हरियाणा विधानसभा चुनाव 2019: सितंबर महीने की शुरुआत में कांग्रेस ने भूपेंद्र सिंह हुड्डा की मांगों के सामने झुकते हुए अशोक तंवर को अध्यक्ष पद से हटा दिया था. पिछले 5 साल से राज्य कांग्रेस अध्यक्ष की कमान संभाल रहे अशोक तंवर के लिए पार्टी का यह कदम किसी बड़े झटके से कम नहीं था. छात्र राजनीति से इस पद पर पहुंचने वाले अशोक तंवर अब बागी तेवर अख्तियार किए हुए हैं और पार्टी के दिग्गज नेताओं पर जमकर हमला बोल रहे हैं.


स्टूडेंट पॉलिटिक्स में एक्टिव थे


अशोक तंवर का जन्म फरवरी 1976 को हरियाणा के झझ्झर जिले में हुआ. देश की सबसे नामी जवाहर लाल नेहरू यूनिवर्सिटी से अशोक तंवर ने पीएचडी की डिग्री पूरी की. जेएनयू में पढ़ाई के दौरान ही अशोक तंवर ने कांग्रेस पार्टी को ज्वाइन कर लिया था. 1999 में अशोक तंवर एनएसयूआई के जनरल सेक्रेटरी चुने गए. इसके बाद अशोक तंवर एनएसयूआई और इंडियन यूथ कांग्रेस के अध्यक्ष भी बने.


अशोक तंवर ने अपना पहला चुनाव साल 2009 में लड़ा था. सिरसा से लोकसभा टिकट मिलने के बाद अशोक तंवर पहली बार संसद पहुंचे. 2014 के लोकसभा चुनाव से पहले अशोक तंवर को बड़ी जिम्मेदारी देते हुए पार्टी ने राज्य अध्यक्ष बना दिया. अशोक तंवर को राहुल गांधी का करीबी माना जाता है और उनके उपाध्यक्ष बनने के बाद ही अशोक तंवर को यह पद मिला था.


इसलिए गंवाना पड़ा अध्यक्ष पद


हालांकि 2014 में राज्य कांग्रेस की कमान मिलने के बाद से ही अशोक तंवर की मुश्किलें शुरू हो गई. अशोक तंवर की अगुवाई में कांग्रेस राज्य की 10 में से सिर्फ एक सीट पर जीत दर्ज करने में कामयाब रही. इतना ही नहीं तंवर खुद अपनी सीट भी नहीं बचा पाए. अशोक तंवर को इसके बाद विधानसभा चुनाव में भी बड़ा झटका लगा. उस वक्त की सत्ताधारी पार्टी कांग्रेस राज्य में तीसरे नंबर की पार्टी बन गई और सिर्फ 15 सीटों पर ही जीत दर्ज कर पाई.



विधानसभा चुनाव में करारी हार मिलने के बाद से अशोक तंवर को पार्टी की गुटबाजी का सामना करना पड़ा. अध्यक्ष पद गंवाने के बाद अशोक तंवर ने खुद बताया है. 5 साल के कार्यकाल के दौरान उन्हें कभी भी पूर्व सीएम भूपेंद्र सिंह हुड्डा का सहयोग नहीं मिला. लोकसभा चुनाव में भी अशोक तंवर की अगुवाई में पार्टी का प्रदर्शन काफी खराब रहा और राज्य की सभी 10 सीटों पर कांग्रेस को हार का सामना करना पड़ा. लोकसभा चुनाव में करारी हार मिलने के बाद हुड्डा ने पार्टी हाईकमान पर अशोक तंवर को हटाने का दवाब बनाया और आखिरकार उन्हें इसमें कामयाबी भी मिली.


अध्यक्ष पद की कमान जाने के बाद से अशोक तंवर चुनाव से जुड़ी हुई मीटिंग में शामिल नहीं हो रहे हैं. पिछले कुछ दिनों में अशोक तंवर के रवैये से साफ हो गया है कि पार्टी की गुटबाजी राज्य में अभी खत्म नहीं होने वाली है.


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