Laws For Encounter In India: माफिया और बाद में राजनेता बने अतीक अहमद के बेटे असद अहमद और शूटर गुलाम को गुरुवार (13 अप्रैल) को यूपी पुलिस की एसटीएफ ने झांसी में हुए एक एनकाउंटर में मार गिराया. ये दोनों आरोपी 24 फरवरी को प्रयागराज में हुए उमेश पाल हत्याकांड में मुख्य आरोपी थे जिसमें यूपी पुलिस के दो सिपाही भी शहीद हुए थे.


इस एनकाउंटर के बाद से ही सवाल उठने लगे हैं कि आखिर भारत में एनकाउंटर के लिए क्या कानून है, इसके लिए क्या नियम बनाए गए हैं, और देश में इसको लेकर मानव अधिकारों के प्रति निगाह रखने वाली संस्था एनएचआरसी और भारत के सर्वोत्तम न्यायालय के पुलिस को क्या दिशा-निर्देश हैं. 


क्या कहती है कानून की किताब?


भारत में कानून व्यवस्था की किताब भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) और दंड प्रक्रिया संहिता (सीआरपीसी), या फिर भारत के संविधान में कहीं भी एनकाउंटर शब्द या परिस्थिति का कोई जिक्र नहीं है. लेकिन पुलिस को देश में कानून और व्यवस्था को बनाए रखने के लिए कुछ अधिकार दिए गए हैं.


इन अधिकारों में किसी ऐसे व्यक्ति को जिसकी वजह से राज्य में  कानून और व्यवस्था को बनाए रखने में चुनौती हो सकती है को अपनी अभिरक्षा यानी हिरासत में लेकर उस पर लगाए गए आरोपों की जांच करने तक अपनी अभिरक्षा (कस्टडी) में रखने का अधिकार है.


किस स्थिति में होता है एनकाउंटर?


ऐसे समय में कई बार पुलिस जब किसी अपराध की जांच के लिए वह किसी व्यक्ति को अपनी अभिरक्षा में लेती है या लेने में प्रयास करती है तो आदतन अपराधी कई बार पुलिस के सामने से समर्पण करने से इंकार कर देते हैं ऐसे में पुलिस को उनके साथ बल प्रयोग करना पड़ता है. कानून आयोग यानी लॉ कमीशन ने ऐसी स्थिति में दोनों पक्षों द्वारा इस्तेमाल किए गए बल प्रयोग के लिए एनकाउंटर शब्द का प्रयोग करते हैं. 


कानूनी भाषा के मुताबिक, जब कोई अपराधी पुलिस के साथ बल प्रयोग करता है, या करने का प्रयास करता है तो ऐसे समय में जब पुलिस अपनी आत्मरक्षा में या फिर अपराधी को काबू करने के लिए जवाबी बल प्रयोग करती है तो ऐसी स्थिति को ही एनकाउंटर कहा जाता है. हालांकि भारत में एनकाउंटर के लिए कोई भी कानून नहीं है, लेकिन इस स्थिति से निपटने के लिए देश की सर्वोच्च अदालत ने एनकाउंटर को लेकर कुछ दिशा-निर्देश दिए हुए हैं. 


एनकाउंटर को लेकर क्या हैं सुप्रीम कोर्ट के निर्देश?



  • सुप्रीम कोर्ट की पहली गाइडलाइन कहती है, जब भी पुलिस को कोई खुफिया जानकारी मिलती है तो कोई भी एक्शन लेने से पहले पुलिस का इसे इलेक्ट्रानिक या फिर लिखित फॉर्मेट में दर्ज करना जरूरी है. 

  • अगर कोई भी व्यक्ति पुलिस कार्रवाई में मारा जाता है तो कार्रवाई में शामिल पुलिसकर्मियों के खिलाफ तत्काल प्रभाव से आपराधिक एफआईआर दर्ज की जानी चाहिए. 

  • एफआईआर दर्ज हो जाने के बाद हुई घटना की स्वतंत्र जांच की जानी चाहिए. घटना की जांच सीआईडी या किसी दूसरे पुलिस स्टेशन की टीम द्वारा की जानी चाहिए. जांच में अपराधी, अपराध, और घटना का पूरा विवरण लिखित में विस्तार से उपलब्ध होना चाहिए. 

  • सुप्रीम कोर्ट का निर्देश है, किसी भी परिस्थिति में हुए पुलिस एनकाउंटर की स्वतंत्र मजिस्ट्रेट जांच बहुत जरूरी है. घटना के बाद, घटना की पूरी रिपोर्ट मजिस्ट्रेट के साथ साझा की जानी बहुत जरूरी है. 

  • एनकाउंटर के बाद,घटना की पूरी रिपोर्ट विस्तार से घटना के अधिकार क्षेत्र में आने वाली स्थानीय कोर्ट के साथ लिखित में साझा की जानी चाहिए. 


क्या है मानवाधिकार आयोग के दिशा निर्देश?



  • एनकाउंटर के अधिकार क्षेत्र में आने वाले थाने को घटना की सूचना मिलते ही हर पहलू को ध्यान में रखकर तुरंत एफआईआर दर्ज की जानी चाहिए, अगर इस पर तत्काल एफआईआर दर्ज नहीं की जाती है तो इसके लिए संबंधित थाने के थानाधिकारी सीधे तौर पर जिम्मेदार होंगे. 

  • अभियुक्त की मौत से जुड़े हर तथ्य और परिस्थिति से जुड़ी हर बात को नोट किया जाना चाहिए और इससे जुड़े तत्काल कदम उठाए जाने चाहिए.

  • मानवाधिकार आयोग का कहना है, चुंकि पुलिस इस मामले में खुद ही फर्स्ट पार्टी है इसलिए घटना की जांच राज्य की स्वतंत्र जांच संस्था सीआईडी से कराई जानी चाहिए. 

  • मानवाधिकार आयोग का निर्देश है, एनकाउंटर की चार माह में जांच पूरी हो जानी चाहिए और यदि इस जांच में पुलिस अधिकारी दोषी पाए जाते हैं तो उनको अपराधी मानकर उनके खिलाफ हत्या का मुकदमा चलाया जाना चाहिए. 

  • मानवाधिकार आयोग का कहना है, एनकाउंटर की मजिस्ट्रेट जांच तीन माह में पूरी हो जानी चाहिए. घटना के बाद मृतक के परिजनों को सूचना देना पुलिस का कर्तव्य है. 


भारत की सुप्रीम कोर्ट और मानवाधिकार आयोग की पुलिस एनकाउंटर को लेकर सख्त गाइडलाइन हैं, सुप्रीम कोर्ट ने कई बार देश भर के अलग-अलग राज्यों में हुए पुलिसिया एनकाउंटर पर सवाल खड़े किए हैं. उसका कहना है, पुलिस को कानून व्यवस्था बनाए रखने के लिए अपराधी को काबू करते समय सबसे अंतिम विकल्प के रूप में एनकाउंटर को आत्मरक्षा के अंतिम विकल्प के रूप में  ही चुनना चाहिए. 


इस मामले में अदालत कितनी सख्त है उसका अंदाजा फर्जी मुठभेड़ की सुनवाई करते समय उसके इस बयान से लगाया जा सकता है जिसमें उसने कहा था, जो पुलिसकर्मी यह सोचते हैं कि वह किसी व्यक्ति का एनकाउंटर करके बच निकलेंगे तो उनको हम बताना चाहेंगे कि फांसी की सजा उनका इंतजार कर रही है.


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