Atal Bihari Vajpayee Birth Anniversary: भारतीय राजनीति के पुरोधा और पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के ये अल्फाज़ उनकी जिंदगी के फलसफे को बयां करते हैं-


टूटे हुए सपनों की कौन सुने सिसकी, 
अंतर की चीर व्यथा पलकों पर ठिठकी
हार नहीं मानूँगा, रार नहीं ठानूँगा, 
काल के कपाल पर लिखता मिटाता हूं,
गीत नया गाता हूं... गीत नया गाता हूं.


भारतीय राजनीति में 6 दशक तक पुरज़ोर दखल रखने वाले वाजपेयी जी ने अपनी दूरदर्शिता और करिश्माई व्यक्तित्व की वजह से देश के साथ ही अंतरराष्ट्रीय मंचों पर भी अमिट छाप छोड़ी है. अटल जी के लिए राष्ट्रहित हमेशा दलगत राजनीति से ऊपर रहा. 


'हार नहीं मानूंगा, रार नहीं ठानूंगा'


एक सांसद के रूप में अटल बिहारी वाजपेयी दो बार राज्यसभा और दस बार लोकसभा के सदस्य चुने गए. भारत रत्न से सम्मानित अटल जी देश के तीन बार प्रधानमंत्री बने. अटलजी का लंबा राजनीतिक जीवन रहा है. उन्होंने अधिकांश समय विपक्ष में बिताया है. इसके बावजूद उन्‍होंने निरंतर जनहित से जुड़े मुद्दे उठाए और अपने सिद्धांतों से कभी विचलित नहीं हुए. अपनी दूरदर्शिता और शब्दों के साथ भाषा पर बेजोड़ पकड़ की वजह से वाजपेयी जी ने राजनीति, साहित्य और समाज के हर क्षेत्र में अमिट छाप छोड़ी. चाहे कैसी भी कठिनाइयां सामने रही हो, अटलजी ने अपने मजबूत इरादों के साथ उनका डटकर मुकाबला किया है. 


छात्र जीवन से ही राजनीति में रुझान


अटल बिहारी वाजपेयी का जन्म 25 दिसंबर 1924 को ग्वालियर में हुआ था. उनका छात्र जीवन से ही राजनीतिक गतिविधियों में गहरा रुझान रहा. अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ 1942 के भारत छोड़ो आंदोलन में उन्होंने हिस्सा लिया और जेल भी गए. कॉलेज और स्कूली शिक्षा ग्वालियर से पूरी हुई. उन्होंने ग्वालियर के विक्टोरिया कॉलेज से स्नातक किया. अटल जी ने कानपुर के डीएवी कॉलेज से राजनीतिशास्त्र में परास्नातक की डिग्री ली. राजनीतिक में आने से पहले अटल जी ने थोड़े वक्त के लिए पत्रकारिता भी किया. इस दौरान वे राष्ट्रधर्म, पॉन्च्यजन्य,  स्वदेश और वीर-अर्जुन पत्रिका में संपादक रहे. वाजपेयी का राष्ट्रीय स्वंय सेवक संघ से छात्र जीवन में ही नाता बना और वे आजीवन स्वंय सेवक बन रहे.   


जनसंघ के संस्थापक सदस्य रहे


श्यामा प्रसाद मुखर्जी और पण्डित दीनदयाल उपाध्याय से राजनीति का पाठ पढने वाले अटल बिहारी वाजपेयी भारतीय जनसंघ के सक्रिय सदस्य रहे. वे 1951 में जनसंघ के संस्थापक सदस्यों में से एक थे. उन्होंने 1968 से 1973 तक इसके अध्यक्ष का पदभार भी संभाला. अटल जी 1955 से 1977 तक जनसंघ संसदीय पार्टी के नेता रहे. वो पहली बार 1957 में जनसंघ के टिकट पर बलरामपुर से लोकसभा के लिए निर्वाचित हुए. अब तक वाजपेयी जी के बोलने की कला से लोग बखूबी परिचित होने लगे थे. उनके वाक् कला का ही जादू था कि तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू ने पहली बार संसद में बोलते हुए वाजपेयी को सुना और कहा कि इस लड़के के जिह्वा पर सरस्वती विराजमान हैं . 


