Ashok Gehlot Vs Shashi Tharoor: कांग्रेस अध्यक्ष पद का चुनाव (Congress President Election) लड़ने को तैयार पार्टी के वरिष्ठ नेता शशि थरूर (Shashi Tharoor) और अशोक गहलोत (Ashok Gehlot) न केवल अलग-अलग पृष्ठभूमि (Background) से आते हैं, बल्कि उनका राजनीतिक सफर (Political Journey) भी अलग रहा है. राजस्थान के मुख्यमंत्री (Rajasthan CM) गहलोत ने जहां अपनी उम्मीदवारी का एलान कर दिया है, वहीं पूर्व केंद्रीय मंत्री थरूर ने भी शनिवार को नामांकन (Nomination) फॉर्म मंगवाकर अपनी मंशा जाहिर कर दी है.
एक तरफ 71 वर्षीय गहलोत हैं, जो छात्र दिनों से कांग्रेस से जुड़े जमीनी स्तर के नेता और संगठनात्मक व्यक्ति हैं, जो हमेशा पार्टी लाइन और जनता के नेता रहे हैं. दूसरी तरफ मुखर, विद्वान और सौम्य स्वभाव के 66 वर्षीय थरूर हैं, जो अपने मन की बात कहने के लिए जाने जाते हैं और संयुक्त राष्ट्र में लंबे कार्यकाल के बाद 2009 में कांग्रेस में शामिल हुए.
क्या है दोनों नेताओं का बैकग्राउंड
दोनों नेताओं की पृष्ठभूमि भी अलग है. गहलोत के पिता बाबू लक्ष्मण सिंह दक्ष पेशेवर जादूगर थे और प्रदर्शन करने के लिए विभिन्न शहरों की यात्रा करते थे. थरूर का जन्म लंदन में हुआ था और उनकी शानदार शैक्षणिक पृष्ठभूमि है. गहलोत विज्ञान में स्नातक, अर्थशास्त्र में स्नातकोत्तर हैं और उन्होंने कानून की पढ़ाई की है.
थरूर ने भारत और अमेरिका के प्रमुख संस्थानों में अध्ययन किया है, जिसमें दिल्ली का सेंट स्टीफंस कॉलेज और मैसाचुसेट्स का फ्लेचर स्कूल ऑफ लॉ एंड डिप्लोमेसी शामिल है. थरूर ने 1978 में फ्लेचर स्कूल ऑफ लॉ एंड डिप्लोमेसी से पीएचडी पूरी की.
गहलोत ने छात्र नेता के रूप में एनएसयूआई से सफर शुरू किया और धीरे-धीरे पार्टी में ऊंचे ओहदे पर पहुंचे. वहीं, थरूर का राजनीति में प्रवेश से पहले संयुक्त राष्ट्र में लंबा करियर रहा, जहां संचार और जन सूचना के लिए अवर-महासचिव की भूमिका के अलावा, उन्होंने महासचिव के वरिष्ठ सलाहकार के रूप में कार्य किया था.
गहलोत ने NSUI से किया करियर शुरू, थरूर ने दी UN में सेवा
गहलोत 1974 से 1979 तक नेशनल स्टूडेंट्स यूनियन ऑफ इंडिया (NSUI) के राजस्थान अध्यक्ष थे और 1979 से 1982 तक जोधपुर शहर कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष बने. फिर उन्हें राज्य कांग्रेस कमेटी के महासचिव के रूप में पदोन्नत किया गया. वह पहली बार 1980 में संसद के लिए चुने गए और चार बार लोकसभा चुनाव जीते. केंद्र में, गहलोत ने 1982 और 1993 के बीच विभिन्न कार्यकाल में पर्यटन, नागरिक उड्डयन, खेल और वस्त्र मंत्रालयों में राज्य मंत्री के रूप में कार्य किया.
गहलोत ने 1999 से राजस्थान में सरदारपुरा विधानसभा क्षेत्र का प्रतिनिधित्व किया और लगातार पांच बार जीत हासिल की. दूसरी ओर, थरूर 2006 में संयुक्त राष्ट्र महासचिव पद के चुनाव में बान की मून से हार गए और दूसरे स्थान पर रहे. सेवानिवृत्ति की घोषणा के बाद थरूर ने राजनीति में प्रवेश किया और 2009 में संसद के लिए निर्वाचित हुए.
