बेंगलुरू: कर्नाटक में चुनाव से पहले ऐसा लगता है कि कांग्रेस को असदुद्दीन ओवैसी का डर सताने लगा है. कर्नाटक कांग्रेस के कई वरिष्ठ नेता और खुद सीएम तक ये आरोप लगा चुके हैं कि बीजेपी और एआईएमआईएम के बीच कांग्रेस को हराने के लिए सीक्रेट डील हुई है. कर्नाटक कांग्रेस के नेता यह तक कह चुके हैं कि इसे लेकर दोनों बीजेपी और ओवैसी के बीच हैदराबाद में एक गुप्त बैठक भी हुई है. उनका कहना है कि करीब 50 ऐसी सीटों पर उम्मीदवार उतरने का फैसला हुआ है जहां अल्पसंख्यक वोट ज्यादा है ताकि कांग्रेस का वोट काटा जा सके.


मुख्यमंत्री सिद्धारामैय्या और गृह मंत्री रामलिंगा रेड्डी का कहना है कि कांग्रेस की राह मुश्किल करने के लिए ओवैसी ने बीजेपी के साथ चुनाव लड़ने की सहमति जताई है, जो कि चिंता का विषय है. मुख्यमंत्री सिद्धारामैय्या ने ओवैसी पर यह भी आरोप लगाया, "ओवैसी जो कि खुद को मुस्लिमों का मसीहा मानते है वो दरअसल बीजेपी के एजेंट हैं, जिन्होंने यूपी और महाराष्ट्र में बीजेपी को मदद की थी. यहीं अब वे कर्नाटक में दोहरा रहे हैं.''


उधर गृह मंत्री रामलिंगा रेड्डी का भी आरोप है कि कांग्रेस का वोट काटने के लिए बीजेपी किसी भी हद तक जा सकती है. रेड्डी ने यह भी कहा कि बीजेपी इसी मद्देनज़र पीएफआई और एसडीपीआई जैसे समुदाय से भी बात कर रही है. ताकि मुस्लिम वोटों को काटा जा सके.


बता दें कि ओवैसी का कर्नाटक में पार्टी को मजबूत करने का सपना नया नहीं है. ओवैसी हैदराबाद के अलावा उत्तर कर्नाटक के कई ज़िलों में अपनी पार्टी का विस्तार करने की कोशिश करते रहे हैं जो कभी निज़ाम के अधीन हुआ करते थे. जहां अधिकतर आबादी अल्पसंख्यकों की मानी जाती है. शायद इसी को देखते हुए पहले भी कई बार कर्नाटक की कांग्रेस सरकार ने ओवैसी को रोकने का खूब प्रयास किया है. कई बार उनकी राज्य में रैली को इज़ाज़त नहीं दी गयी.


बीजेपी का कहना है कि कांग्रेस हार के डर से बौखलाई है इसलिए ऐसे आरोप लगा रही है जिसका कोई आधार नहीं. वार पलटवार के बीच एक बात साफ़ है कि अगर ओवैसी यहां चुनाव लड़ते है तो साफ़ है कि कांग्रेस की राह मुश्किल हो सकती हैं. राज्य में मुस्लिम वोटर्स की आबादी करीब 13-15 फीसदी है. ऐसे में कांग्रेस की जीत के पीछे यह वोट शेयर काफी मायने रखता है यही कारण है कि कांग्रेस को ओवैसी का डर चुनाव से पहले सताने लगा है.