नई दिल्ली: अशोक गहलोत एक बार तो राजनीति में इस कदर हताश हो चुके थे कि उन्होंने जोधपुर के पास पाली में सहकारी खाद बेचने की एजेंसी ले ली थी. जोधपुर संभाग में जाटों और राजपूतों की कब्जा था. कहीं-कहीं मुस्लिम और मेघवाल के साथ साथ विश्नोई वोट भी महत्वपूर्ण हो जाते थे लेकिन माली वोट हाशिए पर ही रहते थे. अशोक गहलोत खुद माली यानि ओबीसी वर्ग से हैं.
कांग्रेस के साथ जाट पूरी शिद्दत से जुड़े थे और परसराम मदेरणा जैसे बड़े जाट नेता हुआ करते थे. अशोक गहलोत यूथ कांग्रेस से जुड़े थे. तत्कालीन प्रधानमंत्री इंद्रिरा गांधी की नजर में उनकी एक युवा जुझारू नेता के रुप में छवि थी जिसे वह पसंद करती थी लेकिन जातिगत समीकरण विपरीत होने के चलते चुनावी राजनीति में अशोक गहलोत खुद को अनफिट पा रहे थे. हताशा के इसी दौर में गहलोत ने राजनीति छोड़ने और खाद की दुकान खोलने का फैसला कर लिया था. उसी दौरान लोकसभा चुनाव की घोषणा हुई.
बताया जाता है कि 1980 को लोकसभा चुनावों में जोधपुर से बड़े कांग्रेस नेता चुनाव लड़ने की हिम्मत नहीं दिखा पा रहे थे. तब इंद्रिरा गांधी ने जाट नेता परसराम मदेरणा से किसी युवा नेता के बारे में पूछा. मदेरणा के यहां अशोक गहलोत का आना जाना था. मदेरणा ने कहा कि अशोक्या को लड़वा देते हैं चुनाव. अशोक गहलोत के पास खाद की दुकान छोड़ कर राजनीति में दांव आजमामे का यह आखिरी मौका था. गहलोत से विपरीत हालात में चुनाव लड़ा और फिर पीछे मुड़कर नहीं देखा.
अशोक गहलोत के पिता बड़े जादूगर थे और अशोक गहलोत ने भी पिता से जादू सीखा था. वह उस समय दिल्ली में जब इंद्रिरा गांधी और फिर राहुल गांधी से मिलने आया करते थे तो कभी-कभी लंबा इंतजार करना पड़ता था. तब प्रियंका और राहुल गांधी छोटे हुआ करते थे. गहलोत दोनों को ताश के पत्तों के साथ जादू दिखाते थे. गहलोत के करीबी बताते हैं कि जादू दोनों को इतना पसंद आता था ति गहलोत को देखते ही राहुल और प्रियंका जादू दिखाने की फरमाइश कर बैठते थे. अशोक गहलोत का नया नाम पड़ा...जादूगर अंकल. बाद में अशोक गहलोत ने बड़े बड़े कांग्रेस नेताओं को पछाड़ते हुए राजस्थान की राजनीति में अपना नाम पैदा किया और दो दो बार मुख्यमंत्री बने. उनका जादू सर चढ़कर बोला.
गहलोत जोधपुर से आते हैं जो मारवाड़ में पड़ता है. वहां का नारा है 'गहलोत नहीं आंधी है', 'मारवाड़ का गांधी है'. गहलोत अपनी सादगी के लिए भी जाने जाते हैं. हमेशा सूत की माला ही स्वीकारते हैं. मुख्यमंत्री रहते हुए अपनी बेटी सोनिया की शादी बेहद सादे अंदाज में की थी. गहलोत पर कभी भ्रष्टाचार के गंभीर आरोप नहीं लगे. दामाद की फर्मों को लाभ पहुंचाने का आरोप लगा था लेकिन जांच में कुछ खिलाफ नहीं पाया गया.
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