नई दिल्लीः असम में कांग्रेस की दोबारा सत्ता वापसी कराने में जी-जान से जुटी प्रियंका गांधी वाड्रा का जादू किस हद तक चलेगा यह तो दो मई को ही पता चलेगा लेकिन इतना तय है कि वे मतदाताओं से संवाद स्थापित करने में अपने भाई से दो कदम आगे ही हैं. अपने दो दिन के चुनावी प्रचार में प्रियंका ने राजनीतिक मुद्दों के साथ ही धर्म, संस्कृति, लोक परंपरा जैसे तमाम पहलुओं को छूते हुए वहां के लोगों का दिल जीतने की भरसक कोशिश की है. सुरक्षा व शर्म की परवाह किये बगैर लोगों के बीच जाकर उनमें घुल-मिल जाने की उनकी अदा महिला व युवाओं को प्रभावित अवश्य ही करती है. अब यह अलग बात है कि प्रियंका का यह प्रभाव वोटों में कितना तब्दील हो पाता है.
कामख्या देवी मंदिर के दर्शन से अपने चुनावी प्रचार की शुरुआत करके प्रियंका ने फिर से ये संदेश दिया है कि वे नरम हिंदुत्व की राह पर ही चलने में विश्वास रखती हैं. जनसभाओं में जहां उन्होंने नागरिकता कानून संशोधन यानी सीएए और असम की पहचान जैसे मुद्दे उठाकर प्रधानमंत्री व बीजेपी पर निशाना साधा, तो वहीं आदिवासी महिलाओं के साथ पारंपरिक झूमुर नृत्य पर थिरकते हुए अपनी सादगी का परिचय दिया.
चाय बागान की महिला श्रमिकों से मुलाकात के वक़्त उनके साथ ही जमीन पर बैठकर उनकी समस्याएं सुनते हुए उन्हें अपनेपन का अहसास कराना भी उनके प्रचार का कला माना जाना चाहिये. यहां भी वे अलग अंदाज में दिखाई दीं, टोकरी लेकर मजदूरों की तरह चाय की पत्तियां तोड़ती हुईं नज़र आईं.
प्रियंका ने अपने ट्वीट में लिखा, ''असम की बहुरंगी संस्कृति ही असम की शक्ति है. असम यात्रा के दौरान लोगों से मिलकर महसूस किया कि लोग इस बहुरंगी संस्कृति को बचाने के लिए वे पूरी प्रतिबद्धता से तैयार हैं. अपनी संस्कृति और विरासत बचाने के लिए असम के लोगों की लड़ाई में कांग्रेसी पार्टी उनके साथ है.''
इस बार असम में रोजगार भी एक प्रमुख चुनावी मुद्दा है इसलिये प्रियंका ने अपनी सभाओं में इसे उछालते हुए बीजेपी सरकार को घेरा है. कांग्रेस ने पूरे राज्य में इस मुद्दे पर सरकारी दफ्तरों के बाहर प्रदर्शन करने की रणनीति बनाई है, जो सर्वानंद सोनोवाल सरकार के लिये परेशानी का सबब बन सकता है.
उल्लेखनीय कि असम की 126 सीटों के लिए 27 मार्च, 1 अप्रैल और 6 अप्रैल को तीन चरणो में मतदान होगा. 2 मई को चुनावों के नतीजे घोषित होंगे. फिलहाल यहां एनडीए की सरकार है और सर्वानंद सोनोवाल मुख्यमंत्री हैं. पिछले चुनाव में बीजेपी 89 सीटों पर चुनाव लड़ी थी और उसने 60 सीटें जीती थीं.
वहीं असम गण परिषद ने 30 सीटों पर चुनाव लड़कर 14 सीटें और बोडोलैंड पीपल्स फ्रंट ने 13 सीटों पर चुनाव लड़कर 12 जीती थीं. इस चुनाव में कांग्रेस ने 122 सीटों पर चुनाव लड़ा था और सिर्फ 26 सीटों पर कब्जा किया था. यहां बहुमत के लिए 64 सीटें चाहिए.
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