नई दिल्ली: अशोक गहलोत राजस्थान के नए मुख्यमंत्री होंगे. पार्टी ने उनके नाम पर मुहर लगा दी है. वहीं सचिन पायलट को डेप्युटी सीएम के पद के लिए पार्टी ने चुना है.


अशोक गहलोत ने इस बार सरदारपुरा सीट से जीत दर्ज की है. उनके सामने बीजेपी ने शंभूसिंह खेतासर को चुनावी मैदान में उतारा था. सरदारपुरा में ही उनका पुश्‍तैनी घर भी है. यह विधानसभा क्षेत्र जोधपुर में आता है. यहीं के पुश्‍तैनी घर में साल 1951 में उनका जन्म भी हुआ. यहीं के जैन वर्धमान स्कूल में उन्‍होंने पांचवीं तक पढ़ाई की थी. 1962 में उन्‍होंने छठी में सुमेर स्कूल में दाखिला लिया.


कॉलेज के समय से ही वह छात्र राजनीति में रहे. पहले वह डॉक्टर बनना चाहते थे लेकिन किस्मत राजनीति में ले आई. डॉक्टर बनने की चाह लिए उन्होंने जोधपुर विश्वविद्यालय मे दाखिला लिया. उन्हें कामयाबी नहीं मिली और केवल बीएससी की डिग्री से संतोष करना पड़ा. उनकी कॉलेज की जिंदगी और छात्र राजनीति साथ-साथ चलती रही.


अशोक गहलोत के पिता बड़े जादूगर थे और अशोक गहलोत ने भी पिता से जादू सीखा था. वह उस समय दिल्ली में जब इंद्रिरा गांधी और फिर राहुल गांधी से मिलने आया करते थे तो कभी-कभी लंबा इंतजार करना पड़ता था. तब प्रियंका और राहुल गांधी छोटे हुआ करते थे. गहलोत दोनों को ताश के पत्तों के साथ जादू दिखाते थे. गहलोत के करीबी बताते हैं कि जादू दोनों को इतना पसंद आता था थी गहलोत को देखते ही राहुल और प्रियंका जादू दिखाने की फरमाइश कर बैठते थे. अशोक गहलोत का नया नाम पड़ा.जादूगर अंकल. बाद में अशोक गहलोत ने बड़े बड़े कांग्रेस नेताओं को पछाड़ते हुए राजस्थान की राजनीति में अपना नाम पैदा किया और दो दो बार मुख्यमंत्री बने. उनका जादू सर चढ़कर बोला.


राजनीतिक सफर

वह 1973 से लेकर 1979 तक राजस्थान NSUI के अध्यक्ष रहे. जब देश में आपालकाल के बाद कोई भी नेता कांग्रेस के टिकट पर चुनाव लड़ने को तैयार नहीं था. उस वक्त अशोक गहलोत ने चुनाव लड़ने का ऑफर स्वीकार किया. 1980 में वह पहली बार लोकसभा के लिए चुने गए. गहलोत जोधपुर संसदीय क्षेत्र से निर्वाचित हुए. उस दौर में वह लोकसभा के लिए चुने गए सबसे युवा सांसद थे.


1984 में गहलोत राजस्थान प्रदेश कांग्रेस कमेटी के सबसे युवा अध्यक्ष बना दिए गए. राजस्‍थान में गहलोत ने पार्टी में जान फूंकने के लिए जमीनी स्‍तर पर काफी काम किया.अशोक गहलोत पहली बार साल 1998 में राजस्थान के मुख्यमंत्री और फिर उसके बाद 2008 में भी मुख्यमंत्री का कार्यभार संभाला. उन्‍होंने जोधपुर संसदीय क्षेत्र का 8वीं लोकसभा (1984-1989), 10वीं लोकसभा (1991-96), 11वीं लोकसभा (1996-98) तथा 12वीं लोकसभा (1998-1999) में प्रतिनिधित्‍व किया.


इंदिरा गांधी के बाद गहलोत राजीव गांधी के भी काफी करीब थे. हालांकि राहुल गांधी के समय में सीपी जोशी को तवज्‍जो दिए जाने के बाद उनके मन में कुछ नाराजगी जरूर आई. लेकिन इसके बाद भी वह पार्टी को आगे बढ़ाने का काम करते रहे.


राजनीति से हताश होकर सहकारी खाद बेचने की एजेंसी ले ली


अशोक गहलोत एक बार तो राजनीति में इस कदर हताश हो चुके थे कि उन्होंने जोधपुर के पास पाली में सहकारी खाद बेचने की एजेंसी ले ली थी. जोधपुर संभाग में जाटों और राजपूतों की कब्जा था. कहीं-कहीं मुस्लिम और मेघवाल के साथ साथ विश्नोई वोट भी महत्वपूर्ण हो जाते थे लेकिन माली वोट हाशिए पर ही रहते थे. अशोक गहलोत खुद माली यानि ओबीसी वर्ग से हैं.


कांग्रेस के साथ जाट पूरी शिद्दत से जुड़े थे और परसराम मदेरणा जैसे बड़े जाट नेता हुआ करते थे. अशोक गहलोत यूथ कांग्रेस से जुड़े थे. तत्कालीन प्रधानमंत्री इंद्रिरा गांधी की नजर में उनकी एक युवा जुझारू नेता के रुप में छवि थी जिसे वह पसंद करती थी लेकिन जातिगत समीकरण विपरीत होने के चलते चुनावी राजनीति में अशोक गहलोत खुद को अनफिट पा रहे थे. हताशा के इसी दौर में गहलोत ने राजनीति छोड़ने और खाद की दुकान खोलने का फैसला कर लिया था. उसी दौरान लोकसभा चुनाव की घोषणा हुई.


बताया जाता है कि 1980 को लोकसभा चुनावों में जोधपुर से बड़े कांग्रेस नेता चुनाव लड़ने की हिम्मत नहीं दिखा पा रहे थे. तब इंद्रिरा गांधी ने जाट नेता परसराम मदेरणा से किसी युवा नेता के बारे में पूछा. मदेरणा के यहां अशोक गहलोत का आना जाना था. मदेरणा ने कहा कि अशोक्या को लड़वा देते हैं चुनाव. अशोक गहलोत के पास खाद की दुकान छोड़ कर राजनीति में दांव आजमामे का यह आखिरी मौका था. गहलोत से विपरीत हालात में चुनाव लड़ा और फिर पीछे मुड़कर नहीं देखा. गहलोत के जोधपुर का नारा है 'गहलोत नहीं आंधी है', 'मारवाड़ का गांधी है'. गहलोत अपनी सादगी के लिए भी जाने जाते हैं.