'हार नहीं मानूंगा, रार नई ठानूंगा', जानें- अटल बिहारी वाजपेयी के बारे में 10 दिलचस्प बातें
अटल बिहारी वाजयेपी को लंबे समय से किसी सार्वजनिक आयोजन में नहीं देखा गया गया है. बताया जाता है कि बीते कई सालों से वो बीमार हैं और इसके साथ ही वो बुजुर्ग अवस्था में भी हैं. अपनी विशिष्ठ भाषण शैली और कविताओं के लिए प्रख्यात अटल बिहारी वाजयेपी इन दिनों मौन हैं. न कलम हाथ में टिक पा रही है न जुबान साथ दे रही है, लेकिन जिंदगी के इस सुहाने सफर में शरीर उनके साथ है और आज वो 93 साल के हो गए हैं.
नई दिल्ली: पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी न सिर्फ देश के तीन बार प्रधानमंत्री रहे, बल्कि उनका शुमार देश के एक हरदिल अजीज राजनेता के तौर पर किया जाता है. उनके व्यक्तित्व की कई छवियां हैं और वो एक वक़्त में लोकप्रिय राजनेता, ओजस्वी कवि, सम्मानपूर्वक समाजसेवी, नरम हिंदूत्व के चेहरे के साथ-साथ उनकी एक ऐसी लव स्टोरी भी है जहां उन्होंने समाज की बनी बनाई परंपराओं और बंधनों को तोड़कर खुद की नई लकीर खींची.
अटल बिहारी वाजयेपी को लंबे समय से किसी सार्वजनिक आयोजन में नहीं देखा गया गया है. बताया जाता है कि बीते कई सालों से वो बीमार हैं और इसके साथ ही वो बुजुर्ग अवस्था में भी हैं. अपनी विशिष्ठ भाषण शैली और कविताओं के लिए प्रख्यात अटल बिहारी वाजयेपी इन दिनों मौन हैं. न कलम हाथ में टिक पा रही है न जुबान साथ दे रही है, लेकिन जिंदगी के इस सुहाने सफर में शरीर उनके साथ है और आज वो 93 साल के हो गए हैं.
आईए अटल बिहारी वाजयेपी के जन्मदिन पर जानते हैं ऐसी 10 दिलचस्प बातें जिनकी चर्चा के बिना उन्हें याद करना अधूरा है.
- अटल बिहारी वाजयेपी का जन्म 25 दिसबंर, 1924 को गुलाम भारत के ग्वालियर स्टेट में हुआ, जो आज के मध्यप्रदेश का हिस्सा है. दिलचस्प बात ये है कि अटल बिहारी वाजयेपी का जन्म ठीक उसी दिन हुआ, जब राष्ट्रपिता महात्मा गांधी कांग्रेस पार्टी के पहली और आखिरी बार अध्यक्ष बने.
- जब 1942 का भारत छोड़ों आंदोलन अपने चरम पर था तो 18 साल का युवा अटल बिहारी वाजयेपी भी बेचैन हो उठा और राजनीति में कूद पड़ा. कांग्रेस के विरोध की राजनीति करने वाले अटल बिहारी वाजयेपी अपने करियर की शुरुआत में ही अपनी अलग पहचान बनाने में कामयाब रहे. 1977 में जनता पार्टी की सरकार में विदेश मंत्री बने. 1996 में पहली बार देश के प्रधानमंत्री बने. उसके बाद 1998 और 1999 में भी प्रधानमंत्री बने. पहला कार्यकाल 13 दिनों का था और 16 मई 1996 से 1 जून 1996 तक पीएम रहे. दूसरा और तीसरा कार्यकाल 19 मार्च 1998 से 22 मई 2004 तक रहा.
