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National Emblem Ashok Stambh: अशोक की लाट का भारत का प्रतीक चिह्न बनने का सफर,जानिए सबकुछ यहां

National Emblem Ashok Stambh: देश का राजचिन्ह सारनाथ के अशोक स्तंभ से लिया गया है. सोमवार को सेंट्रल विस्टा प्रोजेक्ट के हिस्से के तहत नए संसद भवन के शीर्ष पर इसका अनावरण पीएम नरेंद्र मोदी ने किया.

National  Emblem Of India Ashok Stambh:  सोमवार को  सेंट्रल विस्टा प्रोजेक्ट (Central Vista Project) के तहत नए संसद भवन (Parliament Building ) की छत पर देश के राजचिन्ह (National Emblem) अशोक की स्तंभ (Ashok Stambh -Laat) का अनावरण प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने किया. अशोक के स्तंभ का भारत के राष्ट्रीय प्रतीक के तौर पर चुना जाना भारतीय संविधान निर्माताओं की दूरदर्शी सोच का भी परिचायक है. देश की संसद पर इसका होना भी अपना महत्व रखता है. सम्राट अशोक की इस लाट और भारत के बीच भी एक खास संबंध है.

राष्ट्रीय प्रतीक की अहमियत

राष्ट्रीय प्रतीक अधिकार का प्रतीक है और सरकार के सभी आधिकारिक संचार में इसका इस्तेमाल किया जाता है. भारत के इस राष्ट्रीय प्रतीक या राजचिह्न को सारनाथ के अशोक स्तंभ से लिया गया है. यह प्रतीक दुनिया में किसी भी देश स्वतंत्र राष्ट्र के अस्तिव और संस्कृति प्रतिनिधित्व करता है. इसे 'राज्य प्रतीक' कहा जाता है. इसे 26 जनवरी 1950 को अपनाया गया था, जिस दिन भारतीय संविधान लागू हुआ था. तभी से ये भारत गणराज्य द्वारा भारत के राष्ट्रीय चिह्न के रूप में इस्तेमाल किया जाता है.

धर्मचक्र प्रवर्तन की घटना का स्मारक

दरअसल सारनाथ का अशोक स्तंभ धर्मचक्र वर्तन की घटना की याद के तौर पर स्थापित किया गया था. इसकी स्थापना धर्मसंघ की अक्षुण्णता बनाए रखने के लिए की गई थी. यह चुनार के बलुआ पत्थर के लगभग 45 फुट लंबे प्रस्तर खंड पर  बना हुआ है. जमीन के अंदर धंसे आधार को छोड़कर इसका दंड गोलाकार है, जो ऊपर की तरफ पतला होता जाता है. दंड के ऊपर इसका कंठ और कंठ के ऊपर शीर्ष है. कंठ के नीचे उलटा कमल है. गोलाकार कंठ चक्र से चार भागों में बंटा है. उनमें  हाथी, घोड़ा, सांड (बुद्ध की वृष राशि का प्रतीक)और सिंह की सजीव आकृतियां उभरी हुई है. कंठ के ऊपर शीर्ष में चार सिंह मूर्तियां हैं जो एक दूसरी से जुड़ी हुई हैं. इन चारों के बीच में एक छोटा दंड था,जो 32 तिल्लियों वाले धर्मचक्र को प्रदर्शित करता है. ये भगवान बुद्ध के 32 महापुरूष गुणों का प्रतीक माना जाता है. यह स्तंभ अपनी बनावट में ही अद्भुत है. इस वक्त इसका निचला भाग अपने मूल स्थान में है. शेष संग्रहालय में रखा है. धर्मचक्र के केवल कुछ ही टुकड़े उपलब्ध है. चक्ररहित सिंह शीर्ष ही आज भारत गणतंत्र का राज्य चिह्न है.

