बीच, रविवार को राजधानी में सीएम केजरीवाल ने शिक्षकों संग वार्ता में कहा कि दिल्ली सरकार का मकसद सरकारी प्रिसिपल्स और टीचर्स को दुनिया की सबसे अच्छी ट्रेनिंग दिलाना है. अपने संबोधन के दौरान उन्होंने कहा कि वह खुद मुख्यमंत्री रहते हुए आठ साल में केवल दो बार विदेश गए हैं. उन्होंने कहा कि उनका मकसद अपनी विदेश यात्रा नहीं, बल्कि टीचर्स को ट्रेनिंग के लिए विदेश भेजना है. 


'जब आप वहां जाकर न्यूटन ने जिस पेड़ सेब से गिरा...'


अपने संबोधन के दौरान सीएम केजरीवाल ने कहा, ''जैसा मनीष जी ने अभी बताया कि पहले ट्रेनिंग के नाम पर सेमिनार होते थे, कोई स्टेडियम हायर कर लेते थे, बड़ा सा हॉल हायर कर लेते थे, उसमें हजार-डेढ़ हजार टीचर्स और प्रिसिपल्स को इकट्ठा कर लेते थे, बाहर से किसी स्पीकर को बुला लेते थे, वो घंटा-दो घंटा लेक्चर देकर चला जाता था. आप (शिक्षक) भी जब हॉल से बाहर निकलते थे, आधी चीज याद रहती थी, आधी चीज याद नहीं रहती थी. अभी उपाध्याय साहब ने बड़ी अच्छी बात कही कि जब आप वहां जाकर ट्रिनिटी की लैब देखते हो, जब आप वहां जाकर न्यूटन ने जिस पेड़ सेब से गिरा उस पेड़ को देखते हो, स्टीफन हॉकिंग का कॉलेज देखते हो तो वो जिंदगीभर का एक्सपीरिएंस होता है, वो यहां पर सेमिनार के जरिये उसका अनुभव नहीं किया जा सकता.'' 


'सुना हुआ ज्ञान तो एक दिन रहता है'


सीएम केजरीवाल ने कहा, ''सेमिनार में ज्ञान तो मिलता है, पावर प्वाइंट प्रेजेंटेशंस हो सकते हैं, अनुभव नहीं मिलता. अनुभव में और ज्ञान में बहुत फर्क है. कान से सुना हुआ ज्ञान तो एक दिन रहता है, 24 घंटे रहता है, 48 घंटे रहता है, उसके बाद खत्म हो जाता है लेकिन जो फिनलैंड होकर आए, जो कैंब्रिज होकर आए, जो सिंगापुर होकर आए वो एक जिंदगीभर का अनुभव है, वो अनुभव हमेशा अपने साथ रहता है और जो ऊर्जा आप लोगों को मिलती है, उसका कोई कहना ही नहीं.'' 


सीएम केजरीवाल ने आगे कहा, ''पहले ये था कि सरकारी स्कूलों के प्रिंसिपल्स को, टीचर्स को बाहर भेजने की क्या जरूरत है? उसको हमने तोड़ा है. पहली बार दिल्ली के अंदर सरकारी स्कूलों के प्रिंसिपल्स और टीचर्स को दुनिया की बेस्ट ट्रेनिंग दिलवाने की कोशिश कर रहे हैं हम लोग. दुनिया में जहां अच्छा काम सुनने को मिलता है मनीष जी को और इनकी टीम को कि यहां टीचिंग में अच्छा काम हो रहा है, यहां एजुकेशन में अच्छा काम हो रहा है, उसमें आप लोगों को भेजते हैं.''


'मेरे को विदेश जाने का शौक नहीं है'


मुख्यमंत्री केजरीवाल ने कहा, ''हम नहीं जाते. मेरे को आज आठ साल हो गए मुख्यमंत्री बने हुए, आठ साल में दो बार विदेश गया हूं. एक बार जब मदर टेरेसा की डेथ हुई थी तो रोम गया था, इटली गया था और एक बार साउथ कोरिया गया था. बस दो बार गया हूं. मेरा मकसद है कि आप लोग विदेश जाओ, मेरे विदेश जाने से क्या होगा? मेरे विदेश जाने से... बाकी नेता महीने में दो चक्कर तो लगा आते हैं, पूरी दुनिया घूम लेते हैं पांच साल के अंदर तो.. मेरे को विदेश जाने का शौक नहीं है, मैं चाहता हूं कि मेरे टीचर्स विदेश जाएं, मैं चाहता हूं कि मेरे प्रिंसिपल्स विदेश जाएं. तो पूरी दुनिया का एक्सपीरिएंस हम आपको देना चाहते हैं.''






'हमारा सपना अब वो है'


सीएम ने कहा, ''अभी एक रिटयर्ड प्रिंसिपल बता रही थीं.. हमें दिल्ली के सरकारी स्कूलों को देश के स्कूलों से कंपीट नहीं करना, हमें अब दुनिया के स्कूलों से कंपीट करना है. हमारा सपना अब वो है. एक टाइम था जब हम चाहते थे कि दिल्ली के सरकारी स्कूल, दिल्ली के प्राइवेट स्कूलों से अच्छे बनें वो तो बन गए. मेरे को बहुत सुनने को मिलता है कि प्राइवेट स्कूल से निकाल-निकालकर सरकारी स्कूलों में.. पिछले तीन-चार साल के अंदर चार लाख बच्चों ने अपने प्राइवेट स्कूल से नाम कटाकर सरकारी स्कूलों में नाम लिखवाएं हैं. ये आप लोगों की मेहनत है.''


सीएम केजरीवाल ने कहा, ''पहले हम चाहते थे के दिल्ली के सरकारी स्कूल, दिल्ली के प्राइवेट स्कूलों से अच्छे बनें, वो बन गए, अब हम चाहते हैं कि दिल्ली के सरकारी स्कूल विश्व के स्कूलों से अच्छे बनें. हम बेस्ट की कल्पना करेंगे न, हम सबसे अच्छे की कल्पना करेंगे न, अगर प्राइवेट स्कूलों के टीचर्स विदेश जा सकते हैं तो हमारे सरकारी स्कूलों के प्रिंसिपल्स और टीचर्स को क्यों विदेशों की ट्रेनिंग नहीं मिलनी चाहिए?''


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