6 दशक का संसदीय अनुभव


भारतीय राजनीति को नया मोड़ और विकल्प देने वाले अटल बिहारी वाजपेयी का संसदीय अनुभव बहुत लंबा रहा है. 1957 में वे पहली बार लोकसभा सदस्य बने और 2009 तक संसद सदस्य रहे. इस दौरान वो 10 बार लोकसभा सदस्य चुने गए और दो बार राज्यसभा सदस्य चुने गए. पहली बार वे 1957 में बलरामपुर से लोकसभा सदस्य चुने गए. ये देश के लिए दूसरा लोकसभा चुनाव था. इसके अलावा वे चौथी, 5वीं, 6वीं, 7वीं लोकसभा चुनाव में निर्वाचित होकर संसद पहुंचे. उसके बाद 10वीं, 11वीं, 12वीं , 13वीं और 14वीं  लोकसभा चुनाव में जीत हासिल कर संसद पहुंचे. आखिरी बार अटल बिहारी वाजपेयी ने 2004 में हुए 14वीं लोकसभा चुनाव में लखनऊ संसदीय सीट से जीत हासिल की. इसके अलावा वे 1962 और 1986 में दो बार राज्यसभा के सदस्य भी रहे.  


4 राज्यों से लोकसभा पहुंचने का गौरव


अटल बिहारी वाजपेयी भारतीय राजनीति के इकलौते ऐसे नेता हैं, जिन्हें चार अलग-अलग राज्यों से चुनाव जीतकर लोकसभा पहुंचने का गौरव हासिल है. लोकसभा में अटल बिहारी वाजपेयी ने उत्तर प्रदेश, गुजरात, मध्य प्रदेश और दिल्ली का प्रतिनिधित्व किया था. मध्य प्रदेश के बलरामपुर सीट से वे दो बार (1957, 1967) चुनाव जीते. अटल जी मध्य प्रदेश के ग्वालियर से एक बार (1971) चुनाव जीते. 1977 और 1980 में वे नई दिल्ली सीट से लगातार दो बार चुनाव जीतकर लोकसभा पहुंचे. अटल जी लखनऊ से लगातार पांच बार (1991, 1996, 1998, 1999 और 2004) चुनाव जीतने में कामयाब रहे.  अटलजी ने 1996 में लखनऊ के साथ ही गुजरात के गांधीनगर से भी जीत हासिल की थी.


अटलजी की चुनाव से जुड़ी अनसुनी बातें


1957 में उन्होंने बलरामपुर के अलावा मथुरा और लखनऊ सीट से भी चुनाव लड़ा था. हालांकि उन्हें जीत सिर्फ बलरामपुर में ही मिली थी. अटल जी ने 1962 में हुए तीसरे लोकसभा चुनाव में लखनऊ और बलरामपुर दोनों संसदीय सीट से चुनाव लड़ा था, लेकिन वे किसी भी सीट पर जीतने में सफल नहीं हुए थे. 1984 के आम चुनाव में वे ग्वालियर सीट से चुनाव जीतने में सफल नहीं हुए. 1989 में उन्होंने चुनाव नहीं लड़ा. 1991 के लोकसभा चुनाव में अटल बिहारी वाजपेयी मध्य प्रदेश की विदिशा और उत्तर प्रदेश की लखनऊ सीट दोनों पर जीत हासिल करने में कामयाब रहे. हालांकि बाद में उन्होंने लखनऊ को अपना निर्वाचन क्षेत्र बरकरार रखा. 1996 में 11वीं लोकसभा चुनाव में अटल जी गुजरात के गांधीनगर और यूपी के लखनऊ दोनों ही सीटों पर जीत हासिल की. हालांकि लखनऊ संसदीय क्षेत्र से उनका प्रेम बरकरार रहा. 


जब संयुक्त राष्ट्र में दिया हिन्दी में भाषण


अटल बिहारी वाजपेयी को मोरारजी देसाई की अगुवाई में बनी जनता पार्टी सरकार में 1977 से 1979 तक विदेश मंत्री रहने का मौका मिला.  इस पद पर रहते हुए उन्होंने पूरी दुनिया में भारत की बातों को मजबूती से रखा. कुशल और मुखर वक्ता के रूप में वाजपेयी का जादू संयुक्त राष्ट्र के सर चढ़ कर बोला. विदेश मंत्री के रूप में अटल बिहारी वाजपेयी पहले व्यक्ति थे जिन्होंने संयुक्त राष्ट्र महासभा (UN General Assembly) को हिंदी में संबोधित किया और भारत का मान पूरी दुनिया में बढ़ाया.


