गुवाहाटी: गृह मंत्रालय ने असम में नेशनल रजिस्टर ऑफ़ सिटिज़ंस (एनआरसी) की फाइनल लिस्ट जारी कर दी है. इस लिस्ट में 19 लाख 6 हजार 657 लोगों के नाम शामिल नहीं हैं. लिस्ट में कुल 3 करोड़ 11 लाख 21 हजार 4 लोगों को शामिल किया गया है. हालांकि, जिस भी व्यक्ति के नाम फाइनल लिस्ट में नहीं हैं उन्हें घबराने की जरूरत नहीं है. वो फ़ॉरेन ट्रायब्यूनल में अपनी नागरिकता साबित कर सकते हैं और अगर यहां भी उन्हें निराशा मिलती है तो वह हाईकोर्ट या सुप्रीम कोर्ट जा सकते हैं.


यहां बता दें कि एनआरसी की लिस्ट आने के बाद से लोगों के मन में कई तरह के सवाल उठ रहे हैं कि यह क्या है और इसकी प्रक्रिया सबसे पहले कब शुरू हुई. ऐसे में हम आपको यह बताने जा रहे हैं कि एनआरसी की प्रक्रिया कब शुरू हुई और आजादी के बाद से इस दौरान तक इसमें क्या-क्या हुआ. बता दें कि सबसे पहले 1950 में बंटवारे के बाद तत्कालीन पूर्वी पाकिस्तान से असम में बड़ी संख्या में शरणार्थियों के आने के बाद प्रवासी (असम से निष्कासन) अधिनियम लागू किया गया. इसके बाद साल 1951में स्वतंत्र भारत की पहली जनगणना हुई. इसके आधार पर पहला एनआरसी रिपोर्ट तैयार किया गया. 1957 में प्रवासी (असम से निष्कासन) कानून निरस्त किया गया.


1964-1965  में पूर्वी पाकिस्तान में अशांति के कारण वहां से एक बार फिर बड़ी संख्या में शरणार्थी आए. शरणार्थियों के आने का ये सिलसिला यहीं नहीं रुका और 1971 में पूर्वी पाकिस्तान में दंगों और युद्ध के कारण काफी संख्या में शरणार्थी आए. 1979-1985 के दौरान विदेशियों की पहचान करने, देश के नागरिक के तौर पर उनके अधिकारी छीनने, उनके निर्वासन के लिए असम में छह साल आंदोलन चला जिसका नेतृत्व अखिल असम छात्र संघ (आसू) और अखिल असम गण संग्राम परिषद (एएजएसपी) ने किया.


1983 के नरसंहार में गई 3000 जानें  


मध्म असम के नेल्ली में 1983 में नरसंहार हुआ जिसमें 3000 लोगों की मौत हुई. अवैध प्रवासी (न्यायाधिकरण द्वारा निर्धारण) अधिनियम पारित किया गया. 1985 में तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी की मौजूदगी में केंद्र, राज्य, आसू और एएजीएसपी ने असम समझौते पर हस्ताक्षर किए. इसमें अन्य खंडों के अलावा यह भी कहा गया कि 25 मार्च 1971 को या उसके बाद आए विदेशियों को निष्कासित किया जाएगा. निर्वाचन आयोग ने 1997 में उन मतदाताओं के नाम के आगे ‘डी’ (संदेहास्पद) जोड़ने का फैसला किया जिनके भारतीय नागरिक होने पर शक था.


हाईकोर्ट ने 2005 में आईएमडीटी कानून को असंवैधानिक घोषित किया. केंद्र, राज्य सरकार और आसू की बैठक में 1951 में एनआरसी की प्रक्रिया शुरू करने का फैसला किया, लेकिन कोई बड़ी घटना नहीं हुई. एक गैर सरकारी संगठन असम पब्लिक वर्क्स (एपीडब्ल्यू) ने 2009 में मतदाता सूची से विदेशियों के नाम हटाए जाने और एनआरसी की शुरुआत की अपील करते हुए हाईकोर्ट में मामला दायर किया.  एनआरसी की शुरुआत के लिए 2010 में चायगांव, बारपेटा में प्रायोगिक परियोजनाएं शुरू हुई. बारपेटा में हिंसा में चार लोगों की मौत हुई जिसके बाद परियोजना बंद कर दी गई.


सुप्रीम कोर्ट ने 2013 में एपीडब्ल्यू की याचिका की सुनवाई की. केंद्र, राज्य को एनआरसी की प्रक्रिया आरंभ करने का आदेश दिया गया. इसके बाद एनआरसी राज्य समन्वयक कार्यालय की स्थापना की गई. साल 2015 में एनआरसी की प्रक्रिया आरंभ हुई. 31 दिसंबर, 2017 को एनआरसी लिस्ट का प्रकाशन हुआ जिसमें 3.29 करोड़ आवेदकों में से 1.9 करोड़ के नाम प्रकाशित किए गए. इसके बाद 30 जुलाई, 2018 को एनआरसी की एक और लिस्ट जारी की गई जिसमें 2.9 करोड़ लोगों में से 40 लाख के नाम शामिल नहीं किए गए. फिर 26 जून, 2019 को एक और लिस्ट जारी की गई जिसमें 1,02,462  लोगों को इस लिस्ट में शामिल किया गया.


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