गुवाहाटी: असम में नेशनल रजिस्टर ऑफ़ सिटिज़ंस (एनआरसी) की फाइनल लिस्ट जारी कर दी गई है. इस लिस्ट में 19 लाख 6 हजार 657 लोगों के नाम नहीं है. लिस्ट में कुल 3 करोड़ 11 लाख 21 हजार 4 लोगों के नाम शामिल हैं. एनआरसी की फाइनल लिस्ट जारी हो जाने के बाद व्यक्ति की नागरिकता रहेगी या नहीं इसका निर्णय फ़ॉरेन ट्रायब्यूनल ही करेगी.


शामिल किए गए और बाहर किए गए नामों को लोग एनआरसी की वेबसाइट www.nrcassam.nic.in पर देख सकते हैं. शामिल किए गए लोगों की पूरक सूची एनआरसी सेवा केंद्रों (एनएसके), उपायुक्त के कार्यालयों और क्षेत्राधिकारियों के कार्यालयों में उपलब्ध है, जिसे लोग कामकाजी घंटों के दौरान देख सकते हैं.


चाहता हूं कि दिन बिना किसी बुरी घटना के शांति से गुजर जाए- वित्त मंत्री हिमंता


वहीं, समाचार एजेंसी आईएएनएस के मुताबिक, असम के वित्त मंत्री हिमंता बिस्वा शर्मा ने कहा है कि वह राष्ट्रीय नागरिकता रजिस्टर (एनआरसी) को लेकर सारी उम्मीदें छोड़ चुके हैं, क्योंकि केंद्र और राज्य सरकार विदेशियों को राज्य से बाहर करने के नए तरीकों पर चर्चा कर रही हैं. अंतिम एनआरसी सूची जारी होने से पहले शर्मा ने कहा, " मैंने एनआरसी को लेकर सभी उम्मीदें खो दी हैं. मैं बस चाहता हूं कि दिन बिना किसी बुरी घटना के शांति से गुजर जाए."


हिमंता बिस्वा ने आगे कहा, "दिल्ली और असम सरकार विदेशियों को राज्य से बाहर निकालने के लिए नए तरीकों पर चर्चा कर रही हैं. मुझे नहीं लगता कि यह अंतिम सूची है, अभी और भी बहुत कुछ सामने आना बाकी है."


क्या है NRC


नेशनल रजिस्टर ऑफ़ सिटिज़ंस (एनआरसी) एक दस्तावेज है जो इस बात की शिनाख्त करता है कि कौन व्यक्ति देश का वास्तविक नागरिक है और कौन देश में अवैध रूप से रह रहा हैं. अवैध नागरिकों की पहली शिनाख्त साल 1951 में पंडित नेहरू की सरकार द्वारा असम के तत्कालीन मुख्यमंत्री गोपीनाथ बारदोलोई को शांत करने के लिए की गई थी. बारदोलाई विभाजन के बाद बड़ी संख्या में पूर्वी पाकिस्तान से भागकर आए बंगाली हिंदू शरणार्थियों को असम में बसाए जाने के खिलाफ थे. साल 1980 के दशक में वहां के कट्टर क्षेत्रीय समूहों द्वारा एनआरसी को अपडेट करने की लगातार मांग की जाती रही थी. असम आंदोलन को समाप्त करने के लिए राजीव गांधी सरकार ने 1985 में एक समझौते पर हस्ताक्षर किए थे, जिसमें 1971 के बाद आने वाले लोगों को एनआरसी में शामिल न करने पर सहमति व्यक्त की गई थी.


सुप्रीम कोर्ट ने 2009 में दिया दखल 


अवैध प्रवासियों को राज्य से हटाने के लिए कांग्रेस की सरकार ने साल 2010 में एनआरसी को अपडेट करने की शुरुआत असम के दो जिलों से की. यह बारपेटा और कामरूप जिला था. हालांकि बारपेटा में हिंसक झड़प हुआ और यह प्रक्रिया ठप हो गई. पहली बार सुप्रीम कोर्ट इस प्रक्रिया में 2009 में शामिल हुआ और फिर 2014 में असम सरकार को एनआरसी को अपडेट करने की प्रक्रिया पूरी करने का आदेश दिया. इसके बाद साल 2015 में असम सरकार ने सुप्रीम कोर्ट की निगरानी में एनआरसी का काम फिर से शुरू किया.


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