असम: 14 साल में मुसलमानों की फर्टिलिटी रेट में आई कमी, आंकड़ों पर डालें नज़र
अभी असम के मुख्यमंत्री हेमंत बिस्वा सरमा ने राज्य के मुस्लिम समुदाय से जनसंख्या नियंत्रण और परिवार नियोजन के उपाय अमल में लाने का निवेदन किया था. लेकिन पांचवे राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वे के मुताबिक असम में 2005-06 से लेकर 2019-20 तक पिछले 14 सालों में मुस्लिम समुदाय में जन्म दर बुहत तेजी के साथ नीचे की तरफ आई है.
असम में मुस्लिम समुदाय में जन्म लेने वाले बच्चों की दर में तेजी के साथ कमी देखी गई है. ये बात पांचवें राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वे के आधार पर कही गई. NFHS-5 यानी राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य के सर्वे को 2019-20 को केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय ने दिसंबर में रिलीज किया.
टाइम्स ऑफ इंडिया में की खबर के मुताबिक, साल 2005-06 में हुए हेल्थ सर्वे के मुकाबले 2019-20 में राज्य में मुस्लिमों की प्रजनन दर में कमी आई है. असम में मुस्लिम समुदाय में कुल प्रजनन दर 2.4 है, जबकि साल 2005-06 में यह 3.6 थी. जबकि इस अवधि में हिंदुओं की जन्म दर में 0.4 की कमी आई है.
टोटल फर्टिलिटी रेय यानी FTR के आधार पर बात करें तो असम में मुस्लिम समुदाय की प्रति महिला जन्म दर के मुताबिक, इस समुदाय में पिछले 14 सालों में 2.4 प्रतिशत की वृद्धि हुई जो हिंदू जन्म दर 1.6 और क्रिश्चियन जन्म दर 1.5 से ज्यादा है.
राष्ट्रीय परिवार हेल्थ सर्वे से कई और तथ्य सामने आए
NFHS-5 से मिले डाटा से पता चलता है कि असम में जन्म दर में बदलाव की वजह यहां के समुदायों के बीच उनके धर्म से ज्यादा सांस्कृतिक और भूगोलिक फैक्टर्स ने ज्यादा बड़ा रोल अदा किया है.
दूसरे राज्यों में जन्म देर
बिहार में सभी समुदायों की जन्म दर में बढ़ोत्तरी देखने को मिली है. आंकड़ों की नजर से देखें तो यहां हिंदुओं की जन्म दर 2.9 रही, जो असम और दूसरे राज्यों के मुस्लिम समुदाय से ज्यादा है. जम्मू कश्मीर में मुस्लिमों की जन्मदर 1.45 रही जो कि दूसरे राज्यों की हिंदू आबादी में हुई बढ़ोत्तरी से कम है.
NFHS-5 डाटा के एक और प्रमुख पहलू
डाटा के मुताबिक, केरला में लिट्रेसी रेट सबसे ऊंचा होने के बाद भी यहां मुस्लिम महिलाओ में गरीबी है. असम में मुस्लिम समुदाय सबसे ज्यादा सामाजिक-आर्थिक रूप से पिछड़ा धार्मिक समुदाय है. NFHS-5 डाटा ये भी कहता है कि गांव में महिलाओं की जन्म दर शहरी महिलाओं से ज्यादा है और असम में मुस्लिमों की 36.6% आबादी गांव में और 18.6% आबादी शहरी क्षेत्रों में रहती है. शिक्षा के खराब स्तर का भी काफी गहरा विपरीत असर देखने को मिला है.