India China Relations: भारत और चीन के बीच पूर्वी लद्दाख में वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) पर गश्त से जुड़े समझौते पर सहमति के बाद ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिममीन (एआईएमआईएम) चीफ असदुद्दीन ओवैसी ने बड़ा सवाल उठाया है. उन्होंने कहा कि जिस व्यवस्था पर सहमति बनी है, उसके डिटेल्स का वह इंतजार कर रहे हैं. उनके अनुसार, लोगों को सीमावर्ती इलाकों में डिसएंगेजमेंट (पीछे हटने के संदर्भ में) की शर्तें भी जानने की जरूरत है.


सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स पर सोमवार (21 अक्टूबर, 2024) को एआईएमआईएम चीफ ने पोस्ट किया, "चीन के साथ जिस व्यवस्था पर सहमति बनी है, उसके ब्योरे का हम इंतजार कर रहे हैं. विदेश सचिव की भाषा गूढ़ (समझ न आने वाली) थी. आइए, आशा करें कि भारतीय गश्ती अधिकारों को बहाल करते हुए, यह पीपल्स लिब्रेशन आर्मी (पीएलए) को उन क्षेत्रों तक पहुंच की अनुमति नहीं देगा, जहां वह पहले नहीं आ रहा था." 


AIMIM चीफ असदुद्दीन ओवैसी ने X पर और क्या कहा? 


हैदराबाद से लोकसभा सांसद ने अगले पोस्ट में लिखा, "हमें सीमावर्ती इलाकों में डिसएंगेजमेंट की शर्तें भी तो जानने की जरूरत है. साल 2017 के बाद हमने डोकलाम में जो देखा, उसकी पुनरावृत्ति (फिर वैसा न हो) नहीं होनी चाहिए, जहां पीएलए ने क्षेत्र में स्थायी उपस्थिति हासिल कर ली थी. जब तक पूरा ब्योरा उपलब्ध नहीं कराया जाता, परिणाम के बारे में निश्चित होना कठिन है."



समझौते को विदेश मंत्री एस जयशंकर ने बताया पॉजिटिव


एआईएमआईएम के मुखिया की चीन को लेकर यह टिप्पणी तब आई है, जब भारत और चाइना पूर्वी लद्दाख में एलएसी पर गश्त से जुड़े समझौते पर राजी हुए. विदेश मंत्री डॉ एस जयशंकर ने समझौते को 'सकारात्मक कदम' बताया. हालांकि, उन्होंने परिणामों के बारे में बहुत जल्दी अनुमान न लगाने की सलाह दी. अंग्रेजी न्यूज चैनल 'एनडीटीवी' की वर्ल्ड समिट में एस जयशंकर बोले कि यह समझौता उस शांति और सौहार्द का आधार तैयार करता है, जो सीमावर्ती क्षेत्रों में होना चाहिए और जो 2020 से पहले मौजूद भी था. पिछले कुछ वर्षों से द्विपक्षीय संबंधों को सामान्य बनाने के लिए भारत की यही प्रमुख चिंता रही है.


विदेश सचिव ने भारत-चीन समझौते पर क्या कुछ बताया?


दरअसल, इंडिया की ओर से सोमवार को ऐलान किया गया कि भारतीय और चीनी वार्ताकार पूर्वी लद्दाख में एलएसी पर गतिरोध वाले बाकी बिंदुओं पर गश्त के लिए समझौते पर सहमत हुए हैं. समझौते को पूर्वी लद्दाख में लगभग चार वर्षों से जारी सैन्य गतिरोध के हल की दिशा में बड़ी सफलता के रूप में देखा जा रहा है. विदेश सचिव विक्रम मिस्री ने संकेत दिए कि ताजा समझौता विवादित बिंदुओं से सैनिकों की वापसी का रास्ता साफ करेगा, जिससे 2020 में पैदा हुए गतिरोध का समाधान होगा. ऐसा समझा जाता है कि हालिया समझौता देपसांग और डेमचोक इलाकों में गश्त से जुड़ा है. उन्होंने प्रेस कॉन्फ्रेंस में बताया, "भारत-चीन सीमावर्ती क्षेत्रों में एलएसी पर गश्त व्यवस्था पर सहमति बनी है, जिससे 2020 में इन क्षेत्रों में उत्पन्न हुए गतिरोध का हल और सैनिकों की वापसी संभव हो सकेगी." विक्रम मिस्री के मुताबिक, "हम इस संबंध में आगे के कदम उठाएंगे."


समझौता फिलहाल इस बात को नहीं कर पा रहा स्पष्ट


फिलहाल यह स्पष्ट नहीं है कि क्या मौजूदा समझौता गश्त को लेकर उन अधिकारों को बहाल करता है, जो गतिरोध से पहले मौजूद थे. पूर्वी लद्दाख में भारत और चीन के बीच मई 2020 से सैन्य गतिरोध बरकरार है. दोनों देशों के बीच सीमा विवाद का पूर्ण हल अब तक नहीं हो पाया है. हालांकि, वे टकराव वाले कई बिंदुओं से पीछे हट चुके हैं. जून 2020 में गलवान घाटी में हुई भीषण झड़प के बाद भारत और चीन के बीच संबंध निचले स्तर पर पहुंच गए थे. यह झड़प पिछले कुछ दशकों में दोनों पक्षों के बीच हुई सबसे गंभीर सैन्य झड़प थी. इंडिया लगातार कहता आ रहा है कि जब तक सीमावर्ती इलाकों में शांति बहाल नहीं होती, तब तक चीन के साथ उसके रिश्ते सामान्य नहीं हो सकते. भारत गतिरोध शुरू होने के बाद से हुई सभी वार्ताओं में पीएलए पर देपसांग और डेमचोक से सैनिक हटाने का दबाव डाल रहा है.


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