Assam Rohingya: असम के सिलचर में 12 बच्चों सहित 26 रोहिंग्या पकड़े गए, पुलिस कर रही छानबीन
Rohingya Caught in Assam: पूछताछ के दौरान इन रोहिग्याओं ने बताया कि उन्हें किसी ने असम के जमाना बाजार पहुंचने के लिए कहा था जहां से वो उस व्यक्ति के संपर्क में चले जाते जिन्होंने उन्हें असम बुलाया था.

Rohingya Caught in Assam: असम में एक बार फिर रोहिंग्याओं के पकड़े जाने का मामला सामने आया है. असम के सिलचर (Silchar Assam) में 26 रोहिंग्या पकड़े गए हैं इनमें 12 बच्चे भी शामिल हैं. असम पुलिस ने इन रोहिंग्याओं को हिरासत में ले लिया है और इनसे पूछताछ जारी है. इन रोहिंग्याओं ने बताया कि ये म्यांमार से भारत आए हैं और शनिवार की रात को वो जम्मू कश्मीर से असम के गुवाहाटी पहुंचे थे. पूछताछ के दौरान इन रोहिग्याओं ने बताया कि उन्हें किसी ने असम के जमाना बाजार पहुंचने के लिए कहा था जहां से वो उस व्यक्ति के संपर्क में चले जाते जिन्होंने उन्हें असम बुलाया था. फिलहाल अभी पुलिस उनसे पूछताछ कर रही है.
असम के कछार की एसपी रमनदीप कौर ने इन रोहिंग्याओं के हिरासत में लिए जाने की जानकारी मीडिया को दी है. उन्होंने न्यूज एजेंसी एएनआई को बताया कि, 26 रोहिंग्याओं को असम पुलिस ने हिरासत में लिया है इनमें 12 बच्चे भी शामिल हैं. ये रोहिंग्या कल रात जम्मू से ट्रेन पकड़कर गुवाहाटी पहुंचे हैं.
Assam | 26 Rohingyas incl 12 children found in Silchar. They are Myanmar nationals. They don't have many documents. They arrived in Guwahati by train from Jammu last night as somoene had contacted them to come to Jamna Bazaar area. Probe on: SP Cachar Ramandeep Kaur pic.twitter.com/7fWcFoM7Dg
— ANI (@ANI) May 29, 2022
पकड़े गए सभी रोहिंग्या म्यांमार के रहने वाले
असम पुलिस द्वारा हिरासत में लिए गए सभी रोहिंग्या म्यांमार के नागरिक हैं. वहीं अगर म्यांमार सरकार की मानें तो ये अवैध बांग्लादेश के प्रवासी हैं और म्यांमार सरकार इन अवैध रोहिंग्याओं को नागरिकता देने से इनकार कर रही है. साल 2016-17 संकट से पहले म्यांमार में लगभग 8 लाख के आसपास रोहिंग्या अवैध रूप से रहते थे. ये लोग पिछले कई सालों से वहीं पर रहा करते थे. बर्मा और बौद्धों की सरकार ने रोहिंग्या को अपने देश का नागरिक नहीं माना.
जानिए रोहिंग्याओं का इतिहास
साल 1948 में अंग्रेजों की गुलामी से बर्मा को आजादी मिली. आपको बता दें कि बर्मा की अंग्रेजों के खिलाफ स्वतंत्रता संग्राम में रोहिंग्या मुसलमानों का काफी योगदान रहा. हालांकि बर्मा की आजादी के बाद रोहिंग्याओं को वो सम्मान भी मिला और वो देश के प्रतिष्ठित पदों पर पहुंचे लेकिन साल 1960 के दशक से बर्मा में रोहिंग्या समुदाय के साथ अन्याय होना शुरू हो गया. बर्मा सरकार ने उन्हें अल्पसंख्यक मानकर उनका शोषण और प्रताड़ना शुरू कर दिया. साल 1982 में जब बर्मा में राष्ट्रीय कानून पारित किया गया तब इन रोहिंग्याओं को देश की नागरिकता नहीं दी गई. तब से रोहिंग्या बड़ी संख्या की आबादी में थाइलैंड और बांग्लादेश के बार्डर पर शरणार्थी कैंप में अमानवीय जीवन बिता रहे हैं. ये चोरी-छिपे एक से दूसरे देशों में घुसपैठ की कोशिश करते रहते हैं.
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