दोनों नेताओं का राजनीतिक अनुभव
थरूर बहुत सक्रिय सांसद रहे हैं और तिरुवनंतपुरम लोकसभा क्षेत्र से लगातार तीन चुनाव जीते हैं लेकिन पार्टी संगठनात्मक पदों पर उन्होंने काम नहीं किया है जबकि गहलोत अनुभवी नेता हैं जिन्होंने अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी (AICC) महासचिव प्रभारी संगठन के रूप में भी काम किया है.
गहलोत को थरूर के समान प्रभावी वक्ता नहीं माना जाता है, जो अंग्रेजी में ओजस्वी भाषण कला के लिए जाने जाते हैं और हिंदी भी सीख रहे हैं. हालांकि, राजस्थान के मुख्यमंत्री अपनी सादगी और लोगों से जुड़ाव के लिए जाने जाते हैं.
इसके अलावा, गहलोत ऐसे कद्दावर नेता हैं, जो राजनीति में रचे बसे हैं जबकि थरूर ऐसे व्यक्ति हैं जो लेखक और नेता होने के साथ पूर्व अंतरराष्ट्रीय नौकरशाह का अनुभव भी रखते हैं.
गहलोत पार्टी लाइन वाले और थरूर जी-23 समूह के नेता
गहलोत को गांधी परिवार का वफादार और हमेशा पार्टी लाइन को मानने वाले नेता के तौर पर जाना जाता है जबकि थरूर अपने मन की बात कहना पसंद करते हैं और उन 23 नेताओं के समूह में शामिल थे, जिन्होंने 2020 में पार्टी में सुधारों की मांग करते हुए कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी को पत्र लिखा था.
गहलोत की लोकप्रियता जहां किसानों और निम्न आय वर्ग के बीच ज्यादा है, वहीं थरूर की लोकप्रियता मध्यम और उच्च वर्ग के बीच अधिक है. गहलोत पुराने जमाने के राजनेता हैं जो पारंपरिक तरीके से काम करना पसंद करते हैं और राजनीति के हर फन के उस्ताद हैं जबकि थरूर नवाचार और अनूठे विचारों से प्रेरित हैं.
थरूर सोशल मीडिया को राजनीतिक बातचीत के साधन के रूप में इस्तेमाल करने में अग्रणी हैं. वह 2013 तक, ट्विटर पर भारत के सबसे अधिक फॉलो किए जाने वाले नेता थे. उस साल वर्तमान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी उनसे आगे निकल गए.
हालांकि, सोशल मीडिया पर अपनी टिप्पणियों के कारण कई बार थरूर आलोचनाओं में भी घिरे हैं. विशेष रूप से राजनीतिक पदार्पण के शुरुआती दिनों में ‘कैटल क्लास’ वाली टिप्पणी के लिए उन्हें बाद में माफी मांगनी पड़ी थी.
दोनों के पास लोगों को प्रभावित करने का ये टैलेंट
गहलोत ने दिखाया है कि वह अपने राजनीतिक कौशल और सूझबूझ से अपने प्रतिद्वंद्वियों को मात दे सकते हैं. वहीं, थरूर के पास शब्दों के साथ और अपने अनूठे दृष्टिकोण से प्रभावित करने की क्षमता है लेकिन इस रोचक मुकाबले के विजेता का खुलासा 19 अक्टूबर को होगा.
कांग्रेस की ओर से गुरुवार को जारी अधिसूचना के मुताबिक चुनाव के लिए नामांकन दाखिल करने की प्रक्रिया 24 सितंबर से 30 सितंबर तक चलेगी. नामांकन पत्रों की जांच की तिथि एक अक्टूबर है जबकि नामांकन वापस लेने की अंतिम तिथि 8 अक्टूबर है. अगर जरूरत पड़ी तो मतदान 17 अक्टूबर को होगा. मतों की गिनती 19 अक्टूबर को होगी और उसी दिन परिणाम घोषित किया जाएगा. चुनाव में प्रदेश कांग्रेस कमेटी के 9000 से अधिक प्रतिनिधि मतदान करेंगे.
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