बीजेपी को पहुंचाया फ़र्श से अर्श तक 


अटल बिहारी वाजपेयी में संगठन की शक्ति भी कूट-कूटकर भरी थी. उन्हें धैर्य और संयम के साथ कड़ी मेहनत पर पूरा भरोसा था.  1980 में जनता पार्टी के टूट जाने के बाद अटल बिहारी वाजपेयी ने लालकृष्ण आडवाणी और कुछ सहयोगियों के साथ मिलकर भारतीय जनता पार्टी का गठन किया. वे बीजेपी के पहले राष्ट्रीय अध्यक्ष बने. अटल जी 1980 से 1986 तक पार्टी के अध्यक्ष रहे. अटलजी की अगुवाई में बीजेपी ने धीरे-धीरे अपना संगठन मजबूत करना शुरू किया. 1984 के आम चुनाव में बीजेपी को महज़ 2 सीट जीत मिली. अटलजी इससे विचलित नहीं हुए और पार्टी को मजबूत करने में जुटे रहे.  ये उनके व्यक्तित्व और करिश्माई नेतृत्व का नतीजा ही था कि 1984 में  सिर्फ दो सीट पर जीत दर्ज करने वाली पार्टी ने 1989 के चुनाव में 85 सीट जीतकर भारतीय लोकतंत्र में बीजेपी की दमदार उपस्थिति दर्ज कराई. साथ ही सालों बाद भारतीय लोकतंत्र में एक नए और मजबूत विकल्प की नींव रखी गई.  


1996 में पहली बाहर बनें प्रधानमंत्री


अटल बिहारी वाजपेयी और भारत दोनों के लिए 1996 का समय इतिहास में दर्ज हो गया जब लोकसभा चुनाव में 161 सीटें जीतकर बीजेपी पहली बार सबसे बड़ी पार्टी बनी. अटलजी पहली बार देश के प्रधानमंत्री बनें. ये अलग बात है कि इस सरकार को सत्ता में 13 दिन ही रहने का मौका मिला. हालांकि अटलजी देश की जनता के दिलों में पैठ बना चुके थे. 1998 में देश की जनता ने एक बार फिर से अटल बिहारी वाजपेयी पर भरोसा जताया और बीजेपी 182 सीट जीतकर सबसे बड़ी पार्टी बनी. अटल जी दूसरी बार देश के प्रधानमंत्री बने. उनके नेतृत्व में बीजेपी की अगुवाई वाली राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन यानी एनडीए ने केन्द्र में सरकार बनायी. ये सरकार 13 महीने तक चली.1999 में तेरहवीं लोकसभा के चुनाव में 182 सीटें जीतकर बीजेपी लगातार तीसरी बार सबसे बड़ी पार्टी बनी. अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व में एक बार फिर से एनडीए की सरकार बनी. इस चुनाव के बाद ही अटल बिहारी वाजपेयी को प्रधानमंत्री के तौर पर 5 साल का अपना कार्यकाल पूरा करने का मौका  मिला. वाजपेयी 1999 से 13 मई 2004 तक देश के प्रधानमंत्री रहे. अटल जी ही शख्स थे जिनकी अगुवाई में केन्द्र में पहली बार किसी गैर-कांग्रेसी सरकार ने 5 साल का कार्यकाल पूरा किया.



जननेता और ओजस्वी वक्ता थे अटल जी


अटल बिहारी वाजपेयी जननेता के साथ ओजस्वी वक्ता भी थे. सड़क से लेकर संसद तक उनकी बातें और उनके विचार सुनने को आम आदमी से लेकर बड़े से बड़ा नेता उत्सुक रहता था. अटलजी की भाषण कला के मुरीद देश के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू भी थे. अटल जी की भाषण कला से प्रभावित होकर ही नेहरू जी ने पहले ही कह दिया था कि ये व्यक्ति एक दिन देश का प्रधानमंत्री बनेगा. पंडित नेहरू की भविष्यवाणी सच साबित हुई. लेकिन ये सफर इतना आसान नहीं था. अटल बिहारी वाजपेयी ने बीजेपी को सत्ता तक पहुंचाने में कड़ी मेहनत की. जन जन तक पार्टी की स्वीकार्यता बढ़ाने में उनका खास योगदान है. 


