नई दिल्ली: जम्मू-कश्मीर की मौजूदा हालत को देखने के लिए यूरोपीय सांसदों का 27 सदस्यीय प्रतिनिधिमंडल श्रीनगर पहुंच चुका है. अनुच्छेद 370 हटाए जाने के बाद यह पहला विदेशी प्रतिनिधिमंडल है जो सरकार की इजाजत पर कश्मीर का दौरा कर रहा है. अब इसी को लेकर देश में राजनीतिक बवाल शुरू हो गया है.
विपक्षी पार्टियां सरकार से पूछ रही है कि जब अपने सांसदों को कश्मीर जाने की इजाजत नहीं दी जा रही है तो विदेशी सांसदों को क्यों भेजा जा रहा है? यही नहीं विपक्ष यह भी पूछ रहा है कि विदेशी सांसदों को कश्मीर भेजा जाना कश्मीर का अंतरराष्ट्रीयकरण नहीं है?
कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी ने आज मोदी सरकार पर कटाक्ष करते हुए कहा कि भारतीय सांसदों को रोकना और विदेशी नेताओं को वहां जाने की अनुमति देना ‘‘अनोखा राष्ट्रवाद’’ है. उन्होंने कहा, ''कश्मीर में यूरोपीय सांसदों को सैर-सपाटा और हस्तक्षेप की इजाजत.... लेकिन भारतीय सांसदों और नेताओं को पहुँचते ही हवाई अड्डे से वापस भेजा गया ! यह बड़ा अनोखा राष्ट्रवाद है.''
वहीं एआईएमआईएम सांसद असदुद्दीन ओवैसी ने कहा, ''यूरोपियन यूनियन के सांसद जो इस्लामोफोबिया (नाजी प्रेम) नाम की बीमारी से पीड़ित हैं, वो मुस्लिम बहुल घाटी जा रहे हैं. गैरों पे करम, अपनों पर सितम, ऐ जा-ए-वफा, एक जुल्म न कर, रहने दे अभी छोड़ा सा धरम.''
बीएसपी अध्यक्ष मायावती ने भी कहा कि पहले भारतीय सांसदों को कश्मीर जाने की इजाजत मिलनी चाहिए थी. उन्होंने ट्वीट कर कहा, ''जम्मू-कश्मीर में संविधान की धारा 370 को समाप्त करने के उपरान्त वहाँ की वर्तमान स्थिति के आकलन के लिए यूरोपीय यूनियन के सांसदों को जम्मू-कश्मीर भेजने से पहले भारत सरकार अगर अपने देश के खासकर विपक्षी पार्टियों के सांसदों को वहां जाने की अनुमति दे देती तो यह ज्यादा बेहतर होता.''
इससे पहले सोमवार को राहुल गांधी ने कहा था, ''कश्मीर दौरे के लिए यूरोपियन यूनियन सांसदों का स्वागत हो रहा है जबकि भारतीय सांसदों को वहां जाना बैन है. कुछ तो गड़बड़ हो रहा है.'' पार्टी के वरिष्ठ नेता जयराम रमेश ने ट्वीट कर कहा, ‘‘जब भारतीय नेताओं को जम्मू-कश्मीर के लोगों से मुलाकात करने से रोक दिया गया तो फिर राष्ट्रवाद का चैम्पियन होने का दावा करने वालों ने यूरोपीय नेताओं को किस वजह से जम्मू-कश्मीर का दौरा करने की इजाजत दी ?’’ उन्होंने आरोप लगाया, ‘‘यह भारत की संसद और लोकतंत्र का अपमान है.’’
कश्मीर में नजरबंद पूर्व मुख्यमंत्री और पीडीपी नेता महबूबा मुफ्ती ने के ट्वीटर हैंडल से भी ट्वीट किया गया. लिखा गया है, ''उम्मीद है कि उन्हें लोगों, स्थानीय मीडिया, डॉक्टरों और नागरिक समाज के सदस्यों से बातचीत करने का मौका मिलेगा. कश्मीर और दुनिया के बीच के लोहे के आवरण को हटाने की जरूरत है. जम्मू-कश्मीर को अशांति की ओर धकेलने के लिए भारत सरकार को जवाबदेह बनाया जाना चाहिए.’’ उन्होंने अमेरिकी सीनेटरों को अनुमति नहीं देने के केंद्र के फैसले पर सवाल उठाया.
बीजेपी सांसद सुब्रमण्यम स्वामी ने ट्वीट किया, "मुझे आश्चर्य है कि विदेश मंत्रालय ने यूरोपीय संघ के सांसदों के लिए जम्मू-कश्मीर के कश्मीर क्षेत्र के दौरा की व्यवस्था की है. यह निजी यात्रा है (यूरोपीय संघ का आधिकारिक प्रतिनिधिमंडल नहीं) . यह हमारी राष्ट्रीय नीति के खिलाफ है. मैं सरकार से इस यात्रा को रद्द करने का आग्रह करता हूं क्योंकि यह अनैतिक है."
बता दें कि यूरोपीय सांसदों का जम्मू-कश्मीर का दौरा करवाने के पीछे सरकार की बड़ी कूटनीति है. सरकार ने घाटी की स्थिति के बारे में पाकिस्तानी दुष्प्रचार का मुकाबला करने के लिए यह कदम उठाया है. 27 सदस्यों वाली प्रतिनिधिमंडल में नौ देशों के सदस्य हैं. ये सांसद जम्मू कश्मीर प्रशासन के अधिकारियों और स्थानीय लोगों से मुलाकात करेंगे.
आपको बता दें कि इसी साल पांच अगस्त को मोदी सरकार ने जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 को हटाने का एलान किया था. जिसके बाद राहुल गांधी, जम्मू-कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री गुलाम नबी आजाद, यशवंत सिन्हा और सीताराम येचुरी समेत कई नेताओं ने घाटी में जाने और वहां के लोगों से बातचीत करने की कोशिश की. लेकिन प्रशासन ने सभी को एयरपोर्ट से ही वापस दिल्ली भेज दिया.
कश्मीर के कई इलाकों में अब भी कड़े प्रतिबंध लगाए गए हैं. फारुक अब्दुल्ला, उमर अब्दुल्ला और महबूबा मुफ्ती समेत मुख्यधारा के कई नेताओं को नजरबंद रखा गया है.