Asaduddin Owaisi: 'गंभीर कानून की पवित्रता की रक्षा करें', प्लेसेज ऑफ वर्शिप एक्ट को लेकर ओवैसी का पीएम मोदी को पत्र, पढ़ें क्या लिखा
Places of Worship Act 1991: एआईएमआईएम प्रमुख और हैदराबाद सांसद असदुद्दीन ने पूजा स्थल कानून 1991 को लेकर संसद और सुप्रीम कोर्ट की भावनाओं को याद दिलाते हुए पीएम नरेंद्र मोदी को पत्र लिखा है.
Asaduddin Owaisi Letter to PM Narendra Modi: ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन (AIMIM) प्रमुख और हैदराबाद (Hyderabad) से सांसद असदुद्दीन ओवैसी (Asaduddin Owaisi) ने पूजा स्थल कानून 1991 (Places of Worship Act 1991) के संबंध में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (Narendra Modi) को पत्र (Letter) लिखा है. ओवैसी ने पत्र में इस कानून को भारत की धर्मिक विविधता की रक्षा करने वाला बताया है और पीएम कानून की पवित्रता की रक्षा करने के लिए आग्रह किया है.
दरअसल, पूजा स्थल कानून 1991 के कुछ प्रावधानों को चुनौती देते हुए सुप्रीम कोर्ट में याचिकाएं दायर की गई हैं. याचिकाकर्ताओं ने कानून की धारा 2,3 और 4 की संवैधानिकता को चुनौती दी है. उनका कहना है कि इनसे धर्मनिर्पेक्षता के सिद्धांत का उल्लंघन होता है. सेना के रिटायर्ड अधिकारी अनिल काबोत्रा, वकील चंद्रशेखर, देवकीनंदन ठाकुर, स्वामी जितेंद्रानंद सरस्वती, रुद्र विक्रम सिंह और बीजेपी के पूर्व सांसद चिंतामणि मालवीय ने ये याचिकाएं सुप्रीम कोर्ट में दायर की हैं, जिन पर कोर्ट का अंतिम फैसला आना बाकी है.
पत्र में क्या लिखा ओवैसी ने?
ओवैसी ने पीएम मोदी लिखे पत्र में कहा है, ''जैसा कि आप जानते हैं, सुप्रीम कोर्ट भारत संघ से पूजा स्थल कानून 1991 की संवैधानिकता पर अपना रुख स्पष्ट करने लिए कहता रहा है. सबसे पहले यह ध्यान दिया जाना चाहिए कि यह कार्यकारिणी का सामान्य दायित्व है कि वह संसदीय विधान की संवैधानिकता की रक्षा करे.''
ओवैसी ने पत्र में छह बिंदुओं में अपनी बात रखी. उन्होंने लिखा, ''संसद ने 1991 का कानून पूजा स्थलों की वह स्थिति को बनाए रखने के लिए लागू किया जो 15 अगस्त 1947 की थी. ऐसे प्रावधान का प्राथमिक उद्देश्य भारत की विविधता और बहुलवाद की रक्षा करना था. भारत के धार्मिक स्थान या पूजा स्थल हमारे देश की विविधता के प्रतिबिंब हैं. 15 अगस्त 1947 की कट ऑफ डेट भारत की स्वतंत्रता की तारीख है जिसे लेकर संसद ने यह सुनिश्चित करने के लिए स्पष्ट इरादा बताया दिया था कि समाज के सतत विभाजन के कारण स्वतंत्र भारत धार्मिक विवाद नहीं सहेगा. यह स्पष्ट रूप से भारत के स्वतंत्रता संग्राम के मूल्यों का प्रतिबिंब था.''
सांप्रदायिक सौहार्द और सद्भावना की बात
ओवैसी ने आगे लिखा, ''कानून को जब संसद में पेश किया गया था तो इसे विवादों से बचने के लिए आवश्यक उपाय बताया गया था जो समय-समय पर पूजा स्थलों के रूपांतरण के संबंध में उठते हैं, जिससे सांप्रदायिक माहौल खराब होता है. इस उम्मीद के साथ कानून लागू किया गया था कि यह अतीत के घावों को भर देगा और सांप्रदायिक सौहार्द और सद्भावना को बहाल करने में मदद करेगा.''
