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नई संसद के उद्घाटन समारोह में शामिल अदिनम पुजारियों का इतिहास और जाति क्या है?

नई संसद के उद्धघाटन को लेकर खूब विवाद हुआ. विपक्ष ने अदिनम पुजारियों को बुलाये जाने को एक रूढ़िवादी कदम बताया और बीजेपी पर निशाना साधा.

रविवार को नए संसद भवन का उद्घाटन हुआ. नए संसद के उद्धघाटन में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने न सिर्फ पवित्र सेंगोल स्थापित किया बल्कि कुरान के सूरह रहमान की भी तिलावत करा के नए संसद भवन का श्रीगणेश कराया. इस तरह से पूरे भारत के लिए रविवार 28 मई का दिन एक ऐतिहासिक क्षण बना. लेकिन फिर भी यह प्रक्रिया राजनीतिक विवाद से अछूती नहीं रह गई है. बीजेपी सरकार पर ब्राह्मणवाद को बढ़ावा देने के आरोप लगाए गए.

विवाद की मुख्य वजह अदिनम पुजारी थे. यूपी की मुख्य विपक्षी दल समाजवादी पार्टी के महासचिव स्वामी प्रसाद मौर्य ने सेंगोल की स्थापना को लेकर एक बहुत ही विवादित बयान दिया. उनका दावा था 'नए संसद भवन में सेंगोल की स्थापना के लिए सिर्फ रूढ़िवादी ब्राह्मण गुरुओं को ही बुलाया गया था'. समाजवादी पार्टी के अलावा नए संसद भवन के उद्घाटन समारोह का बायकॉट विपक्षी पार्टियों ने भी किया. 20 विपक्षी दलों ने पहले ही खुद को इस कार्यक्रम से दूर रहने की बात कह दी थी.

समाजवादी पार्टी के सवाल पर बीजेपी के मुख्य प्रवक्ता अनिल बलूनी ने जवाब दिया.  उन्होंने कहा कि ' आरोप लगाने से पहले ठीक से होमवर्क नहीं किया गया. बीजेपी नेता ने कहा कि अदिनम को जो समुदाय चलाते है, वह पिछड़ी जाति और अन्य पिछड़ी जाति (OBC) की श्रेणियों में आते हैं. तमिल साहित्य का उनका एक गौरवशाली इतिहास रहा है. अदिनम भगवान शिव के उपासक हैं.  ऐसी टिप्पणियां करना इन पवित्र अदिनमों और हिंदू धर्म की विविधता का अपमान है. 

अदिनम कौन हैं? 

अदिनम का मतलब एक मठ या एक मठ के पुजारी हो सकते हैं. तमिलनाडु में अदिनम संत गैर-ब्राह्मण शैव मठों में रहने वाले लोग हैं. तमिलनाडु में लगभग 20 प्रमुख आदिनम हैं

अदिनम पुजारी ब्राह्मण नहीं होते. हर अदिनम की जाति अलग होती है. उनकी क्षेत्रीय विशेषता भी अलग होती है. पेरुर और सिरूर के अदिनम   पश्चिमी तमिलनाडु में बड़ी संख्या में पाए जाते हैं. ये जाति से गौंडार होते हैं. वहीं तिरुवदुथुरै और मदुरै मुदलियार समाज से आते हैं. तमिलनाडु के चेट्टिनाड इलाके में कुंद्राकुडी अदिनम ज्यादा पाए जाते हैं , इनकी अगुआई चेट्टियार करते हैं. 

प्रत्येक अदिनम के अपने इतिहास के बारे में अलग - अलग दावे हैं. चोल चेरा और पांडिया प्रमुख अदिनामों को संरक्षण देते हैं. मदुरै अदिनम का कहना है कि उनका इतिहास 1,300 साल पुराना है. 

कई प्राचीन मंदिरों का संचालन अदिनमों के हाथ में 

एक लंबे समय से अदिनम शैव दर्शन और तमिल साहित्य को बढ़ावा देते आए हैं. पिछली कुछ सदियों में इन्हीं पुजारियों की मदद से दुर्लभ ताड़ के पत्तों की पांडुलिपियों का पता लगाया जा सका. तिरूवदुथुरई, कुंद्राकुडी और धारुमापुरम अदिनामों ने ही यू वे स्वामीनाथ अय्यर जैसे तमिल विद्वानों को ताड़ के पत्तों की पांडुलिपियों को पुनर्स्थापित करने के लिए नियुक्त किया. सांस्कृतिक परंपरा को बढ़ावा देने के अलावा कई अति-प्राचीन मंदिरों का संचालन अभी भी अदिनमों के हाथों में है. 

