Asaduddin Owaisi Jai Palestine Slogan Row: ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन (एआईएमआईएम) चीफ असदुद्दीन ओवैसी ने आज मंगलवार (25 मई) को जब सांसदी की शपथ ली तो उन्होंने संसद में ‘जय फिलिस्तीन’ का नारा लगा दिया. इसको लेकर जमकर बवाल हो रहा है. उन्होंने अपने इस नारे का महात्मा गांधी का हवाला देकर बचाव करने की कोशिश की.


उन्होंने कहा, “दूसरे सदस्य भी बहुत कुछ कहत रहते हैं. मैंने कहा कि जय भीम, जय तेलंगाना जय फिलिस्तीन. ये कैसे गलत हो गया? हमें सविधान का प्रवाधान बता दीजिए. मुझे जो कहना था कह दिया. पढ़ लीजिए महात्मा गांधी ने फिलिस्तीन के बारे में क्या कहा था.” तो आइए जानते हैं महात्मा गांधी ने क्या कहा था?


महात्मा गांधी ने यहूदियों को दी थी ये सलाह


1938 में महात्मा गांधी ने जर्मनी में यहूदी समुदाय की दुर्दशा पर अपना दृष्टिकोण पेश किया था. उन्होंने यहूदियों को सलाह दी कि "पृथ्वी पर अपनी स्थिति को सही साबित करने के लिए अहिंसा का रास्ता चुनें." गांधीजी ने दक्षिण अफ्रीका में भारतीय सत्याग्रह आंदोलन से भी इसकी तुलना की, जहां भारतीयों ने अन्य देशों के समर्थन के बिना शांतिपूर्ण विरोध प्रदर्शन किया था.


सप्ताहिक पत्रिका हरिजन में नवंबर 1938 में "यहूदी समस्या पर श्री गांधी" के नाम से एक आर्टिकल पब्लिश था. जिसमें गांधीजी ने कहा था, "न्याय की आवश्यकताओं के प्रति उसे अंधा नहीं बनाता. निश्चित रूप से यह मानवता के विरुद्ध अपराध होगा कि गर्वित अरबों को कम किया जाए ताकि फिलिस्तीन को यहूदियों को, आंशिक रूप से या पूरी तरह से, उनके राष्ट्रीय घर के रूप में वापस किया जा सके. ब्रिटिश बंदूक की छाया में फिलिस्तीन में प्रवेश करना गलत है. अरबों के साथ तर्क करने के सैकड़ों तरीके हैं, अगर वे (यहूदी) ब्रिटिश संगीन की मदद को त्याग दें.”


यहूदियों के प्रति गांधीजी ने दिखाई सहानभूति


इस लेख में उन्होंने कहा, “मेरी सहानभूति यहूदियों के साथ है. मैं दक्षिण अफ्रीका के दिनों से उन्हें जानता हूं. उनके जरिए ही मैंने उनके ऊपर हुई ज्यादतियों के बारे में जाना है. वे ईसाई धर्म के अछूत रहे हैं. अगर मुझे तुलना ही करनी है तो मैं कहूंगा कि यहूदियों के साथ ईसाइयों ने जैसा व्यवहार किया है, वैसा ही हिंदुओं ने अछूतों के साथ किया.”


गांधी जी ने आगे कहा, “आज जो फिलिस्तीन में हो रहा है वो किसी भी नैतिक आचार संहिता के तहत जायज नहीं ठहराया जा सकता. जनादेश में पिछले युद्ध के अलावा कोई मंजूरी नहीं है. निश्चित रूप से यह मानवता के खिलाफ अपराध होगा कि गर्वित अरबों को कम किया जाए ताकि फिलिस्तीन को आंशिक रूप से या पूरी तरह से यहूदियों को उनके राष्ट्रीय घर के रूप में बहाल किया जा सके.”


‘यहूदियों को जबरन अरबों पर नहीं थोपना चाहिए’


उन्होंने लिखा, “बेहतर तरीका यह होगा कि यहूदियों के साथ न्यायपूर्ण व्यवहार पर जोर दिया जाए, चाहे वे कहीं भी पैदा हुए हों या पले-बढ़े हों. फ्रांस में जन्मे यहूदी ठीक उसी अर्थ में फ्रांसीसी हैं जिस अर्थ में फ्रांस में जन्मे ईसाई फ्रांसीसी हैं. अगर यहूदियों को फिलिस्तीन में जगह ही चाहिए तो क्या उन्हें ये स्वीकार होगा कि दुनिया के अन्य हिस्सों से जबरन हटाया जाए, जहां वे आज हैं? या फिर वे एक दो घर चाहते हैं जहां वे अपनी मर्जी से रह सकें?”


उन्होंने आगे लिखा, “और अब फिलिस्तीन में रहने वाले यहूदियों के लिए एक शब्द. मुझे इसमें कोई संदेह नहीं है कि वे गलत तरीके से आगे बढ़ रहे हैं. बाइबिल की अवधारणा का फिलिस्तीन कोई भौगोलिक क्षेत्र नहीं है. यह उनके दिलों में है. लेकिन अगर उन्हें भूगोल के फिलिस्तीन को अपना राष्ट्रीय घर मानना ​​है तो ब्रिटिश बंदूक की छाया में उसमें प्रवेश करना गलत है. कोई भी धार्मिक कार्य संगीन या बम की सहायता से नहीं किया जा सकता. वे केवल अरबों की सद्भावना से ही फिलिस्तीन में बस सकते हैं. उन्हें अरबों के दिलों को बदलने की कोशिश करनी चाहिए. वही ईश्वर अरबों के दिलों पर राज करता है जो यहूदियों के दिलों पर राज करता है.”


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