नई दिल्लीः आगामी विधानसभा चुनावों में भले ही सबसे ज्यादा चर्चा पश्चिम बंगाल की हो लेकिन कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी ने अब तक यहां चुनाव प्रचार से दूरी बनाई हुई है. कल यानी रविवार को कोलकाता में होने वाली लेफ्ट-कांग्रेस की संयुक्त रैली में भी कांग्रेस हाईकमान से कोई मौजूद नहीं रहेगा. बंगाल के अलावा राहुल केरल, तमिलनाडु, पुडुचेरी और असम में चुनाव को लेकर अलग-अलग कार्यक्रम कर चुके हैं. केरल और तमिलनाडु में तो राहुल गांधी के एक से ज्यादा दौरे हो चुके हैं. तो फिर आखिर बंगाल से क्यों दूर हैं राहुल?
बंगाल कांग्रेस के उच्च सूत्रों का मानना है कि राहुल गांधी केरल चुनाव खत्म होने के बाद यानी 6 अप्रैल के बाद ही बंगाल का रुख करेंगे. दरअसल केरल में कांग्रेस के नेतृत्व में यूडीएफ के सामने एलडीएफ सरकार को हराने की बड़ी चुनौती है जिसका नेतृत्व सीपीएम कर रही है. लेकिन केरल में कांग्रेस जिस सीपीएम से लड़ रही है उसी के साथ बंगाल में उसका गठबंधन है. कांग्रेस के रणनीतिकारों को लगता है कि अगर राहुल गांधी बंगाल में सीपीएम नेताओं के साथ मंच साझा करते हैं तो केरल में इसका नुकसान हो सकता है.
राहुल गांधी केरल से सांसद भी हैं. ऐसे में केरल में अपनी सरकार बनाने में कोई कोताही नहीं बरतना चाहते. अगर 6 अप्रैल से पहले राहुल बंगाल गए भी तो भी उनके मंच पर लेफ्ट नेताओं के नजर आने की संभावना कम है.
वैसे भी बंगाल में लेफ्ट और कांग्रेस का गठबंधन मुख्य लड़ाई से बाहर माना जा रहा है. इस जमीनी हकीकत से कांग्रेस रणनीतिकार वाकिफ हैं. जाहिर है बंगाल के चक्कर में कांग्रेस केरल का मौका नहीं चूकना चाहती. इसीलिए राहुल गांधी के चुनावी कार्यक्रमों से बंगाल का नक्शा अब तक गायब है. सूत्रों की मानें तो 6 अप्रैल यानी केरल में मतदान खत्म के बाद ही राहुल बंगाल का रुख करेंगे. हालांकि इस बाबत कांग्रेस नेता खुल कर नहीं बोल रहे. राहुल गांधी के बंगाल से दूरी बरतने पर प्रदेश कांग्रेस के अध्यक्ष अधीर रंजन चौधरी पहले ही कह चुके हैं कि "बंगाल कांग्रेस प्रचार के मामले में आत्मनिर्भर है."
बंगाल कांग्रेस के प्रभारी जितिन प्रसाद ने कहा कि राहुल गांधी को पांचों राज्यों में प्रचार करना है. जरूरत के मुताबिक उनका कार्यक्रम तय होता है. चरण के मुताबिक हम राहुल गांधी की सभाओं का कार्यक्रम तय कर रहे हैं. लेकिन जितिन यह साफ नहीं बता सके कि इस बार राहुल का पहला बंगाल दौरा कब होगा? रविवार की रैली में छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल मौजूद रहेंगे.
सूत्रों का यह भी कहना है कि 6 अप्रैल के बाद भी राहुल गांधी बंगाल में बेहद सीमित प्रचार कर सकते हैं. इसकी वजह यह है कि कांग्रेस नहीं चाहती कि अगर बंगाल में बीजेपी की सरकार बन जाए तो टीएमसी वोट बंटने का ठीकरा कांग्रेस पर फोड़े. इसके साथ ही कांग्रेस राष्ट्रीय राजनीति में ममता बनर्जी की अहमियत समझती है. जाहिर है वो ममता बनर्जी के लिए मुश्किलें बढ़ाती हुई नजर नहीं आना चाहती. कुल मिलाकर कांग्रेस और राहुल गांधी बंगाल को लेकर फूंक-फूंक कर कदम उठा रहे हैं क्योंकि उसे पता है कि बंगाल में उसके पास फायदे का सौदा तो कुछ नहीं है लेकिन नुकसान की आशंका जरूर है.
बंगाल में कांग्रेस वामदलों और एक नई मुस्लिम पार्टी 'आइएसएफ' के साथ गठबंधन कर चुनाव में उतरने जा रही है. पिछले विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने वामदलों के साथ चुनाव लड़ा था और मुख्य विपक्षी पार्टी बनी थी. लेकिन इस बार बदले महौल में बंगाल की राजनीति टीएमसी बनाम बीजेपी पर केंद्रित हो गई है. ऐसे में बंगाल में कांग्रेस का लक्ष्य त्रिशंकु विधानसभा की स्थिति में किंगमेकर बनने की है.