जयपुर: अपनी सुख सुविधाओं की ख़ातिर राजनेता हमेशा दलगत राजनीति से ऊपर उठकर सोचते और व्यवहार करते हैं. इसका ताजा नमूना राजस्थान में देखने को मिला. यहां करीब तेरह महीनों से कांग्रेस की सरकार अशोक गहलोत चला रहे हैं. कांग्रेस का राज होने के बावजूद पूर्व सीएम और बीजेपी नेता वसुंधरा राजे को मिले शानदार सरकारी बंगले और दूसरी सुख सुविधाओं को बचाए रखने के लिए राज्य सरकार एड़ी से लेकर चोटी तक का जोर लगा रही है.


दरअसल सुप्रीम कोर्ट ये साफ कर चुका है कि, पद से हटने के बाद कोई भी राजनेता खास नहीं रह जाता. इसलिए उसे आम आदमी माना जाए. पूर्व सीएम के नाते उसे सरकारी बंगले और करोड़ों रुपए की सालाना नौकर, गाड़ी और अन्य सुविधाएं नहीं दी सकती. बावजूद इसके राजस्थन की गहलोत सरकार ने अब तक वसुंधरा राजे के 13 सिविल लाइंस नम्बर के सरकारी बंगले को वापस लेने की दिशा में कोई पहल नहीं की है.


वसुंधरा राजे को आवंटित इस शानदार बंगले की क्या अहमियत है. इसे इस बात से समझा जा सकता है कि, वसुंधरा राजे ने बतौर सीएम पांच साल का अपना राज इसी बंगले में रहते हुए चलाया था. राजस्थान की राजधानी जयपुर का सिविल लाइंस का इलाका बेहद पॉश इलाका माना जाता है. यहां का आठ सिविल लाइंस नम्बर का बंगला मुख्यमंत्री के लिए आरक्षित है, लेकिन वसुंधरा राजे अपने शासन के पांच साल में कभी भी मुख्यमंत्री निवास घोषित 8 सिविल लाइंस में नहीं रहीं.


राजे के तेरह सिविल लाइंस नम्बर वाले इस सरकारी बंगले के प्रति मोह की असली वजह इस बंगले की सुंदरता है. साल 2008 से 2013 के दौरान वसुंधरा राजे प्रदेश की सत्ता से बाहर हुई थीं और तब उन्होंने पूर्व सीएम के नाते मिले इस तेरह सिविल लाइंस के बंगले पर करोड़ों रुपए सरकारी खाते से खर्च करवाये थे. बताया जाता हैं कि इस सरकारी बंगले के भीतरी हिस्से में सिर्फ वसुंधरा और उनके दो चार करीबी सेवादार ही आ जा सकते हैं. कोई राजनेता या अफसर भी इस बंगले को अंदर से नहीं देख पाया.


अब सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद भी राजस्थान सरकार ने वसुंधरा राजे और एक अन्य पूर्व सीएम जगन्नाथ पहाड़िया से सरकारी बंगले खाली नहीं करवाए तो वरिष्ठ पत्रकार मिलाप चंदडांडिया ने हाईकोर्ट में अवमानना याचिका दाखिल कर दी. इस पर सुनवाई की तारीख से एन एक दिन पहले वसुंधरा राजे और पहाड़िया ने उन्हें मिली सरकारी गाड़ी तो लौटा दी, मगर अपने सरकारी बंगलों का कब्जा नहीं छोड़ा.


लेकिन गहलोत सरकार की मंशा इस मामले में क्या हैं ये भी सरकारी जवाब से साफ हो गया. सरकार ने अपने जवाब में कहा कि विधायकों को मिलने वाली सुख सुविधाओं को लेकर राज्य सरकार जल्दी ही एक नीति ला रही हैं. इससे जाहिर है कि, राजनेता पार्टी लाइन के लिहाज से भले ही अलग हो लेकिन एक दूसरे का ध्यान सब रखते हैं. क्योंकि आज सत्ता पर काबिज लोग इस बात का अच्छी तरह जानते हैं कि, कल सता से बाहर भी जाना पड़ेगा. अब देखना ये रोचक रहेगा कि वसुंधरा राजे को सरकारी बंगले में बनाए रखने के लिए गहलोत सरकार क्या नया पेंच फंसाएगी.


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