Assam Mizoram Border Dispute: असम-मिजोरम सीमा पर विवाद बना हुआ है. इस विवाद में कई पुलिसकर्मी घायल हो गए तो वहीं कई पुलिसकर्मियों की जान चली गई. यहां एक पुलिसकर्मी दूसरे पुलिसकर्मी को निशाना बना रहे हैं. असम पुलिस के जवान अपनी जुबान पर अपनी दास्तां बयां करने की कोशिश तो कर रहे हैं लेकिन फिर खुद ही सोच रहे हैं कि आखिरकार उन्होंने जो देखा क्या वह सच था? क्या सच में मिजोरम के पुलिसवालों ने गोली चलाई थी? किसी के सीने में गोली लगी है तो किसी के पैर में जख्म इतने गहरे हैं कि इन्हें गोली निकालने के लिए भी डॉक्टर ने मना कर दिया है. अब ताउम्र अपने शरीर में यह गोली रखकर इन्हें जीना होगा.


60 वर्ष के सब इंस्पेक्टर राम जी चौहान दिसंबर महीने में असम पुलिस से रिटायर हो रहे हैं. लेकिन उन्हें यह अंदाजा नहीं था कि सेवानिवृत्ति के पहले सीने में गोली खानी पड़ेगी और उसी को लेकर रिटायर होना होगा. अपने दशकों की नौकरी में इस तरह की हिंसा और पुलिस के प्रति गोलीबारी उन्होंने कभी जिंदगी में नहीं देखी. सीने के पास लगी गोली को डॉक्टर ने निकालने से फिलहाल इनकार कर दिया है. इस डर से कि अगर गोली निकालने के लिए ऑपरेशन हुआ तो दिल के पास ज्यादा खून न निकल जाए और मौत भी हो सकती है लेकिन राम जी का कहना है कि मर्द को दर्द नहीं होता और किसी फिल्मी अंदाज में फिर एक बार जंग पर जाने को तैयार हैं.


ऐसी हिंसा नहीं देखी


राम जी चौहान कहते हैं, 'मैंने अपनी तीन दशकों की नौकरी में इस तरह की हिंसा कभी नहीं देखी है. मुझे यह अंदाजा नहीं था कि मुझे पुलिस की ही गोली खानी पड़ेगी. अब गोली इस कदर लगी है कि डॉक्टर ने इलाज करने से और गोली निकालने से मना कर दिया है उनको लगता है कि मेरी जान जा सकती है. मर्द को दर्द नहीं होता. हम लोग पुलिस वाले हैं लेकिन चौंकाने वाली बात यह है कि सेवन सिस्टर कहलाने वाले इस इलाके में असम, जिसे मां समझा जाता है, उसी की पुलिस पर हमला कर दिया गया और इस तरह की गंभीर स्थिति पैदा हो गई.'


वहीं ढलाई पुलिस स्टेशन के एसएचओ शहाबुद्दीन बोर भुईया के पैर में गोली लगी है. यह गोली लेकर इन्हें अगले 6 महीने तक जिंदा रहना होगा क्योंकि तब तक इसकी स्थिति सामान्य नहीं होगी जब तक डॉक्टर इसका पूरा इलाज नहीं करेंगे. शहाबुद्दीन का कहना है, 'मिजोरम पुलिस असम के इलाके में घुस आई थी. मिजोरम पुलिस के कर्मचारियों और अधिकारियों को रोकने के लिए हम लोगों ने जब कोशिश की तो पुलिस ने ही हम पर फायरिंग कर दी. हमें अंदाजा भी नहीं था कि पुलिस इस तरह से जंगल में छुपकर हम पर फायरिंग करेगी. वह पहाड़ पर थे और हम नीचे. घाटी में एलएमजी मशीन गन से फायरिंग की गई. एके-47 से फायरिंग की गई और लगातार फायरिंग जंगलों में छुपकर मुजरिम पुलिस हम पर करती रही.'


फायरिंग का नहीं था आदेश


उन्होंने कहा, 'हमें फायरिंग करने के आदेश नहीं थे तो हम कैसे गोली चलाते? आत्मरक्षा के लिए फायरिंग भी तभी होती है जब सामने कोई मुजरिम हो लेकिन यहां तो हमारे सामने दूसरे राज्य की पुलिस ही थी. वह ऊपर पहाड़ पर थे और हम नीचे तराई इलाके में थे. ऐसे में अगर हम फायरिंग करते तो हवा में करते जो कि सब बेईमानी होता. हालांकि उन्हें पता था कि डेमोग्राफी के हिसाब से उनकी पॉजीशन हम से कई गुना ज्यादा बेहतर थी और इसीलिए वह गोलियां चलाने में जंगल में छुपकर सक्षम थे.'


37 वर्षीय प्रसनजीत दे असम पुलिस की रिजर्व बटालियन में काम करते हैं लेकिन चेहरे का जो हाल हुआ है उसे सामान्य होने में और अपनी आंख खोलने में उन्हें अभी 6 महीने से ज्यादा का वक्त लगेगा. प्रसनजीत ने बताया, 'मेरा पूरा चेहरा फायरिंग में जल गया है. नुकसान इतना ज्यादा हुआ है कि इसको ठीक होने में कई महीने लग जाएंगे. सारे अधिकारी वहां मौजूद थे. मुझे दिखना बंद हो गया था. अभी भी एक आंख से नहीं दिख रहा है और मुझे वह अंधाधुंध फायरिंग याद है. उसके बाद मुझे अस्पताल लाया गया क्योंकि मेरी स्थिति काफी बिगड़ गई थी.'


उन्होंने कहा, 'आज हमारी स्थिति के जिम्मेदार बड़े लोग हैं जो इंटेलिजेंस का या तो फैलियर नहीं देख पाए या फिर उन्हें पता नहीं था कि मिजोरम पुलिस फायरिंग करने की तैयारी से आई है और अगर इस काम के लिए सुलह पहले हो जाती तो शायद आज ऐसी स्थिति नहीं होती.' वहीं जिन का इलाज संभव था उनका इलाज सिलचर मेडिकल कॉलेज में चल रहा है लेकिन जिनका संभव नहीं था उन्हें गुवाहाटी या मुंबई भेजा गया है. ऐसे कई मामले हैं जिनके शरीर में गोली या घाव या जख्म है जिन्हें भरने में कई महीनों का समय लग जाएगा.


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