पिछले हफ्ते चुनाव आयोग ने असम के लिए परिसीमन प्रस्ताव का मसौदा जारी किया. जिसमें राज्य के कई लोकसभा और विधानसभा क्षेत्रों की सीमाओं में बदलाव का प्रस्ताव रखा गया. एक तरफ जहां बीजेपी इसे 'स्थानीय हितों की रक्षा' के लिए लाया गया प्रस्ताव बता रही है तो वहीं ऑल इंडिया डेमोक्रेटिक फ्रंट (एआईयूडीएफ) जैसे विपक्षी दल जो राज्य के बंगाली मूल के मुसलमानों का प्रतिनिधित्व करते हैं वो नाखुश हैं. एआईयूडीएफ का ये कहना है कि यह मसौदा मतदाताओं को धार्मिक आधार पर विभाजित करता है.
आरोप ये भी है कि प्रस्तावित मसौदे से कुछ मौजूदा विधायकों और सांसदों के चुनावी भविष्य को भी खतरे में डाल दिया है. कहा जा रहा है कि मौजूदा विधायकों और सांसद अपने निर्वाचन क्षेत्रों को खो सकते हैं.
परिसीमन क्या है
लोकसभा और विधानसभा सीटों की सीमाओं को फिर से निर्धारित करना परिसीमन कहलाता है. इसका मकसद समान जनसंख्या वर्गों के लिए समान प्रतिनिधित्व प्रदान करना है, ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि किसी भी राजनीतिक दल को लाभ न हो. परिसीमन एक संवैधानिक प्रक्रिया है जो पूर्ववर्ती जनगणना के आंकड़ों (इस मामले में साल 2001) के आधार पर की जाती है.
असम में 1976 और 2001 में संशोधन के जरिए परिसीमन की प्रक्रिया को हर बार 25 साल के लिए टाल दिया गया था. इस अवधि के दौरान पूरे देश के लिए परिसीमन चार बार किया गया है. 2008 में हुए पिछले परिसीमन के दौरान सरकार ने असम, अरुणाचल प्रदेश, मणिपुर और नागालैंड के साथ-साथ जम्मू और कश्मीर को छोड़ने का फैसला किया.
इस मसौदे में क्या कुछ बदलने का है प्रस्ताव
चुनाव आयोग ने भौगोलिक सीमाओं में बदलाव का प्रस्ताव दिया है. अनुसूचित जनजाति (एसटी) और अनुसूचित जाति (एससी) के लिए आरक्षित निर्वाचन क्षेत्रों की संख्या में भी बढ़ोतरी का प्रस्ताव है. बता दें कि असम में विधानसभा सीटों की संख्या 126 और लोकसभा सीटों की संख्या 14 है. राज्य में राज्यसभा की सात सीटें भी हैं
असम में परिसीमन की प्रक्रिया कैसे की गई?
चुनाव आयोग ने 11 राजनीतिक दलों और 71 संगठनों के विचारों और सुझावों को लिया. ये सभी राजनीतिक दल और संगठन मार्च में असम की यात्रा के दौरान मिले थे. 2001 की जनगणना के आंकड़ों के आधार पर निर्वाचन क्षेत्रों का परिसीमन किया गया था.
हालांकि कुछ पार्टियां परिसीमन के खिलाफ भी थी. अभी भी विपक्ष इसका विरोध कर रहा है. चुनाव आयोग ने कहा कि मसौदा प्रस्ताव पर सुझाव और आपत्तियां 11 जुलाई तक ली जाएगी, उसके बाद आयोग असम में एक सार्वजनिक सुनवाई आयोजित करेगा.
विवाद क्यों हो रहा है?
कई राजनीतिक दलों और समूहों का ये आरोप है कि ये मसौदा पक्षपातपूर्ण है. बंगाली मूल के मुस्लिम समुदाय के प्रतिनिधियों का कहना है कि ये ड्राफ्ट "उन्हें राजनीतिक रूप से वंचित करता है" और सत्तारूढ़ बीजेपी के "एजेंडे को बढ़ावा" देगा.