संतों का चयन कैसे किया जाता है

अदिनम या अधिनाकार्थ बनने के लिए दशकों की कठोर गुरुकुल शिक्षा, तमिल भक्ति साहित्य और सेवारत प्रमुखों की सेवा करनी होती है. भिक्षु 'पंडारम' के रूप में अपनी शुरुआत करते हैं, इसके बाद 'थंबुरान' और 'मुख्य थंबुरान' के तौर पर नामित होते हैं. शासक संत आम तौर पर अपने प्रमुख शिष्यों में से किसी एक को अपना उत्तराधिकारी चुनते हैं. 

आधुनिक समाज में अदिनम की भूमिका

अदिनम अपने क्षेत्रों के धार्मिक और सांस्कृतिक मामलों में सक्रिय और प्रभावशाली हैं. वे आम तौर पर अपने राजनीतिक विचारों पर बात नहीं करते, न ही कोई राय रखते हैं. 

सेंगोल की खासियत

तमिलनाडु के अदिनम के पुजारियों ने चांदी से निर्मित और सोने की परत वाले  ‘राजदंड’ या सेंगोल पर पुष्प अर्पित किए और पीएम मोदी नए संसद भवन के उद्घाटन के हवन में शामिल हुए.

सेंगोल का इस्तेमाल अधिकार के प्रतीक के रूप में किया जाता रहा है. अमित शाह के मुताबिक देश के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू ने सेंगोल को अंग्रेजों से भारत को सत्ता हस्तांतरण के प्रतीक के तौर पर स्वीकार किया था. दक्षिण भारतीय राजा जिस संगोल का इस्तेमाल करते थे वो कार्यात्मक रूप से बहुत महत्वपूर्ण माना जाता था.  

गोल्डन सेंगोल का इतिहास

पहली बार देश की आजादी के मौके पर 1947 में पांच फुट के सोने के सेंगोल को सी राजगोपालाचारी के मार्गदर्शन में तत्कालीन मद्रास के एक जौहरी वुम्मिदी बंगारू चेट्टी ने तैयार किया था.

इस राजदंड को सबसे पहले तमिलनाडु के गैर-ब्राह्मण शैवायत मठ थिरुवावुथुरई अदीनाम के एक पुजारी ने लॉर्ड माउंटबेटन को सौंपा था. बाद में इसे वापस ले लिया गया और गंगाजल से शुद्ध किया गया. 

इसे वापस पाने के बाद नेहरू ने 14 अगस्त, 1947 की मध्यरात्रि से कुछ मिनट पहले डॉ राजेंद्र प्रसाद सहित कई नेताओं की मौजूदगी में स्वतंत्रता के प्रतीक और सत्ता पर काबिज होने के संदेश के रूप में स्वीकारा .

आजादी और सत्ता पर काबिज होने के इस जश्न को चोल शैली के आधार पर मनाया गया.  इस मौके पर एक खास गीत भी गाया गया था. तब से सेंगोल इलाहाबाद संग्रहालय में नेहरू की संग्रह गैलरी में लगाया गया. 

सेंगोल को धार्मिक समारोह के बाद लोकसभा के अध्यक्ष के बगल में रख दिया गया. बता दें कि थिरुवावुथुरई अदीनाम के प्रतिनिधि को ही सेंगोल को तैयार करने का काम दिया गया था. तिरुववदुथुरई आदिनाम के मुताबिक नए संसद भवन में सेंगोल स्थापित किया जाना तमिलनाडु के लिए "गर्व की बात" है. 

नए संसद के उद्घाटन में कौन- कौन सी विपक्षी पार्टियां मौजूद नहीं थी

प्रमुख विपक्षी दल कांग्रेस समेत 19 पार्टियों ने संयुक्त बयान जारी कर नई संसद के उद्घाटन समारोह का बहिष्कार करने की घोषणा की थी. इन 19 पार्टियों में बीएसपी, बीजेडी, टीडीपी, वाईएसआरसीपी, एआईएडीएमके, पीडीपी, बीआरएस शामिल नहीं थे. 