- जिंदगी एक खूबसूरत एहसास है और इस सफर में कई ऐसे नाजुक मोड़ आते हैं जब कुछ सुनहरे एहसास दिल के रुखसार पर धीरे से दस्तक देते हैं और खुशी में लिपटी जिंदगी खूबसूरत लम्हों की एक अजीब से बेचैनी में घिर जाती है. ऐसे एहसास का सामना अटल बिहारी वाजयेपी को भी हुआ. ज़िंदगी में एक इश्क किया, लेकिन जुबान पर इसका जिक्र तक नहीं किया. राजनीतिक गलियारों में भी उनकी खूबसूरत प्रेम कहानी का ज़िक्र बहुत कम ही हुआ. अटल बिहारी वाजयेपी का प्यार राजकुमारी कौल रही हैं और वो उनके साथ भी रहीं, लेकिन अपने प्यार को कोई पुख्ता नाम देने में अटल बिहारी वाजयेपी नाकाम रहे. खुद अटल बिहारी वाजपेयी कहा करते थे कि वो अविवाहित हैं, लेकिन कुंवारा नहीं हैं.
- अटल बिहारी वाजयेपी को अपनी कोई संतान नहीं है, लेकिन उन्होंने नमिता कौल को दत्तक पुत्री के तौर पर पाला पोसा है. उनकी दत्तक पुत्री नमिता कौल की शादी रंजन भट्टाचार्य से हुई है.
- अटल बिहरी वाजयेपी रहने वाले ग्वालियर के थे, लेकिन 1991 से अपने आखिरी चुनाव तक यानि 2004 तक लखनऊ लोकसभा का प्रतिनिधित्व किया. वाजयेपी ऐसे अकेले गैर कांग्रेसी प्रधानमंत्री हैं जिन्होंने पूरा 5 साल का अपना कार्यकाल पूरा किया.
- अटल बिहारी वाजपेयी का हिंदी से प्यार किसी से छिपा हुआ नहीं है. जब वो विदेश मंत्री बने तो उन्होंने संयुक्त राष्ट्र में हिंदी में भाषण दिया. ऐसा करने वाले वो पहले विदेश मंत्री थे.
- अटल बिहारी वाजपेयी राजनेता के साथ एक अच्छे कवि भी थे. जब वो प्रधानमंत्री थे तो उनकी कविता संग्रह प्रकाशित हुई.
गीत नया गाता हूँ
टूटे हुए तारों से फूटे बासंती स्वर , पत्थर की छाती में उग आया नव अंकुर,झरे सब पीले पात, कोयल की कूक रात, प्राची में अरुणिमा की रेख देख पाता हूं। गीत नया गाता हूँ।टूटे हुए सपनों की सुने कौन सिसकी? अंतर को चीर व्यथा पलकों पर ठिठकी।हार नहीं मानूँगा, रार नई ठानूँगा, काल के कपाल पर लिखता मिटाता हूँ। गीत नया गाता हूँ। - अटल बिहारी वाजपेयी ने 1998 में अपनी सरकार के दौरान पोखरण-2 का परीक्षण किया और देश को परमाणु संपन्न देश बनाया. उनके दौर पर पाकिस्तान से करगिल युद्ध हुआ और इस जंग में उन्होंने भारत की जीत दिलाई.
- अटल बिहारी वाजपेयी का शुमार एक बेहतरीन प्रधानमंत्री के तौर पर होता है, लेकिन वो सिर्फ एक बेहतरीन पीएम ही नहीं थे, बल्कि सबसे बेहतरीन सांसद भी चुने गए. वाजपेयी 10 बार लोकसभा और दो बार राज्यसभा के सदस्य रहे.
- लेकिन ऐसा नहीं है कि वाजपेयी की आलोचना नहीं हुई हो. उनके कुछ फैसलों और आपत्तिजनक भाषणों पर उनकी जमकर आलोचना होती है. गुजरात दंगों के दौरान तत्कालीन सीएम नरेंद्र मोदी के लिए पहले राजधर्म के पालन का बयान और फिर उसपर पलट जाना, उनकी सबसे बड़ी रानीतिक कमजोरी में शुमार की जाती है. असम के नीली में 1983 में उनके भड़काऊ भाषण की भी खूब आलोचना होती है.