Assam Flood: असम में बाढ़ से 27 हजार लोग प्रभावित, घरों में घुसा पानी, 175 गांव डूबे
Assam Flood Update: असम में बाढ़ के बाद तबाही का मंजर रोंगटे खड़े करने वाला है. राज्य के 6 जिलों में प्राकृतिक आपदा का सबसे ज्यादा असर हुआ है, जिससे हजारों की संख्या में लोग प्रभावित हुए हैं.
Assam Flood News: असम में बाढ़ के कारण लोगों की परेशानी कम नहीं हो रही है. असम राज्य आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (ASDMA) ने बताया कि 6 जिलों में 27,000 से ज्यादा लोग इससे प्रभावित हुए हैं. जिला धेमाजी और डिब्रूगढ़ मेंं बाढ़ का असर सबसे ज्यादा है. धेमाजी में 19,163 और डिब्रूगढ़ में 5,666 व्यक्तियो पर इसका सीधा असर हुआ है. एएसडीएमए के मुताबिक धेमाजी, डिब्रूगढ़, डररंग, जोरहाट, गोलाघाट, और सिवसागर जिलों में 18 राजस्व सर्किलों के तहत 175 गांव बाढ़ के पानी में डूब गए हैं.
बाढ़ के पानी ने जोनाई, धेमाजी, गोगामुख और सिस्सीबोरगांव राजस्व सर्किलों के तहत 44 गांवों को प्रभावित किया है. सबसे ज्यादा असर सिस्सीबोरगांव राजस्व सर्किल में हुआ है. यहां 10,300 से अधिक लोग प्रभावित हुए हैं. लोग अपने घरों को छोड़ने और सुरक्षित स्थानों पर जाने के लिए मजबूर हो गए हैं, क्योंकि बाढ़ का पानी आगे बढ़ रहा है.
खेती का भी हुआ नुकसान
धेमाजी जिले में कुल 396.27 हेक्टेयर खेती क्षेत्र डूब गए हैं. इससे किसानों को भारी नुकसान हुआ है. छह प्रभावित जिलों में बाढ़ के पानी ने 2,047.47 हेक्टेयर क्षेत्र को डुबो दिया है. इससे एरिया की खाद्य सुरक्षा की समस्या पहले से ज्यादा बढ़ गई है.
ब्रह्मपुत्र नदी जो कि राज्य के लिए जीवन और समृद्धि का प्रतीक है. अब भी खतरे खतरे के निशान से ऊपर बह रही है. इसी तरह सिवसागर में डिखू नदी और गोलाघाट जिले के नुमालिगढ़ में धांसिरी नदी भी खतरनाक स्तर पर बह रही हैं. इससे इनके किनारे पर बसे लोग डरे हुए हैं.
क्या असर हुआ?
बाढ़ से 18,400 से अधिक पालतू जानवर भी प्रभावित हुए हैं. पिछले 24 घंटों में ही, बाढ़ के पानी ने धेमाजी जिले में दो सड़कों और एक पुल को नष्ट कर दिया है. असम राज्य आपदा प्रबंधन प्राधिकरण स्थानीय प्राधिकरण और राहत संगठनों के साथ तेजी से राहत प्रदान करने के लिए निरंतर काम कर रहा है. प्रयास किए जा रहे हैं कि आपदा क्षेत्रों से निवासियों की निकासी हो, शरण, खानपान और चिकित्सा सहायता प्रदान करें.
ये भी पढ़ें- असम हर साल क्यों झेलता है बाढ़, क्यों हो जाती हैं सरकारें लाचार?