हर चुनौतियों का डटकर किया सामना


अटल जी के प्रधानमंत्री रहते देश के सामने कई बड़ी चुनौतियां आई लेकिन हर बार अटल जी ने देश को मुश्किलों से उबारने में कामयाबी हासिल की. वाजपेयी जी ने हमेशा एक मजबूत भारत का सपना देखा था. वो चाहते थे कि भारत के शांतिप्रिय होने का कोई विरोधी देश नाजायज फायदा न उठाए इसलिए उन्होंने प्रधानमंत्री रहते देश की आत्मरक्षा के लिए एक बड़ा और साहसिक फैसला लिया. यूं तो 18 मई, 1974 के दिन राजस्थान के पोखरण में अपने पहले भूमिगत परमाणु परीक्षण के साथ ही भारत परमाणु शक्ति संपन्न देशों की कतार में शामिल हो गया था. लेकिन अटलबिहारी वाजपेयी जब दूसरी बार प्रधानमंत्री बने तो उन्होंने पोखरण दो परीक्षणों की इजाजत दे कर भारत की ओर आशंका से उठने वाली हर नजर को झुका दिया. अटल जी के नेतृत्व में 11 और 13 मई 1998 को दो भूमिगत विस्फोट हुए. ये विश्व पटल पर एक नए और मजबूत भारत का उदय था और इसके अगुवा थे सबके चहेते अटलजी.


विदेशी दबाव के आगे झुके नहीं 


पोखरण में परमाणु परीक्षण के बाद अमेरिका समेत कई देशों ने भारत पर दबाव बनाने के लिए आर्थिक प्रतिबंध लगा दिए. इसके बावजूद अटलजी परमाणु शक्ति संपन्न देशों की नाराजगी से तनिक भी विचलित नहीं हुए. उन्होंने अग्नि सीरीज़ के मिसाइलों का परीक्षण कर देश की सुरक्षा के लिए एक और मजबूत कदम आगे बढ़ाया. उन्होंने  साफ कर दिया था वो अंतरराष्ट्रीय दबाव के चलते नीतियां नहीं बनाते. उन्होंने कहना था कि खतरा आने से पहले ही उसकी तैयारी होनी चाहिए. प्रधानमंत्री के तौर पर उन्होंने देश को आगे बढ़ाने में अभूतपूर्व भूमिका निभाई.


पड़ोसी से बेहतर रिश्तों के हिमायती


अटल बिहारी वाजपेयी अक्सर कहते थे कि दोस्‍त बदले जा सकते हैं, लेकिन पड़ोसी नहीं. वो हमेशा भारत के पड़ोसी देशों से अच्छे संबंधों की वकालत करते थे. इसके बावजूद देश की सुरक्षा और अखंडता की कीमत पर ऐसा करना उन्हें बिल्कुल भी पसंद नहीं था. कुछ इसी सोच के साथ उन्होंने पाकिस्तान से साथ दोस्ती का हाथ बढ़ाया. वाजपेयी ने दिल्ली और लाहौर के बीच पहली बार सीधी बस सेवा 20 फ़रवरी 1999 को शुरू की और खुद पाक सीमा पर एक बस से अटारी से वाघा तक का सफ़र किया. लेकिन पाकिस्तान को हमेशा की तरह भारत के भाईचारे का ये संदेश रास नहीं आया. इधर अटल बिहारी वाजपेयी दोस्ती की इबारत लिख रहे थे तो उधर पाकिस्तान कारगिल जंग की तैयारी पूरी कर चुका था. लाइन ऑफ कंट्रोल के पास कारगिल सेक्टर में आतंकवादियों का मुखौटा ओढ़कर पाकिस्तानी सेना कई भारतीय चोटियों पर कब्जा कर चुकी थी. लेकिन जैसे भारत को इसकी भनक हुई हमारे जाबांज सैनिकों के शौर्य और साहस ने पाकिस्तान को एक बार फिर मुंहतोड़ जवाब दिया और कारगिल में विजय पताका लहरा दी. 


दुनिया के शीर्ष राजनेताओं में शुमार 


कारगिल में विजय के साथ ही अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व का लोहा एक बार फिर पूरी दुनिया ने माना. जिस संयम और मजबूती से बतौर प्रधानमंत्री अटलजी ने कारगिल संकट का सामना किया, उनकी गिनती दुनिया के शीर्ष राजनेताओं में होने लगी. उन्होंने देश के नागरिकों की सुरक्षा के लिए कंधार अपहरण मामले को भी कुछ कड़वे घूंटों के साथ जिम्मेदारी से निभाया. वाजपेयी जी ने इसके बाद भी अपनी नेतृत्व कुशलता से न सिर्फ विदेश नीति बल्कि घरेलू नीतियों में कई सुधार किए. 


