Asad Encounter: उमेश पाल हत्याकांड में फरार चल रहे माफिया अतीक अहमद के बेटे असद को यूपी एसटीएफ ने गुरुवार (13 अप्रैल) को झांसी में एक मुठभेड़ में मार गिराया. असद के साथ ही हत्याकांड का एक और आरोपी गुलाम मोहम्मद भी ढेर हो गया. दोनों के सिर पर पांच-पांच लाख रुपये का इनाम था. असद की मौत पर राजनीतिक बयानबाजी शुरू हो गई है. योगी सरकार जहां इसे उपलब्धि के तौर पर बता रही है, वहीं विपक्ष ने मुठभेड़ पर सवाल उठाए हैं. राजनीतिक बयानबाजी के परे एनकाउंटर को लेकर कानूनी बहस भी छिड़ने की संभावना है. इसके पहले कई केस में ऐसा हो चुका है, जब अदालतों को जांच के निर्देश देने पड़े. 


असद अहमद का एनकाउंटर की कहानी यहीं खत्म नहीं होगी. इसके लिए मजिस्ट्रेट की जांच का इंतजार करना होगा जो पुलिस की थ्योरी और इस मुठभेड़ की जांच करेगा लेकिन उसके पहले उन तीन बड़े एनकाउंटर केस की बात करते हैं, जिन्होंने देश भर में सुर्खियां बटोरीं.


हैदराबाद एनकाउंटर केस


2019 में हैदराबाद में एक वेटनरी डॉक्टर की गैंगरेप की हत्या कर दी गई थी. इस घटना से पूरे देश में उबाल आ गया था. मामले में पुलिस ने आरोपियों को पकड़ा था. चारों आरोपी गिरफ्तारी के बाद हुए एक एनकाउंटर में मारे गए थे. एनकाउंटर उसी जगह के पास हुआ, जहां महिला की लाश मिली थी. पुलिस चारों आरोपियों को गिरफ्तार करने के बाद सीन रीक्रिएट कराने के लिए घटना स्थल पर ले गई थी.


पुलिस ने बयान में कहा कि पुलिस की पिस्टल छीनकर चारों आरोपी भागने लगे. पुलिस ने उन्हें पकड़ने की कोशिश की, जिस पर आरोपियों ने फायरिंग कर दी. पुलिस की जवाबी फायरिंग में चारों मारे गए.


इस एनकाउंटर ने पूरे देश में सुर्खियां बटोरीं. कई बड़ी हस्तियों ने एनकाउंटर की वैधता पर सवाल उठाया. सुप्रीम कोर्ट के पूर्व न्यायाधीश जस्टिस वीएस सिरपुरकर की अध्यक्षता में एनकाउंटर की जांच के लिए एक आयोग बना. इस आयोग ने पुलिस के दावों का खंडन किया और कहा कि जानबूझकर मारने के इरादे से गोली चलाई गई थी.


आयोग ने कहा कि पुलिस ने आत्मरक्षा या आरोपियों को फिर से गिरफ्तार करने लिए गोली नहीं चलाई, इसलिए सभी 10 पुलिस अधिकारियों पर हत्या और साक्ष्य नष्ट करने का मुकदमा चलाया जाना चाहिए.  कमेटी ने कहा कि पुलिस ने पिस्टल छीनकर भागने की मनगढ़ंत कहानी बनाई.


आयोग ने अपनी रिपोर्ट सुप्रीम कोर्ट में सौंपी, जिसके बाद शीर्ष अदालत ने आगे की कार्रवाई तय करने के लिए मामले को हाई कोर्ट में भेज दिया. तब से मामला तेलंगाना हाई कोर्ट के पास है.


विकास दुबे एनकाउंटर


कानपुर के बिकरू गांव में साल 2020 में तलाशी अभियान पर गई पुलिस पार्टी पर बदमाशों ने हमला बोल दिया था. इसमें 8 पुलिसकर्मी मारे गए थे. मामले के मुख्य आरोपी विकास दुबे को मध्य प्रदेश के उज्जैन में पकड़ा गया था. इसके बाद यूपी लाते समय रास्ते में हुई एक मुठभेड़ में वह मारा गया.


पुलिस के मुताबिक, विकास दुबे को ला रही गाड़ी रास्ते में पलट गई. इसके बाद विकास ने पुलिस का हथियार छीनकर भागने की कोशिश की जिसके बाद हुई मुठभेड़ में वह मारा गया. 


एनकाउंटर पर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई के दौरान यूपी पुलिस ने दावा किया था कि दुबे का एनकाउंटर मनगढ़ंत नहीं था. वह पुलिस को मारना चाहता था. सुप्रीम कोर्ट ने तब मुठभेड़ की जांच के लिए 3 सदस्यीय आयोग नियुक्त करने का फैसला किया था. बाद में, अदालत ने न्यायमूर्ति बी एस चौहान की अध्यक्षता में एक जांच आयोग के गठन को मंजूरी दी. इसमें इलाहाबाद हाई कोर्ट के पूर्व जज और यूपी के पूर्व पुलिस महानिदेशक (डीजीपी) शामिल थे. आयोग ने बाद में पुलिस को क्लीन चिट दे दी थी.


इशरत जहां एनकाउंटर


2004 में गुजरात पुलिस ने अहमदाबाद में हुई एक कथित मुठभेड़ में मुंबई की रहने वाली 19 वर्षीय इशरत जहां, तीन अन्य लोगों के साथ मारी गई थी. पुलिस ने दावा किया था कि तीनों गुजरात के तत्तकालीन सीएम नरेंद्र मोदी की हत्या के इरादे से आए थे. 


2009 में मजिस्ट्रेट जांच ने एनकाउंटर को फर्जी कहा था. मामला हाई कोर्ट पहुंचा, जहां जांच के लिए एसआईटी गठित करने का आदेश दिया गया. हालांकि, एसआईटी ने भी माना कि मुठभेड़ फर्जी थी. इसके बाद सीबीआई ने गुजरात पुलिस के कई अधिकारियों के खिलाफ केस दर्ज किया था.


बाद में, एक विशेष सीबीआई अदालत ने गुजरात के पूर्व पुलिस अधिकारियों डीजी वंजारा और एनके अमीन को इशरत जहां और तीन अन्य के फर्जी मुठभेड़ मामले में आरोप से बरी कर दिया था. गुजरात सरकार ने उन पर मुकदमा चलाने की मंजूरी नहीं देने का फैसला किया था. सरकार ने कहा था कि ये अधिकारी अपनी ड्यूटी कर रहे थे. बाद में 6 अधिकारियों को स्पेशल सीबीआई कोर्ट ने बरी कर दिया.


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