प्रतीक चिन्ह के सिंह भी कहते हैं बहुत कुछ

सारनाथ के जिस अशोक स्तंभ को भारत के राष्ट्रीय प्रतीक होने का गौरव प्राप्त है, उसमें दिखाए गए सिंहों का भी अपना महत्व है. हालांकि चार में से केवल तीन ही सिंह प्रत्यक्ष तौर पर दिखाई पड़ते हैं. बौद्ध धर्म के मुताबिक सिंह विश्वगुरु और तथागत बुद्ध माने जाते हैं. पालि गाथाओं के अनुसार भगवान बुद्ध शाक्यसिंह और नरसिंह भी माने गए हैं. बुद्ध ने वर्षावास समाप्ति पर मृगदाव में  भिक्षुओं को चारों दिशाओं में जाकर लोक कल्याण हेतु बहुजन हिताय बहुजन सुखाय का प्रचार करने को कहा था. यही जगह आज सारनाथ (Sarnath) के नाम से मशहूर है. इसलिए यहां पर मौर्य साम्राज्य (Maurya Empire) के तीसरे सम्राट व सम्राट चन्द्रगुप्त मौर्य के पौत्र चक्रवर्ती अशोक महान ने चारों दिशाओं में सिंह गर्जना करते हुए शेरों का निर्माण करवाया था. चक्रवर्ती सम्राट अशोक महान का यह चौमुखी सिंह स्तंभ विश्वगुरू तथागत बुद्ध के धर्म चक्र प्रवर्तन तथा उनके लोक कल्याणकारी धर्म के प्रतीक के रूप में स्थापित है.  

कलिंग युद्ध के बाद बदला था सम्राट अशोक का दिल

देश के राष्ट्रीय प्रतीक चिन्ह कोई मामूली प्रतीक नहीं है. ये एक क्रूर सम्राट के हृदय परिवर्तन की घटना को भी बयां करता है. आज से पहले 273 ईसा पूर्व के कालखंड में पीछे चला जाए तो भारतवर्ष में मौर्य वंश तीसरे राजा अशोक (Emperor Ashoka) का राज था. वह एक क्रूर शासक माने जाते थे. कंलिगा युद्ध के नरसंहार ने इसे क्रूर शासक का ऐसा हृदय परिवर्तन किया कि उसने अपना जीवन बौद्ध धर्म को समर्पित कर दिया. इसी बौद्ध धर्म ( Buddha Dharma) के प्रचार में उनका पूरा परिवार शामिल हो गया और उन्होंने सारनाथ में अशोक स्तंभ (Ashok Stambh) का निर्माण करवाया. यहां भगवान बुद्ध ने अपना पहला उपदेश दिया था और इसे सिंह गर्जना के तौर पर भी जाना जाता है.  भारत की आजादी के बाद देश का भी कायाकल्प हुआ शायद इसलिए देश के संविधान निर्माताओं ने इसे राष्ट्रीय प्रतीक के तौर पर मान्यता दी.

सत्य की हमेशा विजय होती है

भारत का राष्ट्रीय प्रतीक अपने आप में अनोखा और अद्वितीय है. अशोक स्तंभ में चार शेर हैं, लेकिन तीन ही शेर दिखाई पड़ते हैं. इसकी गोलाकार आकृति की वजह से आप किसी भी तरफ से देखें तो आपको केवल तीन ही शेर दिखाई पड़ते हैं. एक शेर हमेशा नहीं दिखाई पड़ता. इसके नीचे एक सांड और एक घोड़े की आकृतियों के बीच में एक चक्र हैं. इसे हमारे राष्ट्रीय झंडे में स्थान दिया गया है. इसके साथ ही अशोक स्तंभ के नीचे मुण्डकोपनिषद का सूत्र "सत्यमेव जयते-Satyamev Jayate" लिखा हुआ है. इसका मतलब है कि सच हमेशा जीतता है. 

यूं ही नहीं इस्तेमाल कर सकते प्रतीक चिन्ह

इसकी ताकत इतनी है कि ये एक साधारण से  कागज़ पर लग जाए तो उसका महत्व बढ़ा देता है, क्योंकि यह संवैधानिक पद और संविधान की ताकत को प्रदर्शित करता है.अशोक की लाट वाले इस राष्ट्रीय प्रतीक (National Emblem)का इस्तेमाल हर कोई नहीं कर सकता है. केवल संवैधानिक पदों पर आसीन व्यक्ति ही इसका इस्तेमाल कर सकते हैं. इनमें देश राष्ट्रपति, उप राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री, केंद्रीय मंत्री,राज्यपाल,उप राज्यपाल, न्यायपालिका और सरकारी संस्थाओं के उच्च अधिकारी जैसे लोग आते हैं. हालांकि रिटायर होने के बाद कोई भी मंत्री, सांसद, विधायक और अधिकारी बगैर अधिकार के इसका इस्तेमाल नहीं कर सकते हैं. इतना सब होने के बाद भी इस प्रतीक का बेजा इस्तेमाल होने पर भारतीय राष्ट्रीय चिन्ह (दुरुपयोग की रोकथाम) एक्ट 2005 बनाया गया. साल 2007 में इसमें सुधार कर अपडेट किया गया. इसके तहत बगैर अधिकार कोई भी इसका इस्तेमाल करता है तो उसे दो साल की कैद और पांच हजार रुपये तक का जुर्माना हो सकता है. 

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