Atiq Ahmed Case: 'अतीक अहमद के वोट से बची थी यूपीए सरकार', जानिए इस दावे की सच्चाई
Atiq Ahmed News: अतीक ने 1989 में पहली बार विधानसभा का चुनाव लड़ा और जीत हासिल की थी. 2004 में वह समाजवादी पार्टी के टिकट पर जीत हासिल कर लोकसभा पहुंचा.
Atiq Ahmed UPA Government Claim: शनिवार (15 अप्रैल) को गैंगस्टर से राजनेता बने अतीक अहमद और उसके भाई अशरफ की हत्या के बाद प्रयागराज और उसके आस-पास के इलाकों में जरायम की दुनिया का एक चैप्टर हमेशा के लिए बंद हो गया. अपराध की दुनिया में सिक्का चलाने के बाद अतीक ने राजनीति की दुनिया में कदम रखा और लोकतंत्र के सबसे बड़े मंदिर संसद तक पहुंच गया था. उसकी हत्या के बाद मीडिया में एक खबर आई कि 2008 के दौरान मनमोहन सिंह के नेतृत्व वाली यूपीए सरकार संकट में आ गई थी, तब अतीक अहमद सांसद था और उसने सरकार बचाने के लिए वोट किया था.
दावा किया गया कि 2008 में जब तत्कालीन संप्रग सरकार और अमेरिका के साथ उसके परमाणु समझौते पर संकट के बादल मंडरा रहे थे, तब अतीक अहमद ने सरकार बचाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी. ये दावा एक पुस्तक ‘बाहुबलीज ऑफ इंडियन पॉलिटिक्स : फ्रॉम बुलेट टू बैलट’ में किया गया. हालांकि इस खबर में कोई सच्चाई नहीं है. संसद के रिकॉर्ड के अनुसार, ये दावा गलत है.
अतीक अहमद ने सरकार के खिलाफ किया था मतदान
लोकसभा के रिकॉर्ड से पता चलता है कि अहमद ने वास्तव में विश्वास मत में कांग्रेस के नेतृत्व वाली सरकार के खिलाफ मतदान किया था. लोकसभा की वेबसाइट पर उपलब्ध रिकॉर्ड के अनुसार 22 जुलाई, 2008 को सदन ने प्रधानमंत्री डॉ मनमोहन सिंह की ओर से पेश किए गए विश्वास प्रस्ताव पर चर्चा की. सरकार ने विश्वास मत 275-256 से जीता था. प्रस्ताव के खिलाफ मतदान करने वालों की सूची में अतीक अहमद का नाम है.
किताब में किया गया ये दावा
पुस्तक में दावा किया गया कि विपक्ष तत्कालीन मनमोहन सिंह सरकार के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव लाया था और संप्रग सरकार एवं अमेरिका के साथ किया गया परमाणु समझौता दांव पर लग गया था. पुस्तक के अनुसार, तब अतीक सहित छह अपराधी सांसदों को 48 घंटे के भीतर विभिन्न जेलों से फर्लो पर छोड़ा गया था. इन छह सांसदों में समाजवादी पार्टी का तत्कालीन लोकसभा सदस्य अतीक अहमद था, जो तत्कालीन इलाहाबाद (अब प्रयागराज) के फूलपुर निर्वाचन क्षेत्र का प्रतिनिधित्व कर रहा था.
राजेश सिंह की लिखित और रूपा पब्लिकेशन की ओर से प्रकाशित इस पुस्तक में उल्लेख किया गया है कि अतीक उन बाहुबलियों में से एक था, जिन्होंने संप्रग सरकार को गिरने से बचाया था. असैन्य परमाणु समझौता करने के सरकार के फैसले पर वाम दलों ने 2008 के मध्य में सरकार को दिया गया अपना बाहरी समर्थन वापस ले लिया था. सिंह ने लिखा है कि लोकसभा में संप्रग के 228 सदस्य थे और अविश्वास प्रस्ताव से उबरने के लिए सरकार को 44 वोट कम पड़ रहे थे.
दावा पूरी तरह से गलत
उन्होंने लिखा है कि तब समाजवादी पार्टी, अजीत सिंह के नेतृत्व वाले राष्ट्रीय लोक दल (रालोद) और एच डी देवेगौड़ा की जनता दल (सेक्युलर) ने संप्रग को अपना समर्थन दिया था. उन्होंने आगे लिखा कि संप्रग को समर्थन देने वाले अन्य सांसदों में ये ‘बाहुबली नेता’ भी शामिल थे. रूपा पब्लिकेशन की इस किताब में बताया है कि अतीक अहमद ने सरकार को गिरने से बचाया था. हालांकि ये दावा पूरी तरह से गलत है.
5 बार विधायक, एक बार सांसद रहा
अतीक अहमद पांच बार विधायक रहा था. अतीक ने 1989 में पहली बार विधानसभा का चुनाव लड़ा और जीत हासिल की. 2004 में उसे समाजवादी से टिकट मिला और जीतकर लोकसभा पहुंचा. हालांकि, 2005 में राजू पाल की हत्या के बाद से वह ज्यादा समय जेल में ही रहा.
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