असम में छिड़ा फोटो वॉर, कांग्रेस के जारी तस्वीर पर बोले हेमंत सरमा- 'ये असम नहीं, ताइवान का है चाय बागान'
चाय बागान में काम करने वाले जनजाति समुदाय से आते हैं. राज्य की आबादी में इनकी संख्या 17 प्रतिशत है और 126 में से लगभग 40 असम विधानसभा सीटों में एक निर्णायक फैक्टर है.
असम में विधानसभा चुनाव से पहले जहां एक तरफ सियासी बयानबाजी हो रही है तो वहीं दूसरी तरफ एक दूसरे के ऊपर आरोप-प्रत्यारोप का दौर भी खूब चल रहा है. कांग्रेस की तरफ से जारी एक चाय बागान की तस्वीर पर बीजेपी और कांग्रेस के बीच पोस्टर वॉर छिड़ गया है. राज्य के मंत्री हेमंत बिस्व सरमा ने उसे ताइवान की तस्वीर बताते हुए असम और असम की जनता का अपमान करार दिया.
हेमंत बिस्वा सरमा ने एक तस्वीर ट्वीट करते हुए कहा है कि कांग्रेस ने ताइवान से असम के चाय बागान के रूप में तस्वीरें पोस्ट की हैं और असम के लोगों का अपमान किया गया है. उन्होंने इस ट्वीट में कहा कि कांग्रेस के नेता असम के चाय बागान तक को नहीं पहचानते हैं.
Official Congress campaign page is using photo of tea garden from Taiwan to say "Assam Bachao".
Congress leaders can't even recognise Assam? This is an insult of Assam and Tea Garden workers of our state. #CongressInsultsAssam pic.twitter.com/UTS7iSROu2 — Himanta Biswa Sarma (@himantabiswa) March 4, 2021
इससे पहले, मंगलवार को कांग्रेस नेता प्रियंका गांधी वाड्रा ने असम में चाय बागानों का दौरा किया था. श्रमिकों के साथ बातचीत की और उनकी झोपड़ियों में गईं और फोटो खिंचवाई. प्रतीकात्मकता को बढ़ाने के लिए, तस्वीरों में से एक ने उसके सिर पर एक पट्टा के साथ रखी हुई टोकरी के साथ चाय की पत्तियों को गिरते हुए दिखाया, जैसे कि महिला कार्यकर्ता पारंपरिक रूप से करती हैं.
प्रियंका ने पांच वादों में से एक यह घोषणा की है कि अगर कांग्रेस सत्ता में आती है तो चाय बागानों के श्रमिकों की प्रति दिन की मजदूरी 365 रुपये तक बढ़ जाएगी. असम के चाय और चाय बागान के श्रमिकों, उनके जीवन की गुणवत्ता और उनके वेतन के बारे में भाजपा और कांग्रेस दोनों के नेताओं द्वारा लगातार लुभावनी घोषणाएं होती रही हैं.
असम में चाय बागान श्रमिक कौन हैं?
भारत के कुल चाय उत्पादन का आधा हिस्सा असम में है. साल 1860 के बाद उड़ीसा, मध्य प्रदेश, बिहार, आंध्र प्रदेश और पश्चिम बंगाल जैसे राज्यों से अंग्रेजों द्वारा चाय बागान मजदूरों को लाया गया. आज तक ये लोग शोषण, आर्थिक पिछड़ेपन, स्वास्थ्य की खराब स्थिति और कम साक्षरता दर में रह रहे हैं.
7 फरवरी को असम में एक सार्वजनिक कार्यक्रम में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा था कि कोई भी उनसे अधिक असम चाय के विशेष स्वाद की सराहना नहीं कर सकता है. उन्होंने कहा कि उन्होंने हमेशा असम और असम के चाय बागान श्रमिकों के विकास को एक साथ माना है.
उनका राजनीतिक महत्व क्या है?
चाय बागान में काम करने वाले जनजाति समुदाय से आते हैं. राज्य की आबादी में इनकी संख्या 17 प्रतिशत है और 126 में से लगभग 40 असम विधानसभा सीटों में एक निर्णायक फैक्टर है. यह समुदाय 800 से अधिक चाय बागानों और असम के कई असंगठित छोटे बागानों में फैला हुआ है - जो ज्यादातर बगीचों से सटे आवासीय क्वार्टरों में रहते हैं.