19 पार्टियों ने राष्ट्रपति मुर्मू  को न बुलाए जाने का भी बनाया था मुद्दा

19 पार्टियों ने बयान जारी कर राष्ट्रपति मुर्मू को संसद के उद्घाटन में न बुलाए जाने का भी विरोध किया. पार्टियों ने बयान जारी कर कहा ' राष्ट्रपति मुर्मू को पूरी तरह से दरकिनार करते हुए, नए संसद भवन का उद्घाटन करने का प्रधानमंत्री मोदी का निर्णय न केवल एक गंभीर अपमान है, बल्कि हमारे लोकतंत्र पर सीधा हमला है, जो इसके अनुरूप प्रतिक्रिया की मांग करता है."

विपक्षी पार्टियों  ने इसे भारत के संविधान के अनुच्छेद 79 का उल्लंघन बताया था. अनुच्छेद 79 का हवाला देते हुए विपक्ष का कहना है कि राष्ट्रपति न केवल भारत में राज्य का प्रमुख होता है, बल्कि संसद का एक अभिन्न अंग भी होता है. विपक्ष के अनुसार राष्ट्रपति मुर्मू के बिना नए संसद भवन का उद्घाटन करने का निर्णय एक अशोभनीय कृत्य है जो राष्ट्रपति के उच्च पद का अपमान करता है.

हालांकि डेमोक्रेटिक प्रोग्रेसिव आजाद पार्टी के प्रमुख गुलाम नबी आजाद ने नए संसद भवन के उद्घाटन का बहिष्कार करने के लिए विपक्ष की आलोचना की. उन्होंने केन्द्र सरकार को बधाई दी. 

एएनआई से बात करते हुए गुलाम नबी आजाद ने कहा, "अगर मैं दिल्ली में होता तो मैं निश्चित रूप से नए संसद भवन के उद्घाटन समारोह में शामिल होता.  मैं इस फैसले का पूरी तरह से स्वागत करता हूं.  विपक्ष को उद्घाटन का बहिष्कार करने के बजाय सरकार को बधाई देनी चाहिए थी.  जो वे नहीं कर पा रहे थे, वह इस सरकार ने कर दिखाया है. मैं विपक्ष के बहिष्कार के सख्त खिलाफ हूं.

गुलाम नबी आजाद ने इस फैसले को 'बहुत जरूरी' बताते हुए  कहा कि वह भी संसदीय कार्य मंत्री के रूप में अपने कार्यकाल के दौरान एक नया संसद भवन चाहते थे. 23 साल पहले हमने यह सपना देखा था.  मैं तब संसदीय कार्य मंत्री था.  मैंने शिवराज पाटिल और पूर्व प्रधानमंत्री नरसिम्हा राव से इस बारे में चर्चा की थी.  हमने एक नक्शा भी डिजाइन किया था, लेकिन काम नहीं किया जा सका. इसलिए, अगर नए संसद भवन का निर्माण अब किया गया है, तो यह बहुत अच्छा है. 

आजाद ने कहा, 'इस फैसले की बहुत जरूरत थी क्योंकि सांसदों की संख्या लगभग दोगुनी होने जा रही है और पुरानी संसद इसके लिए पर्याप्त नहीं है. मैं रिकॉर्ड समय में निर्माण पूरा करने के लिए सरकार को भी बधाई देता हूं. आमतौर पर संसद का निर्माण इतनी तेजी से नहीं होता है.

पूर्व कांग्रेस नेता ने कहा कि इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि संसद का उद्घाटन कौन करता है और विपक्ष को जनता के मुद्दों को उठाना चाहिए. आजाद ने कहा 'इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि प्रधानमंत्री उद्घाटन करते हैं या राष्ट्रपति. गुलाम नबी आजाद ने कहा ' अगर विपक्ष के मन में मुर्मू लिए इतना ही सम्मान था, तो उन्होंने उनके खिलाफ उम्मीदवार क्यों उतारा.

उन्होंने कहा, 'विपक्ष अप्रासंगिक मुद्दे उठा रहा है. कई वास्तविक मुद्दे हैं, लेकिन विपक्ष उन पर ध्यान केंद्रित नहीं कर रहा है. इसके बजाय, विपक्ष को ऐसे मुद्दों को उठाना चाहिए जो वास्तव में लोगों को प्रभावित करते हैं. जनता को इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि संसद का उद्घाटन कौन करता है. 

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