Wrote to @PMOIndia regarding Places of Worship Act, 1991. #SupremeCourt is hearing a challenge to its constitutionality & has sought Union govt’s stand. SC had held that the Act enforced basic structure of the constitution. PM must defend the Act as it upholds India’s diversity pic.twitter.com/B9oZPpyNxO
— Asaduddin Owaisi (@asadowaisi) October 19, 2022
'प्रत्येक नागरिक का सकारात्मक दायित्व माना गया कानून'
हैदराबाद सांसद ने आगे लिखा, ''बाबरी मस्जिद विवाद का फैसला करते हुए माननीय सुप्रीम कोर्ट ने 1991 को अधिनियमित करके अपनी संवैधानिक प्रतिबद्धता को लागू किया था और धर्मनिरपेक्षता के सिद्धांत को बनाए रखने के लिए अपने संवैधानिक दायित्व को लागू किया था जो संविधान की मूल संरचना का हिस्सा है. कोर्ट ने आगे कहा था कि 1991 का अधिनियम एक विधायी हस्तक्षेप है जो गैर-प्रतिगमन को धर्मनिरपेक्ष मूल्यों की एक अनिवार्य विशेषता के रूप में संरक्षित करता है.
अदालत ने माना कि 15 अगस्त 1947 को मौजूद पूजा स्थलों के धार्मिक चरित्र के संरक्षण की गारंटी देने में संसद ने हर धार्मिक समुदाय को विश्वास दिलाया कि पूजा स्थलों को संरक्षित किया जाएगा और उनके धार्मिक चरित्र में कोई बदलाव नहीं किया जाएगा. कानून को न केवल देश का बल्कि इस देश के प्रत्येक नागरिक का सकारात्मक दायित्व माना गया.''
ओवैसी ने पीएम मोदी से किया यह आग्रह
उन्होंने लिखा, ''जबकि संसद ने अधिनियम को सांप्रदायिक सद्भाव और शांति को बनाए रखने के उपाय के रूप में माना था, माननीय सर्वोच्च न्यायालय ने इसे एक महत्वपूर्ण संवैधानिक मूल्य के रूप में सभी राज्यों की समानता को संरक्षित करने के लिए राज्य पर एक गंभीर कर्तव्य के गठन के रूप में माना था जिसे संविधान की मूल विशेषता होने का दर्जा प्राप्त है. मैं आपसे अनुरोध करता हूं कि कार्यपालिका को ऐसा कोई दृष्टिकोण न लेने दें जो संवैधानिकता की सच्ची भावना से विचलित हो जैसा कि माननीय सुप्रीम कोर्ट के फैसले के साथ-साथ कानून के लक्ष्यों और उद्देश्यों में प्रतिबिंबित होता है.''
'अल्पसंख्यकों को बहुसंख्यकों के अत्याचार से बचाता है कानून'
एआईएमआईएम प्रमुख ने लिखा, ''माननीय सर्वोच्च न्यायालय ने पाया है कि संवैधानिक नैतिकता की अवधारणा हमारी संवैधानिक व्यवस्था में अंतर्निहित है. यह बुनियादी नियम है जो संस्थाओं को अत्याचारी बनने से रोकता है, लोकतंत्र में व्यक्तियों की गलती के खिलाफ चेतावनी देता है, राज्य की शक्ति की जांच करता है और अल्पसंख्यकों को बहुसंख्यकों के अत्याचार से बचाता है. यह अब परीक्षण के लिए रखा जा रहा है. मुझे आशा है कि आपके नेतृत्व वाली कार्यकारिणी संवैधानिक नैतिकता के आदर्श को बनाए रखने और 1991 के अधिनियम की रक्षा करने के लिए कार्य करेगी.''
'आधुनिक भारत मध्यकालीन विवादों को सुलझाने का युद्धक्षेत्र नहीं'
असदुद्दीन ओवैसी ने लिखा, ''कानून इस विचार का प्रतिनिधित्व करता है कि कोई भी इतिहास के खिलाफ अंतहीन मुकदमा नहीं कर सकता है. आधुनिक भारत मध्यकालीन विवादों को सुलझाने का युद्धक्षेत्र नहीं हो सकता. यह अनावश्यक धार्मिक विवादों को समाप्त करता है और भारत की धार्मिक विविधता की रक्षा करता है, इसलिए मैं आपसे गंभीर कानून की पवित्रता की रक्षा करने का आग्रह करता हूं.''
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