मजबूत बुनियादी ढांचे के निर्माण पर ज़ोर


बतौर प्रधानमंत्री अटलजी ने सौ साल से भी ज्यादा पुराने कावेरी जल विवाद को सुलझाने का अभूतपूर्ण प्रयास किया. बुनियादी संरचनात्मक ढांचे के लिए कार्यदल का गठन किया. सॉफ्टवेयर विकास के लिए सूचना और प्रौद्योगिकी से जुड़ा कार्यदल का गठन किया. केन्द्रीय बिजली नियंत्रण आयोग जैसी महत्वपूर्ण संस्थाओं का गठन किया. राष्ट्रीय राजमार्गों के विस्तार और देश को कनेक्टिविटी की एक नई सौगात स्वर्णिम चतुर्भुज योजना शुरू की. हवाई अड्डों का विकास किया. नई टेलीकॉम नीति जैसे कदम उठाएं. अटल जी ने कोंकण रेलवे की शुरुआत जैसे कदमों से बुनियादी संरचनात्मक ढांचे को मजबूत करने की दिशा में कई कदम उठाए. उन्होंने राष्ट्रीय सुरक्षा समिति, आर्थिक सलाह समिति, व्यापार एवं उद्योग समिति भी गठित कीं. 
 
सर्वाधिक लोकप्रिय व्यक्तित्वों में से एक 


इन सब कामों की बदौलत वाजपेयी जी भारतीय राजनीति के सर्वाधिक लोकप्रिय व्यक्तित्वों में से एक हो गए. वो जब विपक्ष में रहे तो देश को एक जिम्मेदार विपक्ष का आभास होता रहा और जब देश की कमान उनके हाथ में आई भारत की ज्यादातर जनता महसूस करती रही कि वो वाजपेयी जी के जिम्मेदार हाथों में पूरी तरह सुरक्षित है. वाजपेयी जी स्वास्थ्य वजहों से 2009 में सक्रिय राजनीति से अलग हो गए थे. अनेक राष्ट्रीय अंतरराष्ट्रीय पुरस्कारों से सम्मानित अटलजी को 27 मार्च 2015 को देश के सर्वोच्च सम्मान भारत रत्न से सम्मानित किया गया. अटल बिहारी वाजपेयी का 16 अगस्त 2018  को निधन हो गया.


राजनीतिक जीवन बेलाग और साफ-सुथरा 


वाजपेयी जी का व्यक्तित्व ही ऐसा था कि समाज के सभी तबकों में वे लोकप्रिय रहे. अटल जी खुले दिल वाले व्यक्ति थे. वे अपने विरोधी दलों के नेताओं की अच्छी बातों की सराहना करने से नहीं चूकते थे. अटल जी के भाषण की बहुत चर्चा होती है, लेकिन जितनी ताकत उनके भाषण में थी उतनी ही उनके मौन में थी. लोकतंत्र में विरोधी होने के बावजूद एक दूसरे के प्रति कैसे आदर भाव रखना चाहिए, ये अटल बिहारी वाजपेयी की शख्सियत से बेहतर कोई नहीं सिखा सकता. अटल बिहारी वाजपेयी का सम्पूर्ण राजनीतिक जीवन बेलाग और साफ-सुथरा रहा. कोमल हृदय के धनी वाजपेयी ने हर मौके पर राजनीतिक मजबूती का परिचय दिया. चाहे देश का मुद्दा हो या विदेशी सरोकार से संबंधित मामला, हर बार बड़ी ही बेबाकी और साफगोई से उन्होंने अपनी राय रखी. 


धुर विरोधियों में भी था अटल जी का सम्मान


इन्हीं  खासियत की वजह से सभी दलों और समुदाय से ताउम्र उन्हें भरपूर सम्मान मिला. धुर विरोधी दलों  के नेताओं के मन में भी अटलजी के लिए बहुत सम्मान था. मार्च 2008 में संसद के उच्च सदन राज्यसभा में तत्कालीन प्रधानमंत्री और कांग्रेस नेता मनमोहन सिंह ने अटलजी को भारतीय राजनीति का भीष्म पितामह बताया था. भारतीय राजनीति में सत्ता या विपक्ष में रहते हुये जन श्रद्धा का केन्द्र बने रहना बहुत ही चुनौतीपूर्ण कार्य है. लेकिन भारतीय राजनीति के पुरोधा अटल बिहारी वाजपेयी ने इस काम को बखूबी अंजाम दिया. 


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