समुदाय का प्रतिनिधित्व करने वाले ऑल असम माइनॉरिटी स्टूडेंट्स यूनियन (एएएमएसयू) के एक नेता ने आरोप लगाया 'अगर प्रस्ताव को इसके मौजूदा स्वरूप में लागू किया जाता है, तो अल्पसंख्यक समुदाय को "राजनीतिक रूप से बड़ा नुकसान होगा". खासकर उन विधानसभा सीटों पर जहां पर बंगाली मुस्लिम समुदाय बड़ी तादाद में रहते हैं. इन्हें अक्सर "बाहरी" कहा जाता है. 126 विधानसभा क्षेत्रों में से कम से कम 35 सीटें ऐसी हैं. निर्वाचन क्षेत्रों को जिस तरह से आकार दिया जा रहा है उससे अल्पसंख्यक क्षेत्रों को बहुसंख्यक [हिंदू] आबादी के साथ मिलाने का काम किया जा रहा है. मुस्लिम आबादी वाली कई सीटों को हटा दिया गया है.' उन्होंने कहा कि बारपेटा और दक्षिण असम के बराक घाटी क्षेत्र जैसे जिलों में यह सबसे ज्यादा परेशान करने वाला है.
बारपेटा जिले में वर्तमान में आठ निर्वाचन क्षेत्र हैं. मसौदा प्रस्ताव के मुताबिक इन्हें अब घटाकर छह कर दिया गया है. उनमें से एक सीट अब एससी उम्मीदवारों के लिए आरक्षित है.
इंडियन एक्सप्रेस की खबर के मुताबिक बंगाली मुस्लिम समुदाय के एक मौजूदा विधायक ने नाम न छापने की शर्त पर बताया 'बारपेटा के आठ निर्वाचन क्षेत्रों में लगभग छह या सात मुस्लिम विधायक चुने जा सकते थे. लेकिन अब उन्होंने न केवल निर्वाचन क्षेत्रों की संख्या कम कर दी है, बल्कि उन्हें इस तरह से बनाया है कि केवल तीन मुस्लिम विधायक बारपेटा क्षेत्र से जीत सकते हैं'.
दूसरी तरफ दक्षिण असम की बंगाली बहुल बराक घाटी के दो जिलों करीमगंज और हैलाकांडी में मसौदे में दो विधानसभा सीटों (हैलाकांडी जिले में कतलीचेरा और करीमगंज जिले में पथरकंडी) को खत्म करने का सुझाव दिया गया है. विधायक का दावा है कि ये भी मुस्लिम वोटों पर निर्भर थे. इसके अलावा निचले असम जो बंगाली मुसलमानों का गढ़ कहा जाता है वहां से ऐसे कई उदाहरण हैं जो यह साफ करते हैं कि हिंदू सीटें बढ़ाई गई हैं.'
इंडियन एक्सप्रेस की खबर के मुताबिक बारपेटा लोकसभा सीट का प्रतिनिधित्व करने वाले कांग्रेस सांसद अब्दुल खालिक ने इसे 'अवैज्ञानिक और असंवैधानिक मसौदा' करार दिया. उन्होंने कहा, 'इस प्रस्ताव का मसौदा असम के मुख्यमंत्री हिमंत बिस्व सरमा ने तैयार किया है और चुनाव आयोग ने इस पर हस्ताक्षर किए हैं. यह केवल उनके राजनीतिक फायदे के लिए है.
क्या इससे मौजूदा विधायकों और सांसदों के निर्वाचन क्षेत्र पर असर पड़ेगा?
आरक्षण की स्थिति में बदलाव होने से कई मौजूदा विधायकों और सांसदों के निर्वाचन क्षेत्र पर इसका असर पड़ सकता है.
सांसद गौरव गोगोई के प्रतिनिधित्व वाले कांग्रेस के गढ़ कालियाबोर निर्वाचन क्षेत्र में न केवल सीमा में बदलाव किए जाने का प्रस्ताव है, बल्कि नामकरण भी किए जाने का प्रस्ताव रखा गया है. प्रस्ताव के मुताबिक इसे अब काजीरंगा कहा जाएगा. नए काजीरंगा निर्वाचन क्षेत्र से कई मुस्लिम बहुल इलाकों को पड़ोसी नगांव में स्थानांतरित कर दिया गया है, जानकार ये मानते हैं कि भविष्य में ये सांसद गौरव गोगोई पर प्रतिकूल असर डाल सकता है.
वहीं मुस्लिम बहुल धींग निर्वाचन क्षेत्र विधानसभा स्तर पर लगातार तीन बार एआईयूडीएफ विधायक अमीनुल इस्लाम का गढ़ रहा है. नए प्रस्ताव के मुताबिक इसे अब हटा दिया जाएगा.
वहीं बराक घाटी में बीजेपी मंत्री परिमल शुक्लबैद्य के धोलाई निर्वाचन क्षेत्र का नाम अब नरसिंगपुर कर दिया गया है. इसकी सीमाओं को बदल दिया जाएगा.
कांग्रेस की मौजूदा विधायक सुमन हरिप्रिया कामरूप जिले की हाजो सीट से चुनाव नहीं लड़ पाएंगी. हाजो सीट को 'सामान्य' से बदलकर 'एससी' कर दिया जाएगा.
बराक घाटी के बंगाली बहुल जिलों के हिंदू और मुस्लिम दोनों समूह भी मसौदे का विरोध कर रहे हैं. बराक घाटी में तीन जिले थे. प्रस्तावित मसौदे में दो सीटें कम कर दी गई हैं. बंगाली समूहों का कहना है कि इससे बंगाली प्रतिनिधित्व असमिया के पक्ष में चला जाएगा.
लोगों की आकांक्षाओं की रक्षा करने वाला प्रस्ताव है- बीजेपी
सत्तारूढ़ बीजेपी के सदस्यों ने इस प्रस्ताव को असम के 'मूल' लोगों की आकांक्षाओं की रक्षा करने वाला प्रस्ताव बताया है. मुख्यमंत्री हिमंत बिस्व सरमा ने संवाददाताओं से कहा कि मसौदा 'असमी' लोगों के लिए 'कम से कम 102 निर्वाचन क्षेत्रों' को सुरक्षित करेगा.
पार्टी की राज्यसभा सदस्य पवित्र मार्गेरिटा ने दावा किया कि यह कवायद 'संवैधानिक और तटस्थ' है. उन्होंने कहा, ''परिसीमन प्रक्रिया में हमारी कोई भागीदारी नहीं है... लेकिन प्राथमिक विश्लेषण से हमने देखा है कि इस विशेष परिसीमन से असम के स्वदेशी लोग सशक्त बनेंगे.
निर्वाचन क्षेत्रों में मुस्लिम बहुमत को "कम" करने के बारे में विपक्षी दलों को जवाब देते हुए मार्गेरिटा ने इसे एक "गलत आरोप" बताया. उन्होंने कहा, 'प्रक्रिया के दौरान चुनाव आयोग किसी भी राजनीतिक दल की जाति, समुदाय, पंथ को नहीं देखता है.यही कारण है कि न केवल विपक्ष के विधायक बल्कि सत्तारूढ़ दल के मौजूदा विधायक अपनी सीटें गंवा चुके हैं.'
चुनाव आयोग क्यों कर रहा है परिसीमन
चुनाव आयोग को जनप्रतिनिधित्व अधिनियम 1950 की धारा-8ए के अनुसार अरुणाचल प्रदेश, असम, मणिपुर और नागालैंड के संसदीय और विधानसभा निर्वाचन क्षेत्रों का परिसीमन करने का अधिकार है. यह धारा कहती है कि अगर राष्ट्रपति इस बात से संतुष्ट नहीं हैं कि राज्यों में स्थिति और मौजूदा स्थितियां परिसीमन करने के लिए अनुकूल हैं, तो वह आदेश को रद्द भी कर सकते हैं.
इसी धारा के तहत राष्ट्रपति ने 28 फरवरी, 2020 को एक आदेश जारी किया था, जिसमें कहा गया था कि "सुरक्षा स्थिति में महत्वपूर्ण सुधार" हुआ है, जिससे सभी चार राज्यों में परिसीमन की अनुमति है.
2001 की जनगणना का इस्तेमाल क्यों किया जा रहा है?
संविधान के अनुच्छेद 170 के मुताबिक निर्वाचन क्षेत्रों की सीमाओं को खींचने के लिए इस्तेमाल की जाने वाली जनसंख्या संख्या 2001 की जनगणना के अनुसार होगी जब तक कि 2026 के बाद पहली जनगणना नहीं हो जाती.